Saturday, 31 January 2015

शून्य सिद्धी गोलक yea ek a sa gholak hea jeasea शून्य mea sea kuch bhi paya ja sakta hea esea शून्य gutika bhi kaha jata hea yea gutika mea puru parad he hote hea meara matlab hea ke esmea parad kea aala va dusara koye dhatu use nahi hota 8 sanskar o kea baad yea divya gutika ka nirman hota hea e sea elephant jase bade chezea aur ant jease chote cheeze bhi parap kar saktea hea hamrea puvojo nea aur saint nea e skea barea mea battaya hea eska nirman bhout hard hota hea 1 ya 2 month lag jatea hea bhout sare divya osodheyo kea saahat eska melaab karna padta hea esko gold glass dea na padta hea aur bhi jatel keya o kea baad eska nirman hota hea sadguru kea marg darsan mea meanea en gutika o ka nirman ke aa tha abhi mearea paas 4 gutika hea mujea sif ek kahe kam hea dusrea ham hamrea sadhak metro ko dena chatea hea to agar koye yea gutika chata hea to mujea email karea Note:esmea hamra koye faeda nahi hea yea dusre gutika ka hamea koye kam nahi hea eslea ham esea distibute kar rehea hea my email id is sagar.mashru24@gmail.com Note:mea sif eska nirman kar kea aap tak puchau ga aap ko siddhi ko panea kea leyea ees gutika ko aapnea nam sea siddh karna hoga aur esea siddh karnea kea leyea aap ko espea ek chote se 5 din ke sadhana karne hoge aur शून्य siddhi aap ke sayed yea baat aap logo kese nea bata ye nahi hoge ke kese bhi gutika nirman karvao uus gutika ka ko aapnea nam sea jab tak siddh na keyaa ho tab tak vo gutika kam nahi karte fer chayea vo khechari gutika he Q na ho


शून्य सिद्धी गोलक yea ek a sa gholak hea jeasea शून्य mea sea kuch bhi paya ja sakta hea esea शून्य gutika bhi kaha jata hea yea gutika mea puru parad he hote hea meara matlab hea ke esmea parad kea aala va dusara koye dhatu use nahi hota 8 sanskar o kea baad yea divya gutika ka nirman hota hea e sea elephant jase bade chezea aur ant jease chote cheeze bhi parap kar saktea hea hamrea puvojo nea aur saint nea e skea barea mea battaya hea eska nirman bhout hard hota hea 1 ya 2 month lag jatea hea bhout sare divya osodheyo kea saahat eska melaab karna padta hea esko gold glass dea na padta hea aur bhi jatel keya o kea baad eska nirman hota hea sadguru kea marg darsan mea meanea en gutika o ka nirman ke aa tha abhi mearea paas 4 gutika hea mujea sif ek kahe kam hea dusrea ham hamrea sadhak metro ko dena chatea hea to agar koye yea gutika chata hea to mujea email karea Note:esmea hamra koye faeda nahi hea yea dusre gutika ka hamea koye kam nahi hea eslea ham esea distibute kar rehea hea my email id is sagar.mashru24@gmail.com Note:mea sif eska nirman kar kea aap tak puchau ga aap ko siddhi ko panea kea leyea ees gutika ko aapnea nam sea siddh karna hoga aur esea siddh karnea kea leyea aap ko espea ek chote se 5 din ke sadhana karne hoge aur शून्य siddhi aap ke sayed yea baat aap logo kese nea bata ye nahi hoge ke kese bhi gutika nirman karvao uus gutika ka ko aapnea nam sea jab tak siddh na keyaa ho tab tak vo gutika kam nahi karte fer chayea vo khechari gutika he Q na ho


Friday, 30 January 2015

NURANI JADU SIKHEDOSTO RUHANI DUNIYA KE BARE LOG BOHUT KUCH NAHI JANTE,AUR YE DUNIYA SIRF MUAKKIL HASIL KARTE HI KHATAM NAHI HOJATI,BALKI INSAN KI ROOH ME ITNI KUWAT HE KE WO ‘ALAME JAAT’ SE ‘ALAME HU’ TAK SARE MAKAN TAY KARSAKTA HE.AUR KUCH AISE AMAL V HE JISSE BINA KISI NUKSAN YA KHAUF KE INSAN KARAMATI TAKAT HASIL KARSAKTA HE,MASLE KE TAUR PE GAYEB HOJANA YANI AAP JAB CHAHE LOGO KI NAJRO SE GAYEB HOJAYE AUR APKO KOI NA DEKHSAKE,AISE KAFI NURANI SEHAR BUJURGO NE SECRETLY APNE SAGIRDO KO SIKHAYA HE,MAI V KUCH KUCH JANTA HU,MERE MURSHID NE SIKHAYA THA.AGAR KOI ISE SIKHNA CHAHTA HE TO MUJHSE MAIL ME RABTA KARE.MAI YAHA EK LIST LIKHDETA HO,JO MAI JANTA HU. (1)LOGO KI NAJRO SE GAYEB HOJANA(2)JINNATI DUNIYA KO ANKHO SE DEKHNA(3)RUHANI DUNIYA ME SAFAR KARNA(4)AAG,PANI,HAWA AUR MITTI KO KABU KARNA(5)KAGAJ KO RUPIYE ME TABDIL KARNA(6)JAMIN KE ANDAR DEKHNA(7)KABR KI ANDAR DEKHNA(8)KISI VI ROOH KO BULANA AUR USE HUKM DENA(9)SARRO ASMAN KO KHULE ANKH SE DEKHNA (10)KISI KA MIND READ KARNA


