Wednesday, 20 April 2016

chandan vasikaran sadhana


जय ॐ नमो गुरी जी साधक मित्रो आज हम आप को 1 आकर्षण साधना बताने जा रहे हे । इस के जरिये चन्दन को सीध अभिमंत्रित कर प्रयोग किया जाएगा । इस के जरिये जगत में सभी जीवो का आकर्षण होगा या किसी का ख़ास करना हो उस का भी । यह बहुत ही शक्ति शाली और गुप्त विद्धान हे । इस के लिए 1 आकर्षण माला होनी चाहिये । ये माला प्राण प्रथिष्ठ कर के आकर्षण के ख़ास मंत्रो और इस मन्त्र से फिर प्रयोग लाई जाती हे । ये क्रिया वो कर सकता हे जिस को इस मन्त्र की सीधी हो और माला बनाने की प्रथिस्ष्ट करने की वीधी पता हो । इस माला को ले के मन्त्र की 51 माल 101 दिन करनी हे । इस से मन्त्र पूर्ण चैतन्य सीध हो जाएगा। फिर इस का प्रयोग चन्दन पर किया जात हे और इस के जरिये जगत को मोहित कर लेता हे । हामारी संस्था से आप पहले से सीध अभिमंत्रित चन्दन प्राप्त कर सकते हें । और सीध माला भी । सीध माला से मन्त्र को आसानी और जल्द सीध कर सकते हें । और चन्दन जो पहले से अभिमंत्रित सीध किया हो उस के जरिये बिना साधना किये ही प्रयोग कर सकते हें । मन्त्र: *********** मन्त्र अभी गुप्त रखा हे क्यों की यहाँ वहा से मन्त्र खोज चुरा के गलत काम और तांत्रिक बने फिरते हें सीध किया नाही और आगे बताने चले । तो इस लिए जिस को साधना करनी हो तो वो निचे दिए e mail और whats app no पे सम्पर्क करें । जय ॐ नमो गुरु जी सीद्ध माला : 900 ₹ सीद्ध चन्दन : 700 ₹ email - govindnath112@gamil.com What's app - 8758647820

Thursday, 26 November 2015

Lal Kitab


Lal Kitab Lal kitab sach mea ek dulabh granth sea kam nahi hea aaj kal bhout sea aasea log hea jo lal kitab kea upay deanea mea jara bhi der nahi karta bhalea hu unko lal kitab ka la bhi na pata ho aasa logo ko yea nahi pata ki yea upay karvanea vala aur karnea vala dono ka hi nuksan hoga yea ek aasi book hea jesko sikh nea valea ko vastu ya plam reading sikh ni nahi padthi usko automaticaaly aa jati hea aur yea sikh nea vala kesi bhi joytise kesi bhi plam reading ya vastu dhek nea jaanea valea ko uhi hi parast kar saktea hea kukyi yea lal kitab aasal mea un sab sea uchi hea esko jaanea vala kesi kea ghar mea enter hoti hea bata sakta hea ki unko kya kya problems hea lekin dusra koyi nahi bata sakta es kea upay sea tantra ki bhi kaat hoti hea but usko aachi tarah sea jaanea vala hi es kea upay bata sakta hea varna dono ka nuksan hoga upay kar vanea vala aur karnea vala dono ka aab aap logo kea leyea ek khuse khabri bhi hea aap log bhi es divya lal kitab ko sikh saktea hea vo bhi aapnea ghar mea bhet kea hi kukyi ham lal kitab sikh aanea kea leyea ek whats up group banana rahea hea jesmea yea 2 month ka course hoga jesko sikh nea kea baad aap sea bada sea bada joytise bhi har maan jayea ga ham nea es lal kitab ko jayda sea jayda lok sikh sakyea es sea dusro ki bhalayi kar sakyea es leyea eski rasi sif 600 rs rakhi hea 2 months ki jessea es ka labh jayda sea jayda log utha sakyea aur jan kalyan mea aapna yogdaan dea sakyea to agar koyi bhi meara bhai ya bhen esko sikh na chata hea to merea whats no mea contact kar kea meara acoount details lea kea paise jama karva dejea kukyi aglea friday sea to course suru bhi hogaya hoga meara whats up no 8401744232 Note : only whats up kejea ga koyi bhul kea bhi phone nahi karna kukyi meara whats up no aur mobile no alag hea

