Friday, 24 April 2015


* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

yantra leakhan vidhi


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Wednesday, 22 April 2015


अघोर भैरवी साधना*अगर दुर्भाग्य साथ न छोडे और हर कदम पर बाधा बनकर उपस्थित हो,हर तरफ से जिवन मे खूशीया कौन नहि चाहते है परंतु पूर्वजन्म के येसे भि दोष है हमारे ज्यो हमे रुलाते है,ज्यो हमे शिष्य नहि बल्कि अनुयायि बनाते है.अब तो इन सारि दोषो से लढना है,नहि तो ये दोष हमे ज्योतीष्यीयो के गुलाम बना देगे.गुरु और इष्ट मे अविश्वास का जन्म कर देगे.**भगवान से भिक मांगना ये शिष्यो के कार्य नहि है.येसि अनुमति हमारे सदगुरुजी हमे नहि देते है..................................**’’ ब्रम्हांड से कह दो हमे भक्ति नहि साधना चाहिये ‘’ ये बात सद्गुरुजि ने कहि थि.....................**जिवन मे खूशिया सदगुरुजी कि क्रुपा आर्शिवाद से हि मिल सकति है. और उन्हिकि क्रुपा से मिलि है  अघोर भैरवी साधना ज्यो अत्यंत प्रभावि है और जिवन कि सारि बाधाओको दुर कर देति है दोषो सहित.* "* *""*साधना सामग्री :-  कालि हकीक माला, मट्टि का दीपक , काले वस्त्र और आसन ,कपूर .*" "*विधि :-  सर्वप्रथम स्नान करके साधना मे प्रवेश किजिये ,दक्षिण दिशा कि और मुख करते हुये साधना करनी है. अघोर भैरवी साधना से पूर्व हि गुरुपूजन एवँ गुरुमंत्र जाप और निखिल रक्षा कवच कि पाठ आवश्यक है. मट्टि कि दीपक मे कपूर जलाये और अग्नि कि लौ को देखते हुये कालि हकिक माला से 9 मालाये जाप 8 दिन करनी आवश्यक है और 9 वे दिन हवन किजिये ( हवन मे आहुति के लिये काले तिल, लौंग, कालि मिर्च का हि उपयोग करे ) तभी साधना पूर्ण मानी जाति है ,यह साधना गुप्त नवरात्रि मे करनी है , किसि विशेष मनोकामना हेतु हम संकल्प ले सकते है.*" "मंत्र : -"" ""॥ ॐ अघोरे ऎँ घोरे ह्रीँ सर्वत: सर्वसर्वेभ्यो घोरघोरतरे श्री नमस्तेस्तु रुद्ररुपेभ्य: क्लीँ सौ: नम: ॥" साधना समाप्ति के बाद माला को जल मे किसी भि काले वस्त्र मे एक नारियल और सुपारि कि साथ बान्धकर विसर्जित किजिये.और जिवन मे कोइ भि समस्या आये तो इसि दीपक मे थोडि कपूर जलाते हुये अपनि समस्या बोलकर थोडि मंत्रा जाप कर लिजिये किसी भि समय मे अनुकुलता प्राप्त होगि.इस साधना को करते समय मे बडि विचित्र अनुभूतिया देखनि मिल सकति है.ज्यो किसीके पास plz share मत किजिये.