कुछ लघु प्रयोगमित्रो लघु प्रयोगो का सदा से अपना ही महत्व रहा है.जहा बड़े बड़े उपाय कुछ नहीं  कर पाते है वही लघु प्रयोग तीव्र प्रभाव दिखा जाते है.आपके लिए उन्ही लघु प्रयोगो में से कुछ यहाँ दिए जा रहे है पूर्ण विश्वास है कि आपको लाभ होगा। १. क्रोध शांति हेतु  जिन्हे बहुत अधिक क्रोध आता हो वे नित्य रात्रि में सोते समय एक ताम्बे के लोटे में जल भर दे और उसमे एक चाँदी का सिक्का डाल दे.प्रातः मुह आदि धोकर इस जल का सेवन करे.धीरे धीरे क्रोध में कमी आ जायेगी और आपका स्वभाव  सोम्य होने लगेगा। २. नकारत्मक ऊर्जा को दूर करने हेतु  यदि आप सदा मानसिक तनाव में रहते है.नित्य बुरे स्वप्न आते है.छोटी छोटी बाते आपको अधिक विचलित कर देती है.अकारण भय लगता रहता है तो ,रात्रि में सोते समय अपने तकिये के निचे एक छोटा सा फिटकरी का टुकड़ा रख ले.और सुबह उठकर उसे अपने सर से तीन बार घुमाकर घर के बहार फेक दे.सतत कुछ दिनों तक करे  अवश्य लाभ होगा। ३.गृह कलह निवारण एवं शुद्धि हेतु  यदि निरंतर घर में कलह का वातावरण बना रहता हो,अशांति बनी रहती हो.व्यर्थ का तनाव बना रहता हो तो.थोड़ी सी गूगल लेकर " ॐ ह्रीं मंगला दुर्गा ह्रीं ॐ "  मंत्र का १०८ बार जाप कर गूगल को अभी मंत्रित कर दे और उसे कंडे पर जलाकर पुरे घर में घुमा दे.ये सम्भव न हो तो गूगल ५ अगरबत्ती पर भी ये प्रयोग किया जा सकता है.घर में शांति का वातावरण बनने लगेगा। ४.स्मरण शक्ति हेतु  यदि आपकी स्मरण शक्ति तीव्र नहीं है,तो किसी भी सोमवार को शिवलिंग पर शहद से अभिषेक करे.अभिषेक करते समय ॐ नमः शिवाय का जाप करते जाये और एक एक चम्मच शहद शिवलिंग पर अर्पित  करते जाये इस प्रकार १०८ बार करे.फिर इस शहद को किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले.अब नित्य थोडा शहद लेकर १०८ बार " ऐं " बीज मंत्र का जाप करे और शहद अभी मंत्रित कर ले.इस शहद को स्वयं ग्रहण कर ले.तथा थोडा सा शहद मस्तक पर लगाये।धीरे धीरे आप स्वयं अनुभव करेंगे कि आपकी स्मरण शक्ति में सुधार हो रहा है. ५. अनिद्रा दूर करने हेतु  यदि आपको अनिद्रा कि समस्या है तो रात्रि में सोने से पूर्व " ॐ क्लीं शांता देवी क्लीं नमः " का माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए १०८ बार जाप करे और सो जाये। धीरे धीरे आपकी ये समस्या का भी अंत हो जायेगा। ६. धन वृद्धि हेतु  यदि धन में वृद्धि ना हो रही हो,साथ ही व्यर्थ का व्यय बढ़ता जा रहा हो तो शुक्रवार को १६ कमलगट्टे को शुद्ध घृत में मिलाकर अग्नि में " ॐ श्रीं स्थिर लक्ष्मी श्रीं वरदायै नमः "मंत्र से आहुति प्रदान करे.कुछ शुक्रवार करे और परिणाम स्वयं देखे।इसी मंत्र के मध्यम से अघोरी अपने जीवन में लक्ष्मी को बांध देते है.रस क्षेत्र में भी इस मंत्र का अत्यंत महत्व है,जिसमे कुछ विधि या साधना  करके लक्ष्मी को सदा सदा के लिए घर में स्थिर किया जा सकता है.परन्तु ये रस तंत्र का विषय है तो इस पर चर्चा फिर कभी होगी। आप सभी इन लघु प्रयोगो को करे,माँ से प्रार्थना है कि आपको सफलता प्राप्त हो. जय माँ 