Friday, 6 November 2015


ऊँ नमो आदेश आदेश गुरु जी को मैं आज आपको बता रहा हूँ की कैसे आप वास्तु द्वारा धन संपदा को आमंत्रित करें.. कर्ज और गरीबी से तुरंत छुटकारा पाना चाहते है तो, उत्तर-पूर्व की ओर उत्तर-पूर्व की दीवार का फर्श की तरफ झुकावदार होना बहुत जरूरी है. इससे व्यापार बढ़ता है. धन दौलत की घर में वर्षा होने लगती है.अधिकांश लोग अपने घर के उत्तर-पूर्व के कोने में आग,चूल्हा,कुकिंग गैस, ज्योत, हवन आदि की व्यवस्था करते है.जो बिलकुल ही गलत होता है. इस कोने में आग से सम्बन्धित कोई भी काम नहीं होना चाहिए.जेनरेटर, गीजर, बायलर, भट्टी की गर्मी तक भी इस कोने में नहीं आनी चाहिए. 08401744232 अपने घर के हर कमरे में उत्तर-पूर्व की ओर ढलान रखें. इससे गयी खुशहाली भी लौट आती है. दक्षिण-पश्चिम भाग की ऊँचाई और उत्तर-पूर्व की ओर का ढलान घर में सुख शान्ति को बहाल करने वाला होता है. घर के उत्तर-पूर्व में पानी का दरिया, झील, या तालाब हो तो व्यक्ति को अमीर बनते देर नहीं लगती है. 08401744232 आपके आवासीय भवन या फेक्ट्री के भवन में उत्तर-पूर्व का कोना कटा हुआ है तो आपकी उन्नति किसी भी प्रकार से नहीं हो अक्ती है. अर्थात उन्नति के मार्ग में अनेक बाधाए उत्पन्न हो सकती है. उत्तर-पूर्व में यदि ऊँचा चबूतरा भी है तो दुनिया के सारे कष्ट आपको भोगने ही है.उत्तरी क्षेत्र का कटाव उस भवन में रेह्न्र वाले, पुरुषों को बर्बाद कर देता है. और पूर्वी क्षेत्र का कटाव स्त्रियों को भारी कष्ट प्रदान कर देता है.हमेशा याद रखे कि कैसीभी स्थिति हो कभी भी भूल कर उत्तर-पूर्व को ऊँचा ना रखें. यदि है तो इसे ठीक करवा देने में ही भलाई होती है. बिजनेस बहुत ही यदि मन्दा पढ़ गया हो तो दक्षिण की चाहरदीवारी के मुंडेर पर ईंटो की चिनाई करवा कर उसे ऊँचा कर दे, इससे व्यापार में तेजी आनी शुरू हो जायेगी. और उत्तरी दीवार को नीचा राखे, कहने का मतलब यह है कि ऊँची उत्तरी दीवार व्यापार को रोकती है, और उसमे बाधा उत्पन्न करती है. उत्तरी फर्श और उत्तरी दीवार को ठीक करके आप बंद पड़े व्यापार को भी एक गति दे सकते है. घर का भवन या फेक्ट्री का भवन बनाते समय सबसे बाद में उत्तरी दीवार बनवायें. 8401744232 भवन के उत्तरी वायव्य, पश्चिमी, नैऋत्य, दक्षिणी नैऋत्य, और पूर्वी आग्नेय में यदि द्वार होता है तो, धन के लिए यह शुभ नहीं होता है. इस दिशाओं में खिड़कियाँ, दरवाजे, रोशनदान, बंद करा दें और हवा एवं प्रकाश तक भी इन दिशाओं में न आने दें. अन्यथा प्राप्त धन या अपनी जमा पूँजी भी खत्म हो जाती है. भवन का उत्तरी भाग ऊँचा न रखे इससे दुर्भाग्य पूर्ण हवाए उत्पन्न होती है. और घर का दक्षिण-पश्चिम भाग नीचा ना रखे, और यहां कुआं, अंडरग्राउण्ड टैंक, बौरवेल, आदि भी ना लगाए. इससे जानलेवा ऊर्जा पैदा होती है. और इस बात का भी हमेशा ध्यान रखे कि भवन के बीचो बीच में कुआं, टैंक, बोरवेल, बेसमेंट, आदि नहीं होना चाहिए. इनसे घर के लोगो का दुर्भाग्य शुरू हो जाता है. अगर आपकी कोई भी समस्या या सुझाव है तो आप मुझे मेरे वटस ऐप नंबर पे मैसज करें 8401744232 जय महाकाली

Friday, 24 April 2015


* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

yantra leakhan vidhi


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