अघोर भैरवी साधना*अगर दुर्भाग्य साथ न छोडे और हर कदम पर बाधा बनकर उपस्थित हो,हर तरफ से जिवन मे खूशीया कौन नहि चाहते है परंतु पूर्वजन्म के येसे भि दोष है हमारे ज्यो हमे रुलाते है,ज्यो हमे शिष्य नहि बल्कि अनुयायि बनाते है.अब तो इन सारि दोषो से लढना है,नहि तो ये दोष हमे ज्योतीष्यीयो के गुलाम बना देगे.गुरु और इष्ट मे अविश्वास का जन्म कर देगे.**भगवान से भिक मांगना ये शिष्यो के कार्य नहि है.येसि अनुमति हमारे सदगुरुजी हमे नहि देते है..................................**’’ ब्रम्हांड से कह दो हमे भक्ति नहि साधना चाहिये ‘’ ये बात सद्गुरुजि ने कहि थि.....................**जिवन मे खूशिया सदगुरुजी कि क्रुपा आर्शिवाद से हि मिल सकति है. और उन्हिकि क्रुपा से मिलि है  अघोर भैरवी साधना ज्यो अत्यंत प्रभावि है और जिवन कि सारि बाधाओको दुर कर देति है दोषो सहित.* "* *""*साधना सामग्री :-  कालि हकीक माला, मट्टि का दीपक , काले वस्त्र और आसन ,कपूर .*" "*विधि :-  सर्वप्रथम स्नान करके साधना मे प्रवेश किजिये ,दक्षिण दिशा कि और मुख करते हुये साधना करनी है. अघोर भैरवी साधना से पूर्व हि गुरुपूजन एवँ गुरुमंत्र जाप और निखिल रक्षा कवच कि पाठ आवश्यक है. मट्टि कि दीपक मे कपूर जलाये और अग्नि कि लौ को देखते हुये कालि हकिक माला से 9 मालाये जाप 8 दिन करनी आवश्यक है और 9 वे दिन हवन किजिये ( हवन मे आहुति के लिये काले तिल, लौंग, कालि मिर्च का हि उपयोग करे ) तभी साधना पूर्ण मानी जाति है ,यह साधना गुप्त नवरात्रि मे करनी है , किसि विशेष मनोकामना हेतु हम संकल्प ले सकते है.*" "मंत्र : -"" ""॥ ॐ अघोरे ऎँ घोरे ह्रीँ सर्वत: सर्वसर्वेभ्यो घोरघोरतरे श्री नमस्तेस्तु रुद्ररुपेभ्य: क्लीँ सौ: नम: ॥" साधना समाप्ति के बाद माला को जल मे किसी भि काले वस्त्र मे एक नारियल और सुपारि कि साथ बान्धकर विसर्जित किजिये.और जिवन मे कोइ भि समस्या आये तो इसि दीपक मे थोडि कपूर जलाते हुये अपनि समस्या बोलकर थोडि मंत्रा जाप कर लिजिये किसी भि समय मे अनुकुलता प्राप्त होगि.इस साधना को करते समय मे बडि विचित्र अनुभूतिया देखनि मिल सकति है.ज्यो किसीके पास plz share मत किजिये.

Tuesday, 21 April 2015

*Shabar Mutti Peer Mantra


*Paryog Vidhi  * Yeh mantra kisi bhi guruwar kiya ja sakta hai. * Jap ke liy White hakik ki mala priyapat hai. * Sarsho ke tel ka diya jala sakte hai. * Loban or dhup ya agrbati istmal kare. * Ye 40 day ki sadhana hai. Ye Raat me 10 baje ke bad sadhana suru kare. * 11 mala daly jap kare or bharahamchari ka palane kare. * Jab Mutthi Peer samne aay dare na or be hizak apne man ki bat keh de. **Mantra* *Bismillah arrahmaan nirrahim Sah chaker ki bavi,Gale motiyan ka haar, lanka soo kot samunder si khai,jahan phire mohmmad vir ki duhai, koon vir aage chale,Suleman vir chale, Durshani Vir chale, Nadirshah vir chale.Mutthi Peer chale, Nahi chale toh hajrat suleman ki duhai,Shabad Sancha, pind kancha, chalo mantra ishvaro vacha. * ** *

Thursday, 16 April 2015

vasikaran siddhi


Vasikaran vasikaran aaj kon yes vidya sea parechet nahi hoga sab log vaikaran siddhi pana chatea hea sab log samaj mea aapne koye value banana chatea hea sab log chatea hea ke log vahe karea jo vo chata hea but yea siddhi pana eetna aasan nahi hea vasikaran sadhana to bhout mel jayea ge but safal kuch he hoge aur kam to kuch he karea ge to kya koye aap insan ke sa vasikaran nahi kar payea ga es baat ko dhyan mea leakar meanea aap ne vasikaran siddhi ka dusro kea leyea upyog karnea ka nirnaye keya hea haa but aap ko eskea leyea pay karna hoga koye mea apne siddhi ka upyog kese aur kea leyea karuga to us insan par siddhi ka reen char jayea ga aur jespar vasikaran keya hoga vo dhek sea vas mea nahi aayea ga to us reen ko chukanea kea leyea pay karna hoga vo bhi bhout kam vasikaran 108 types sea aap log karva saktea hea mujsea aur yea 108 vasikaran vidya baba aadam kea jamanea ke vidya hea es leyea aap mujea pea pura visvas dekha saktea ho