Thursday, 29 January 2015

        गुरु साधना से लक्ष्मी प्राप्ति “अच्युताय नमस्तुभ्यं गुरवे परमात्मने |सर्वतंत्रस्वतंत्र   या चिद्घनानंदमूर्तये ||”‘ॐ त्वमा वह वहे वद वे गुरोर्चन धरै सह प्रियन्हर्षेतु’ हे अविनाशी परमात्मा स्वतंत्र चैतन्य और आनंद मूर्ति स्वरुप गुरुदेव ! आपको नमस्कार है | हे गुरुदेव ! आप सर्वज्ञ हैं , हम ईश्वर को नहीं पहचानते, न हि उन्हें कभी देखा है, और आपके द्वारा हि उस प्रभु या ईष्ट के दर्शन सहज और संभव है, मै अपना समर्पित कर आपका अर्चन पूजन कर पूर्णता प्राप्त करने का आकांक्षी हूँ |      भाइयो बहनों !                   इस श्लोक का भावार्थ आप समझ हि गए हैं यानि गुरु हि वह व्यक्तित्व है जो अज्ञान के अंधकार से शिष्य को पार ले जाकर जीवन में ज्ञान का प्रकाश देता है | गुरु हि हैं जो जीवन की बाधाओं के शिष्य को सचेत भी करते हैं औरुनसे निकलने का मार्ग भी प्रसस्त करते हैं |  प्रिय स्नेही स्वजन ! आगामी वर्ष कि ढेरो शुभ कामनाओं के साथ आपके लिए एक मह्त्वपूर्ण साधना ------- एक शिष्य का जीवन गुरु से शुरू होकर गुरु पर ही समाप्त होता है तो क्यों न एस नव वर्ष की शुरुआत गुरु साधना से ही की जाये | क्योंकि गुरु ही वह श्रोत जो शिष्य में आत्म उत्साह प्रदान करता है क्रिया के साथ जाग्रति साधना कहलाती है और अभ्यास अपने आप को दृण निश्चय के साथ उच्च स्तिथि में ले जाने की क्रिया है, जिससे वह अपना आत्म ज्ञान प्राप्त कर सके गुरु व्यक्ति की शक्तियों को एक श्रंखला बद्ध रूप देता है जिससे बिखरी हुई शक्तियां एक धारा में श्रेष्ठता के साथ बह सकें |    गुरु वह व्यक्ति नहीं है जिनके ऊपर अपनी आप अपनी सारी समस्याओं एवं कठिनाइयों का बोझ डाल सको, गुरु तो वह व्यक्तित्व है जो आपको जीवन जीने का रचनात्मक, सुयोग्य और प्रभावकारी मार्ग दिखलाता है जिससे कि आप में स्वयं को जानने कि प्रक्रिया प्रारम्भ हो सके |   जीवन में सही क्रिया क्या है? दूसरों के भाव विचारों को किस प्रकार समझा जा सकता है यह जानने कि क्रिया के सम्बन्ध में जानकारी देकर योग्य व्यक्ति बनाना हि गुरु का मूल उद्देश्य है | स्नेही आत्मीयजन !        जीवन में दारिद्रय योग सबसे कष्ट दायक होता है और इसे दूर कर जीवन को सहज बनाना हि हमारा प्रथम उद्देश्य होना चाहिए क्योंकि उसके बाद हि जीवन में प्रत्येक क्रिया को किया जा सकता है | महर्षि विश्वामित्र ने बड़े स्पष्ट रूप से स्वीकार्य किया है कि गुरु अपने आप में समस्त ऐश्वर्य का अधिपति होता है, अतः गुरु साधना के माध्यम से समस्त ऐश्वर्या को प्राप्त किया जा सकता है अतः मैंने नववर्ष के प्रारम्भ को गुरु साधना से हि प्रारम्भ करने का विचार बनाया |    हो सकता है कि आपमें से से कैन व्यक्तियों के पास यह साधना उपलब्ध हो कि किन्तु कैन ऐसे नए साधक हैं जिनके पास न हो, कभी कभी ऐसा भी होता है कि हमारे पास साहित्य उपलब्ध होता है और हम उसका हम उपयोग नहीं कर पाते| अतः इस साधना कि उपयोगिता बताते हुए यह कहना चाहती हूँ कि मात्र एक बार इस प्रयोग को कर के देखें और अनुभूत करें..........   महर्षि विश्वामित्र द्वारा प्रणीत, सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त, दुर्भाग्य को मिटाने वाली अखंड लक्ष्मी प्राप्ति साधना | यह साधना मात्र तीन घंटे कि है जिसे कि इकत्तीस कि रात 11 बजे से शुरू करें | या जो इकत्तीस कि रात को ना कर पाएं तो एक तारिक के प्रातः 5 बजे से प्रारम्भ करें| साधना क्रम :-    सफ़ेद वस्त्र, सफ़ेद आसन, उत्तर दिशा, सामने गुरु चित्र, सामग्री में- कुमकुम ,अक्षत (बिना टूटे चावल ), गंगा जल, केसर, पुष्प (किसी भी तरह के), पंचपात्र, घी का दीपक जो साधना क्रम में अखंड जलेगा, कपूर, अगरबत्ती, एक कटोरी | साधक शुद्धता से स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण कर उत्तर कि ओर मुह कर बैठें | सामने बाजोट पर यदि गणपति विग्रह हो तो स्थापित कर पूजन करें अथवा चावल कि धेरी पर एक सुपारी में कलावा बांधा कर गणपति के रूप में पूजन संपन्न करें | तत्पश्चात पंचोपचार गुरु पूजन संपन्न करें | और चार माला गुरु मंत्र कि करें अब अपने स्वयं के शरीर को गुरु का हि शरीर मानते हुए अपने आपको गुरु में लीं करते हुए आज्ञा चक्र में “परमतत्व गुरु” स्थापन करें |  *परमतत्व गुरु स्थापन –**** *ऐं ह्रीं श्रीं अम्रताम्भोनिधये नमः| रत्ना-द्विपाय नम: | संतान्वाटीकाय नम: | हरिचंदन-वाटिकायै नम: | पारिजात-वाटिकायै नम: | पुष्पराग-प्रकाराय नम: |गोमेद-रत्नप्रकाराय नम: | वज्ररत्न्प्रकाराय नम: | मुक्ता-रत्न्प्रकाराय नम: | माणिक्य-रत्नाप्रकाराय नम: | सहेस्त्र स्तम्भ प्रकाराय नम: | आनंद वपिकाय नम: | बालातपोद्धाराय नम: | महाश्रिंगार-पारिखाय नम: | चिंतामणि-गृहराजाय नम: | उत्तर द्वाराय नम: | पूर्व द्वाराय नम: | दक्षिण द्वाराय नम: | पश्चिम द्वाराय नम: | नाना-वृक्ष-महोद्ध्य्नाय नम: | कल्प वृक्ष-वाटिकायै नम: | मंदार वाटिकायै नम: | कदम्ब-वन वाटिकायै नम: | पद्मराग-रत्न प्राकाराय नम: | माणिक्य-मण्डपाय नम: | अमृत-वपिकायै नम: | विमर्श- वपिकायै नम: | चन्द्रीकोद्राराय नम: | महा-पद्माटव्यै नम: | पुर्वाम्नाय नम: | दक्षिणा-म्नाय नम: | पस्चिम्माम्नाय नम: | उत्तर-द्वाराय नम: | महा-सिंहासनाय नम: | विश्नुमयैक-पञ्च-पादाय नम: | ईश्वर-मयैक पञ्च पादाय नम: | हंस-तूल-महोपधानाय नम: | महाविभानिकायै नम: | श्री परम तत्वाय गुरुभ्यो नम: | Aim hreem shreem amritaambhonidhye namh .  Ratn-dwipaay namh .  santaan-vatikaayai namh . paarijaat  vatikayai namh . puspraag-prakaaraay namh. Gomed ratn –praakaaraay namh. Vajra ratn praakaaraay namh.  mukta –ratn-praakaaraay namh. Manikya –ratn praakaaraay namh. Sehestra stambh praakaaraay namh. Anand-vapikayai namh.  Balatpoddhaaraay namh.  Mahashringaar-paarikhaayai  namh.  Chintamani – grihraajaay namh.  Uttardwaraay namh.  Purv-dwaraay namh.  Dakshin dwaraay  namh. Paschim  dwaraay namh .  nana-vriksh-mahodhyaanaay namh.  Kalp vriksh-vatikaayai namh. Mandaar vaatikaayai namh.  Kadamb-van vatikaayai  namh.  Padmraag-ratn  praakaaray  namh.  Manikya –mandpaay namh.  Amrit-vapikaayai namh.  Vimrsh-vaapikaayai namh .  chandrikodraay namh.  Mahaa-padmatvyaai namh.  Purvamnaay namh.  Dakshina-mnaay namh. Paschimmaamnaay namh.  Uttar-dwaraay namh.  Maha-sinhaasnaay namh. Vishnumyaik-punch-paadaay  namh.  Eshwar-mayaik punch paadaay namh.  Hans-tul-mahopdhaanaay namh.  Mahaavibhanikayai namh. Shree param tatvaay gurubhyo namh.       इस प्रकार परमतत्व गुरु को अपने आज्ञा चक्र में स्थापित करने के बाद एक पात्र में जल कुमकुम अक्षत और पुष्प कि पंखुड़ियां लेकर गुरु कि द्वादश कलाओं को अर्ध दें  *द्वादश कला पूजन:-*** ऐं ह्रीं श्रीं कं भं तपिन्यै नम: |(“ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं अं सूर्य मण्डलाय द्वादश्कलात्मने अर्घ्यपात्राय नम:”, प्रत्येक मंत्र के बाद इस मंत्र से पात्र में रखे हुए कुमकुम मिश्रित जल से दुसरे पात्र में अर्घ्य देने हैं ) ऐं ह्रीं श्रीं खं बं तापिन्यै नम:| ऐं ह्रीं श्रीं गं फं धूम्रायै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं घं पं विश्वायै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं ड़ं नं बोधिन्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं चं धं ज्वालिन्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं छं दं शोषिण्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं जं थं वरण्योये नम:|ऐं ह्रीं श्रीं झं तं आकर्षण्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं ञं णं मयायै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं टं ढं विवस्वत्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं ठं डं हेम-प्रभायै नम:| *Aim hreem shreem kam bham tapinyai namh.**(“Aim hreem shreem kleem am sooryamandalaay dwaadashkalaatmane arghpaatray namh”)**Aim hreem shreem kham bam taapinyai namh.**Aim hreem shreem gam fam dhoomraayai namh.**Aim hreem shreem gham pam vishvaayai namh.**Aim hreem shreem dam nam bodhinyai namh.**Aim hreem shreem cham dham jwaalinyai namh.**Aim hreem shreem chham dam shoshinyai namh.**Aim hreem shreem jam tham varnyoye namh.**Aim hreem shreem jham tam aakarshanyai namh.**Aim hreem shreem iyam  ndam namh.**Aim hreem shreem tam dham vivasvatyai namh.**Aim hreem shreem ttham dam hem- prabhayai namh.*   उपरोक्त कला पूजन में “ऐं ह्रीं श्रीं” लक्ष्मी के बीज मंत्र हैं अतः इस प्रकार ये लक्ष्मी के सभी स्वरूप हमारे शरीर में समाहित हो जाते हैं | कोई भी धन का सही उपयोग तभी जीवन में पूर्ण आनंद और ऐश्वर्या देता है जब कि लक्ष्मी के साथ सुख, सम्मान, तुष्टि-पुष्टि, ओर संतोष भी प्राप्त हो अतः सोलहकला पूजन विधान है | इसके लिए गुरु को अर्घ्य पात्र में जल, अक्षत, पुष्प, कुमकुम लेकर समर्पित करें | पहले निम्न मंत्र से मूल समर्पण करें फिर सोलह कलाओं के प्रत्येक मंत्र के साथ अर्घ्य पात्र में समर्पित करें | ऐं ह्रीं श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय षोडशी कलात्मने अर्घ्य पात्रामृताय नमः | *Aim  hreem  shreem  saum  um  som-mandalaay  shodashi  kalaatmane  arghya  paatraamritaay namah .  ** *  इस अर्घ्य को समर्पित करते समय उसका जल थोड़ा थोड़ा करके सोलह बार ग्रहण करें, इसके बाद गुरु कि सोलह कलाओं का अर्घ्य पूजन करें | *सोलह कला पूजन –**** ** *ऐं ह्रीं श्रीं अं अमृतायै नमः |(ऐं ह्रीं श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय षोडशी कालात्मने अर्घ्य पात्रामृताय नमः ) ऐं ह्रीं श्रीं आं मानदायै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं इं तुष्टयै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं ईं पुष्टयै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं उं प्रीत्यै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं ऊं रत्यै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं ॠं श्रीयै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं ऋृं क्रियायै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं लृं सुधायै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं लृं रात्रयै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं एं ज्योत्स्नायै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं ऐं हैमवत्यै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं ओं छायायै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं औं पूर्णीमायै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं अः विद्यायै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं वः अमावस्यायै नमः |   Aim  hreem  shreem am  amritaayai  namah. (*Aim  hreem  shreem  saum  um  som-mandalaay  shodashi  kalaatmane  arghya  paatraamritaay namah . )*  Aim  hreem  shreem  aam  maandaayai  namah.  Aim  hreem  shreem  im  tushtayai  namah.  Aim  hreem  shreem  eem  pushtayai  namah. Aim  hreem  shreem  um  preetyai  namah. Aim  hreem  shreem  oom ratyai  namah.  Aim  hreem  shreem  rim(ऋं)  shriyai namah.   Aim  hreem  shreem rim kriyayai namah.   Aim  hreem  shreem lrim sudhayai namah.   Aim  hreem  shreem lrim ratryai  namah.   Aim  hreem  shreem aim jyotsnayai namah.  Aim  hreem  shreem aim haimvatyai namah. Aim  hreem  shreem om chayayai namah.   Aim  hreem  shreem aum purnimayai namah. Aim  hreem  shreem ah vidyayai namah.   Aim  hreem  shreem vah amavasyayai namah. इसके बाद गुरु के मूल मंत्र का जाप करें “ॐ परम तत्वाय नारायणाये नमः “ (om param tatvaye narayanaye  namah )इस मंत्र कि एक माला फेरें या जो आपका गुरु मंत्र है उसकी माला करें | अब अपने सामने किसी पात्र में दीपक और कपूर जलाएं | फिर अपने शारीर में हि गुरु को समाहित मानकर बेठे हि बेठे समर्पण और आमंत्रण आरती करें | *पूर्ण सिद्ध आरती** *अत्र सर्वानन्द – मय व्यन्दव - चक्रे परब्रह्म - स्वरूपणी परापर - शक्ति - श्रीमहा – गुरु देव – समस्त – चक्र – नायके – सम्वित्ती – रूप – चक्र नायाकाधिष्ठिते त्रैलोक्यमोहन – सर्वाशपरी – पुरख – सर्वसंक्षोभकारक – सर्वसौ – भाग्यादायक – सर्वार्थसाधक – सर्वरक्षाकर – सर्वरोगहर – सर्वासिद्धीप्रद – सर्वानन्दरय – चक्र – समुन्मीलित – समस्त – प्रकट – गुप्त – गुप्ततर – सम्प्रदाय – कुल – कौलिनी – निगम – रहस्यातिरहस्य – परापर रहस्य – समस्त – योगिनी – परिवृत – श्रीपुरेशी – त्रिपुरसुन्दरी – त्रिपुर – वासिनी – त्रिपुरा – श्रीत्रिपुरमालिनी – त्रिपुरसिद्धा – त्रिपुराम्बा – तत्तच्चक्रनायिका – वन्दित – चरण – कमल – श्रीमहा – गुरु – नित्यदेव – सर्वचक्रेश्वर – सर्वमंत्रेश्वर – सर्वविद्येश्वर – सर्वपिठेश्वर – त्रलोक्यमोहिनी – जगादुप्तत्ति – गुरु – सर्वचाक्रमय तन्चक्र – नायका – सहिताः स – मुद्रा, स – सिद्धयः, सायुधाः, स – वाहनाः, स – परिवाराः, सर्वो-पचारे: श्री परमतत्वाय गुरु  परापराय – सपर्यया पुजितास्तर्पिता: सन्तु |   इसके बाद हाँथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें- श्रीनाथादी गुरु – त्रयं गण – पति पीठ त्रयं भैरव सिद्धोध बटुक – त्रयं पद युग्म दूती क्रमं मंडलम वीरानष्ट – चतुष्क – षष्टि – नवकं वीरावली – पंचकं, श्रीमन्मालिनी – मंत्रराज – सहितं वन्दे गुरोर्मंडलम |  स्नेही भाइयों बहनों इस प्रकार यह पूर्ण लक्ष्मी साधना केवल एक बार किसी भी अमावस्या को या किसी भी रात्री को या दीपावली को संपन्न करने से  पूर्ण लक्ष्मी सिद्धि प्राप्त होती है |  इस नव वर्ष की शुरुआत इस महत्वपूर्ण साधना से करें और पूर्ण आनंद ओर सुख, समृद्धि को प्राप्त करें, इसी अकांक्षा के साथ नव वर्ष कि शुभकामनाएं |


१॰ हनुमान रक्षा-शाबर मन्त्र “ॐ गर्जन्तां घोरन्तां, इतनी छिन कहाँ लगाई ? साँझ क वेला, लौंग-सुपारी-पान-फूल-इलायची-धूप-दीप-रोट॒लँगोट-फल-फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र ‌प्रताप-रक्षा-कारण वेगि चलो। लोहे की गदा कील, चं चं गटका चक कील, बावन भैरो कील, मरी कील, मसान कील, प्रेत-ब्रह्म-राक्षस कील, दानव कील, नाग कील, साढ़ बारह ताप कील, तिजारी कील, छल कील, छिद कील, डाकनी कील, साकनी कील, दुष्ट कील, मुष्ट कील, तन कील, काल-भैरो कील, मन्त्र कील, कामरु देश के दोनों दरवाजा कील, बावन वीर कील, चौंसठ जोगिनी कील, मारते क हाथ कील, देखते क नयन कील, बोलते क जिह्वा कील, स्वर्ग कील, पाताल कील, पृथ्वी कील, तारा कील, कील बे कील, नहीं तो अञ्जनी माई की दोहाई फिरती रहे। जो करै वज्र की घात, उलटे वज्र उसी पै परै। छात फार के मरै। ॐ खं-खं-खं जं-जं-जं वं-वं-वं रं-रं-रं लं-लं-लं टं-टं-टं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः। अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। वायु-पुत्राय नमः। राम-दूताय नमः।” विधिः- अत्यन्त लाभ-दायक अनुभूत मन्त्र है। १००० पाठ करने से सिद्ध होता है। अधिक कष्ट हो, तो हनुमानजी का फोटो टाँगकर, ध्यान लगाकर लाल फूल और गुग्गूल की आहुति दें। लाल लँगोट, फल, मिठाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १ सुपारी चढ़ा कर पाठ करें।


चन्द्रिका यक्षिणी साधना. ----------------------------------- ईश्वर उवाच- अथाग्रे कथियिष्यामि यक्षिण्यादि प्रसाधनम्l यस्य सिद्धौ नराणां हि सर्वे सन्ति मनोरथाः ॥ श्री शिवजी बोले – हे रावण ! अब मैं तुमसे यक्षिणी साधन का कथन करता हूं , जिसकी सिद्धि कर लेने से साधक के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं । चन्द्रिका यक्षिणी शीघ्र फल प्रदान करती है उन्हे साधका से कोई अपेक्षा नही है,जैसे षोडश यक्षिणी साधानाये हमारे तंत्र शास्त्र मे है और बाकी पन्द्राह यक्षिणीया साधक के कार्य को अनुकूल करने के उपरांत कुछ ना कुछ अपेक्षाये रखती है जिसे कुछ लोग भोग कहेते है.परंतु यहा आज आपको चन्द्रिका यक्षिणी साधना दियी जा रहि है जिसे अत्यन्त निर्मल मन से संपन्न करे,शुद्ध भाव,सहनशिलता और पूर्ण विश्वास से ही यक्षिणी साधना मे सफलता संभव है. बहोत से मेरे प्यारे बन्धूजनो का एक निवेदन था इन समस्या पर साधना पोस्ट करे जैसे "मै कर्ज से मुक्त हो जाऊ,मेरा शादि हो जाये,मेरी प्रेमिका मुझे वापस मिल जाये,मुझे धन प्राप्त हो,मै किसिसे निस्वार्थ प्रेम करता हू उनसे शादि हो जाये,मेरा कारोबार अच्छेसे चल जाये,मेरे नौकरी मे बाधा है या मुझे नौकरी मिले.....लिस्ट बहोत बडी है". समस्याओ की गिनती नही परंतु समाधान एक ही है "चन्द्रिका यक्षिणी साधना",जिसने की वो खुश ही रहेगा. यक्षिणी देवलोक से होती है इन्हे इतर योनी ना माने,ज्यादातर अघोरीयो के पास यह सिद्धी होती है जिससे उन्हे मनोवांछित कार्य करने मे मदत मिलता है.यह साधना साधु,सन्यासी,पु रुष और स्त्री भी कर सकते है.साधना हेतु लाल वस्त्र और आसन जरुरी है,नयी स्फटीक माला हो जो शिवलिंग से स्पर्शित करके तय्यार रखे.जब तक आपके मन मे प्रसन्नता ना हो तब तक साधना ना करे. विधान आसान है जैसे उत्तर दिशा मे मुख करके बैठना है,साधना 11 दिन का है,21माला जाप रोज करना है,रोज बेसन के लड्डू का भोग लगाये जो शुद्ध घी मे बना हुआ हो,स्टील के प्लेट मे एक कुंकुम से स्वस्तिक बनाये,लाल गुलाब रोज चढाना है स्वस्तिक पर,स्वस्तिक रोज प्लेट पर बनाये और साधना करने के बाद प्लेट को शुद्ध जल से धोकर जल दूसरे दिन सुबह पिपल के पेड के पास चढा दे.साधना रात्री मे 10 बजे से किसी भी शुक्रवार से प्रारंभ करे.लड्डू का प्रसाद स्वयं ग्रहन करे.साधना से पूर्व हाथ मे जल लेकर संकल्प बोले "मै अमुक पिता का पुत्र गुरूकृपा से चन्द्रिका यक्षिणी साधना संपन्न करने जा रहा हू,मुझे इस साधना मे पूर्ण सफलता प्राप्त हो और मेरा अमुक कार्य सिद्ध हो" जल को जमीन पर छोड दे और अपने गुरू से साधना सफलता हेतु प्रार्थना करे. विधि:- सबसे पहिले देवि का आवाहन करे- ll आवाहयामी देवि त्वं सर्वशक्ति प्रदायनी,सर्व मंगलरुपा त्वं सर्व कार्य सुभंकरी,आवाहयाम ी आवाहयामी देवि चन्द्रिके,स्थाप यामी पुजयामी नम: ll मंत्र:- ll ओम ह्रीं चन्द्रिके आगच्छ इच्छीतं साधय ओम फट ll Om hreem chandrike aagachcha ichchitam saadhay om phat आप सभी की कामना पूर्ण हो यही सदगुरूजी के चरणो मे नम्र विनती है,आपकी साधना मंगलमय रहे.


Wednesday, 28 January 2015

भगवान हनुमान को चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है | कहा जाता है कि वे आज भी जीवित हैं और हिमालय के जंगलों में रहते हैं | वे भक्तों की सहायता करने मानव समाज में आते हैं लेकिन किसी को आँखों से दिखाई नहीं देते | लेकिन एक ऐसा मंत्र है जिसके जाप से हनुमान जी भक्त के सामने साक्षात प्रकट हो जाते हैं | मंत्र है : कालतंतु कारेचरन्ति एनर मरिष्णु , निर्मुक्तेर कालेत्वम अमरिष्णु यह मंत्र तभी काम करता है जब नीचे लिखी दो शर्ते पूरी हों - (1) भक्त को अपनी आत्मा के हनुमान जी के साथ संबंध का बोध होना चाहिए | (2) जिस जगह पर यह मंत्र जाप किया जाए उस जगह के 980 मीटर के दायरे में कोई भी ऐसा मनुष्य उपस्थित न हो जो पहली शर्त को पूरी न करता हो | अर्थात या तो 980 मीटर के दायरे में कोई नहीं होना चाहिए अथवा जो भी उपस्थित हो उसे अपनी आत्मा के हनुमान जी के साथ सम्बन्ध का बोध होना चाहिए | यह मंत्र स्वयं हनुमान जी ने पिदुरु पर्वत के जंगलों में रहने वाले कुछ आदिवासियों को दिया था | पिदुरु (पूरा नाम "पिदुरुथालागाला ) श्री लंका का सबसे ऊँचा पर्वत है | जब प्रभु राम जी ने अपना मानव जीवन पूरा करके समाधि ले ली थी तब हनुमान जी पुनः अयोध्या छोड़कर जंगलों में रहने लगे थे | उस समय वे लंका के जंगलों में भी भ्रमण हेतु गए थे जहाँ उस समय विभीषण का राज्य था | लंका के जंगलों में उन्होंने प्रभु राम के स्मरण में बहुत दिन गुजारे | उस समय पिदुरु पर्वत में रहने वाले कुछ आदिवासियों ने उनकी खूब सेवा की | जब वे वहां से लौटने लगे तब उन्होंने यह मंत्र उन जंगल वासियों को देते हुए कहा - "मैं आपकी सेवा और समर्पण से अति प्रसन्न हूँ | जब भी आप लोगों को मेरे दर्शन करने की अभिलाषा हो, इस मंत्र का जाप करना | मै प्रकाश की गति से आपके सामने आकर प्रकट हो जाऊँगा |" जंगल वासियों के मुखिया ने कहा -"हे प्रभु , हम इस मंत्र को गुप्त रखेंगे लेकिन फिर भी अगर किसी को यह मंत्र पता चल गया और वह इस मंत्र का दुरुपयोग करने लगा तो क्या होगा?" हनुमान जी ने उतर दिया - "आप उसकी चिंता न करें | अगर कोई ऐसा व्यक्ति इस मंत्र का जाप करेगा जिसको अपनी आत्मा के मेरे साथ सम्बन्ध का बोध न हो तो यह मंत्र काम नहीं करेगा |" जंगलवासियों के मुखिया ने पूछा -"भगवन , आपने हमें तो आत्मा का ज्ञान दे दिया है जिससे हम तो अपनी आत्मा के आपके साथ सम्बन्ध से परिचित हैं | लेकिन हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों का क्या ? उनके पास तो आत्मा का ज्ञान नहीं होगा | उन्हें अपनी आत्मा के आपके साथ सम्बन्ध का बोध भी नहीं होगा | इसलिए यह मंत्र उनके लिए तो काम नहीं करेगा |" हनुमान जी ने बताया -"मै यह वचन देता हूँ कि मै आपके कुटुंब के साथ समय बिताने हर 41 साल बाद आता रहूँगा और आकर आपकी आने वाली पीढ़ियों को भी आत्म ज्ञान देता रहूगा जिससे कि समय के अंत तक आपके कुनबे के लोग यह मंत्र जाप करके कभी भी मेरे साक्षात दर्शन कर सकेंगे |"


Monday, 26 January 2015

घबराकर लौट गया सिकंदर सिकंदर महान् था ! महान् तो था उसका गुरू ! जो उसमें कम से कम यह तो भाव भर सका कि वह महान् है !अब महान् किसको कहते हैं, यह तो उसका गुरू भी नहीं जानता होगा ! इसलिये सिकंदर ने मारकाट को ही महानता समझा ।किसी  की  स्वतन्त्रता पर अधिकार करना, उसकी इच्छा के  विरुद्ध उसके तन, मन, धन, भू, भूमि, स्त्री, संपत्ति आदि सब को बलात् अपना समझना और उनका मनमाना उपयोग करना तथा ऐसा करने की  क्षमता होने को ही वह महानता मानता था । चल दिया वह यूनान से । सारे जगत् पर अधिकार करने के लिए, ता कि उसे महान् माना जाये । देशों को जीतता हुआ अर्थात् मारकाट मचाता हुआ, वह आगे बढ़ता गया । संसार के सीधे साधे लोग किसी से शत्रुता रखते ही नहीं थे, इसलिए लड़ाई, लूटपाट, हत्या के अभ्यासी नहीं थे ।  शीघ्र ही चारों ओर आतंक फैल गया । वह महान् नहीं था, आतंकवादी था, लुटेरा था । ऊपर से अपने को महान् और कहता था । वह भारत की ओर बढ़ा ! इधर उसे कठिनाई आने लगी । इधर के लोग भी अजीब थे और इधर की घरती भी ! यूनानी सेना को जिधर समतल प्रतीत होता उधर पहाड़ निकल आता, जहां पहाड़ प्रतीत होता वहां पर नदी बह रही होती, जिसे वे नदी समझते वह समतल होता ! जिसे नदी या सागर समझते वह सूखा ही सूखा होता । अद्भुत् माया थी इधर उधर ।                                       सेना आगे नहीं बढ़ पा रही थी ।  यूनानी सैनिकों ने अपने सिकंदर को बताया कि यह भूमि एक योगी की है । वह बड़ा मायावी है । उसने भैरवनाथ नाम का एक  गुप्त  देवता प्रत्येक चौराहे पर क्षेत्रपाल कर के बिठा रखा है ।  शत्रु भाव से आने वाला कोई भी व्यक्ति उस देवता की दृष्टि से बच नहीं सकता है । कहीं आग, कहीं दलदल, कहीं झाड़-झंखाड़, कहीं नदी, कहीं पहाड़ जब देखो तब सैनिकों के मार्ग में अकस्मात् आ खड़े होते हैं । सेना भयभीत है । आगे बढ़ने का साहस भी उसमें नहीं बचा है । सिकंदर ने कहा कि हमें इस भूमि को अवश्य जीतना है । इस भूमि को एक ओर छोड़ कर आगे बढ़ने में दो समस्याएं हैं । एक यह कि हम हारे हुए माने जायेंगे जो कि हमारी महानता में दाग होगा ! दूसरा यह कि यह भी नहीं पता कि उसकी यह भूमि कहां तक है ! सैनिकों ने कहा कि चरवाहे बता रहे हैं कि यह सारा देश योगी की योग-भूमि है । वे कहते हैं कि उन योगी महाराज की अनुमति के बिना तो इस भूमि पर कोई पराया परिन्दा पर भी नहीं मार सकता, तुम सैनिक तो हो ही किस खेत की गाजर मूली ! सैनिकों ने सिकन्दर को यह भी बताया कि उस योगी के प्रभाव से ये साधारण से लगने वाले चरवाहे भी बहुत अल्हड़, उद्दण्ड और निडर हो रहे हैं । सैनिकों को आने जाने में भी टोकते हैं ! इधर मत जाओ, इधर गायें चर रहीं हैं, इधर घोड़ा मत दौडाओ, गायों पर धूल गिरेगी, माता की आंखों में धूल जायेगी, तुम को दिखता नहीं है क्या ?   सैनिकों ने कहा, ''एक सैनिक ने चरवाहे की नहीं मानी, उसे चरवाहे का अहंकार सहन नहीं हुआ, उसने घोड़ा आगे बढ़ा दिया । उस बाल किशोर चरवाहे ने दूर से ही उस घोड़े को अपनी लाठी दिखायी और जोर से बोला . '' छू छू मन्तर छू छू '' ! बस तुरन्त ही घोड़ा अपने सवार सहित मूर्छित होकर चारों खाने चित्त धरती पर गिर गया ।'' ''आस पास के बहुत से छोटे बड़े ग्वाले एकत्र होकर हम सैनिकों का मजाक उडाने लगे -''बढ़ो, बढ़ो, आगे बढ़ो, यह योगी की भूमि है । हमारी शान्त धरा-माता पर हमारी गो माताएं शान्ति से घास चर रहीं हैं, वह तुम को नहीं सुहाता है ! रक्त पिपासु उत्पाती आततायियों, यहां रक्त बहाने की भूल न करना । यहां योग बहता है, योग ! यहां घी दूध की नदियां बहती हैं । इस हमारी माता को दूषित, कलुषित करने का दुस्साहस मत करना ।''   सिकन्दर ने सेना को रोक दिया । पहले अपने सेनापति के साथ योगी से मिलने का निश्चय उसने किया । ग्वालों के माध्यम से उसे पता चल ही गया था कि वह योगी कोई साधारण योगी नहीं है । वहां श्रद्धा भाव से ही जाया जा सकता है, सेना लेकर नहीं । अत: विवश होकर वह सेनापति के साथ अकेला ही चला ।  बहुत दूर तक उपवन के समान फैले समतल भूभाग के मध्य एक ऊंचा टीला था । वह बहुत ही रमणीय स्थान था । एक दिव्य देवालय वहां बना हुआ था ! अखण्ड रूप से प्रज्वलित एक निर्धूम धूणा सबका ध्यान आकर्षित कर रहा था । बाबाजियों के लिए तीन चार साधारण कुटियाएं इधर उधर बनी हुईं थीं ।कोई सशस्त्र रक्षा व्यवस्था वहां नहीं थी । चारों ओर शान्ति का साम्राज्य पसरा हुआ था । सिकन्दर ने योगी से कहा कि वह विश्व विजेता बनने के लिये भारत को जीतना चाहता है, अत: आगे बढ़ने के लिये आप की भूमि का उपयोग करने दीजिये ! योगी ने कहा -''यह धरती हमारी माता है । यह कोई सम्पत्ति नहीं कि किसी पराये को दे दी जाये । माता भोग्या नहीं, पूज्या होती है । क्या तुम तुम्हारी मां को किसी को दे सकते हो ?'' सिकन्दर आग बबूला हो गया, चिल्लाता सा बोला .   ''कैसी बातें करते हो ! जबान सम्हाल कर बोलो मूर्ख ! जानते हो मैं सिकन्दर महान् हूं !'' योगी ने बिना किसी आवेश के कहा -''मारकाट से कोई महान् नहीं होता सिकन्दर ! तू तो हत्यारा है । विध्वंसक है । तू बिगाड़ सकता है, बना नहीं सकता ! तू महान् कैसे हुआ ! महान् तो वह है, जो बनाता है । जो बना नहीं सकता, उसे बिगाड़ने का क्या अधिकार है । जो जिला नहीं सकता, उसे मारने का क्या अधिकार है ।'' सिकन्दर को कोई उत्तर नहीं सूझा । जीवन में पहली बार उसे निरूत्तर होना पड़ा । वह तो लौह तलवार की भाषा  समझता था । वाणी की तलवार की धार उसने पहली बार देखी । तब भी उसने साहस कर पूछा -''आप कैसे कह सकते हैं कि यह धरती आप की माता है । यह धरती निष्प्राण है, यह माता कैसे हो सकती है ?'' योगी ने कहा . ''माता बेटों की बात मानती है । यह धरती भी हम बेटों बात मानती है ! यह तुम जैसे अक्कल के  दुश्मनों को कभी भी आगे नहीं जाने देगी !'' सिकन्दर को आगे बढ़ने में कठिनाई हो ही रही थी ! इसलिए योगी की यह चेतावनी तो उसे समझ में आ रही थी कि वह आगे नहीं जा सकेगा !इसे वह योगी का चमत्कार ही मान रहा था ! परन्तु धरती से मा-बेटे का सम्बन्ध होता है, यह उसे समझ में नहीं आ रहा था ।वह योगी की बातों से हतोत्साहित हो रहा था, तो भी उसने साहस बटोरा और योगी से पूछा –‘’आप कैसे कह सकते हैं कि धरती आप की बात मानती है ?’’ वह योगी अपने आसन पर खड़ा हो गया और धरती को हाथ जोड़ कर प्रार्थना कि 'हे माता आप मुझे स्थान दे दीजिये ।'इतना सुनना था कि भीषण ध्वनि के साथ भूमि फट गयी, योगी सशरीर उसमें समा गया, तुरन्त धरती पूर्ववत् भी हो गयी । समाचार वायुवेग से चारों फैल गया । झुण्ड के झुण्ड लोग गोरक्षनाथ जी महाराज की जयजयकार करते हुए आने लगे ! सिकन्दर भयभीत हो गया । उसे ज्ञात हो चुका था कि ये तो विश्व प्रसिद्ध गुरू गोरक्षनाथ जी महाराज हैं  ! वह अपनी सेना चुपचाप लौटा ले गया । पुनश्च -'गोरख टीला' के नाम से प्रसिद्ध उस स्थान पर ही पुराकाल में श्रीराम लक्ष्मण को गुरू गोरक्षनाथ जी महाराज ने योग दीक्षा दी थी ।सिद्ध है कि त्रेता युग से ही वह स्थान गुरू गोरक्षनाथ जी महाराज की तपस्थली रहा है । नटेश्वरी  पंथ का उद्गम भी इस दिव्य स्थान से हुआ है ।ज्ञातव्य है कि गुरू गोरखनाथ जी महाराज तो अमरकाय हैं ! वे शून्यावतार हैं । न उनका जन्म होता है, न उनकी मृत्यु होती है । संसार में जब उनकी  आवश्यकता  होती है तब वे शून्य में से प्रकट हो जाते हैं और कार्य सम्पन्न कर शून्य में विलीन हो जाते हैं ।दुर्भाग्य है कि ऐसा पवित्र स्थान इस समय तथाकथित पाकिस्तान में है ।


अघोर तांत्रिक श्मशान साधनाहम सभी ने अघोर तांत्रिकों के बारे में जरुर सुना होगा। अघोरी सांसारिक बंधनों को नहीं मानते और अधिकांश समय श्मशान में बिताते हैं। अघोर का अर्थ है जो घोर या वीभत्स नहीं है। अघोरी वो लोग होते हैं जो संसार की किसी भी वस्तु को घोर अर्थात वीभत्स नहीं मानते। इसलिए न तो वे किसी वस्तु से घृणा करते हैं और न ही प्रेम। उनके मन के भाव हर समय एक जैसे ही होते हैं। अघोर तांत्रिक श्मशान में ही तंत्र क्रियांए करते हैं , इनके मतानुसार श्मशान में ही शिव का वास होता है। अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्मशान साधना, शिव साधना और शव साधना। ऐसा माना जाता है कि शव साधना के चरम पर मुर्दा बोल उठता है और इच्छाएं पूरी करता है। शव साधना के लिए एक खास काल में जलती चिता में शव के ऊपर बैठकर साधना की जाती है। यदि पुरूष साधक हो तो उसे स्त्री का शव और स्त्री साधक के लिए पुरूष का शव चाहिए होता है।शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस मंदिरा की जगह मावा चढाया जाता हैं। अघोरी लोगो का मानना होता है कि वे लोग जो दुनियादारी और गलत कार्यों के लिए तंत्र साधना करते है अतं में उनका अहित होता है। अघोरी की आत्मा को प्रसन्न करने एवं उससे सहायता प्राप्त करने हेतु साधना बता रहा हूँ , इस साधना को आप घर पर भी कर सकते है - साबर मंत्र - " आडू देश से चला अघोरी , हाथ लिये मुर्दे की झोली , खड़ा होए बुलाय लाव , सोता हो जागे लाव , तुझे अपने गुरु अपनों की दुहाई , बाबा मनसा राम की दुहाई ! " विधान - मंगलवार या शनिवार के दिन , कृष्णपक्ष से रात्रि के समय , लाल या काले आसन पर बैठ कर नित्य ही ११ माला का जप करे । अपने सम्मुख अघोरी आत्मा हेतु एक मिट्टी के कुलहड़ में देसी शराब , श्वेत फूलो की माला , मिठाई -नमकीन आदि रखे । गूगल की धुप और कडुवे तेल का गिरी हुए बत्ती का दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित रखे । जब जप पूर्ण हो जाये तो ये सभी सामग्री किसी चौराहे पर या किसी पीपल के पेड के नीचे चुपचाप से रख आये और हाथ-पैर धोकर सो जाये । 7वें दिन नहीं जाना है । तब किसी अघोरी की आत्मा आएगी और सामग्री न देने का कारण अत्यंत उग्र स्वर में पूछेगी ...घबराए नहीं और उत्तर भी नहीं देना और जो पूर्व दिन की बची सामग्री है उसे रख दें । न ही किसी भी प्रकार का प्रश्न करें न ही किसी प्रश्न का उत्तर दें । अब जप के पश्चात् जो सामग्री वर्तमान दिन ...यानि 8वें दिन की है ...फिर से चौराहे पर या पीपल के पेड के नीचे रख आये । यह साधना 11 दिन की है एवं 11वें दिन अघोरी की आत्मा आएगी और सौम्य भाषा -शब्दों में वार्ता करगी । उससे अपनी बुद्धि के अनुसार वचन ले लीजिये ,ये आत्मा साधक के अभिष्टों को पूर्ण करेगी । जब भी किसी कुल्हड़ में देसी शराब और नमकीन -मिठाई अघोरी के नाम से अर्पित करोगे तो वो सम्मुख आकर साधक की समस्या का निवारण भी करेगी । इस साधना के प्रभाव से अघोरी की आत्मा साधक के आस-पास ही रहेगी तथा उसे सुरक्षा भी प्रदान करेगी ।


सुलेमानी तंत्र –साधना -जिन साधना जहां सभी तंत्रो में तीक्ष्ण सुलेमानी तंत्र को माना गया है !क्यू के इस में सिद्धि जल्द और तीक्ष्ण होती है !ऐसा नहीं है के बाकी तंत्र प्रभावकारी नहीं क्यू के तंत्र का अर्थ ही किरिया है !जहां मंत्रो से प्रार्थना की जाती है !और तंत्र किरिया होने के कारण समस्या का निवारण करता ही है !क्यू के किरिया का अर्थ करना मतलव काम किया और हो गया !इस लिए तंत्र दीनता नहीं सिखाता मतलव समस्या के आगे झुकना नहीं !जहां एक बहुत ही प्रभाव कारी साधना दे रहा हु जो सुलेमानी साधना से स्मन्धित है ! क्या आप गुरवत से पूरी तरह घिर गए है ? क्या कर्ज में फसते जा रहे है ? क्या शत्रु के षड्यंत्र का वार वार शिकार हो रहे है ? क्या रोजगार के सभी रास्ते बंद हो गए है? तो एक वार इस साधना को करे और फिर देखे कितना चेंज आता है आप की ज़िंदगी में !यह एक बहुत ही पाक पंज तन पाक का कलाम है !इसे पूर्ण पावित्रता से करे ! जिस कमरे में आप साधना कर रहे हो उसे अशी तरह साफ करे पोचा वैगरालगा कर जा धो ले फिर शूकल पक्ष के पर्थम शूकरवार को इस साधना को शुरू करे और 21 दिन करनी है ! वस्त्र सफ़ेद पहने और सफ़ेद आसान का उपयोग करे ! दिशा पशिम और इस तरह बैठे जैसे नवाज के वक़्त बैठा जाता है ! सिर टोपी जा सफ़ेद रुमाल से ढक कर बैठे अगरवाती लगा दे और साधना के वक़्त जलती रहनी चाहिए दिये की कोई जरूरत नहीं है !फिर भी लगाना चाहे तो तेल का दिया लगा सकते है !सर्व पर्थम गुरु पूजन कर आज्ञा ले फिर एक माला गुरु मंत्र करे और निमन मंत्र की पाँच माला जप सफ़ेद हकीक माला से करे साधना के बीच बहुत अनुभव हो सकते है !मन को सथिर रखते हुए जप पूर्ण करे !जिस कमरे में साधना कर रहे हो व्हा कोई शराब पीकर न आए इस बात का विशेष ख्याल रखे !जप उल्टी माला से करे न माला हो तो एक घंटा करे ! साबर मंत्र – बिस्मिल्ला हे रेहमान ए र्र्हीम उदम बीबी फातमा मदद शेरे खुदा , चड़े मोहमंद मुस्तफा मूजी कीते जेर ,वरकत हसन हुसैन की रूह असा वल फेर !  जिन साधना जिन का नाम सुनते ही क्यी ड़र जाते है !पर यह बहुत ही चमत्कारी साधना है !डरने की जरूरत नहीं है !इसे दृर चित होकर करे !जिन जहां कुश खतरनाक ताकत है वही कुश जिन खुदा की नेक ताकतों में से एक है !अगर इसको सही ढंग से करे तो सभी कुश हासिल कर सकते है !और अपने शत्रु को प्रसत भी कर सकते है !इन ताकतों का दुरुपयोग होने के कारण इन्हे बदनाम कर दिया गया है जद की ऐसा नहीं है !यह खुदा के समान ताकतवर जिन है और नेक बंदो की मदद करके खुश होता है !इस लिए करने से पहले अपने मन को अशी तरह तयार कर ले ! नोचन्दे शूकरवार से शुरू कर 21 दिन करनी है! एक करबा करेला ले उस में हिंग भर दे और गाँव जा शहर के बाहर जा कर खुले मदान में इस साधना को करे करेला हाथ में लेकर पशिम मुख खड़े हो जाए उस से पहले सुलेमानी रक्षा मंत्र से अपने चरो और एक घेरा खीच ले ! रक्षा मंत्र----आयतुल कुर्सी क्श कुरान आगे पीछे तू रेहमान धड़ रखे खुदा सिर रखे सुलेमान !! यह मंत्र 11 वार पढ़ कर रक्षा चक्र लगा ले और फिर गुरुदेव से प्रथना करके मंत्र शुरू करे एक घंटा मंत्र जप करना है उस के बाद करेले को पशिम की तरफ फेक देना है और घर आके मुह हाथ धो ले यह कर्म 21 दिन करना है रोज करेला नया लेना है !21 वे दिन जा साधना पूरी होते जिन परकट हो जाएगा और आप से नेकी के तीन सवाल पुछेगा अगर आपने सही जबाब दे दिया तो आफ़रीन आफ़रीन तीन वर कहेगा और आपको जो चाहिए वोह धन दोलत और परी जा जो भी आप कहेगे हजार कर देगा अगर जबाब न सही दे पाये तो चला जाएगा और फिर दुवारा आपके बुलाने पे नहीं आएगा इस लिए सभी सवालो का उतार सोच समझ कर दे !यह जिन नेकी पसंद है और कुश देने से पहले आपकी परीक्षा जरूर लेता है !पास होने पर आपको माला माल कर देता है और मिली इमदाद से दसवा हिसा गरीबो की हेल्प में लगा दे तो आप की नेकी के बदले आपको बहुत कुश देगा और आप जब भी पुकारे गे हजार हो कर आपके काम करेगा काम होने पर हलवा उसे दे जो शुद घी से घर में बनाया हो !और जब तक साधना कर रहे हो लशन प्याज का प्रयोग बंद कर दे !और दूध जा दूध से बना खाना सेविए आदि उपजोग जायदा करे मन को साफ रखे !यह नील वरणीय बहुत ही पावर फुल जिन है !उसे देख कर डरे नहीं वोह आपको कुश नहीं कहेगा यह परयोग मेरा अनुभूत किया हुया है ! मंत्र --- ऐन उल हक ये जेतान !! Mantr - Ain ul hak ye jetan


Conjuring The King of JinnsAccording to Syaikh Ahmad Dairobi, the below ritual is meant for conjuring the King of Jinns. *The Method Is As Follows:* * This ritual must be performed at mid-night, in a dark empty room while burning some incense. * The conjurer must be alone. * Recite Surat Al-Jin 100x.(Click here for the verse ) * Recite the below prayer (from Surat Yaasiin):"Bismillahir Rahmmanir Rahiim. Qul Uuhiya Ilayya Annahus Tama'a Nafarum Minal Jinni Fa Qaaluu Innaa Sami'naa Qur-aanan 'Ajabaa Yahdii Ilar Rusydi Fa Aamannaa Bihii Wa Lan Nusyrika Bi Rabbinaa Ahadaa Wa Annahuu Ta'aalaa Jaddu Rabbinaa Mat Takhadza Shaahibataw Wa Laa Waladaa Wa Annahuu Kaana Yaquulu Safiihunaa 'Alallaahi Syathathaa." The above prayer must be recited repeatedly until the king of jinns is visible. When the king comes, then recite the below prayer: "Wa nufikho fish shuuri faidzaa hum minal ajdaatsi ilaa robbihim yansiluun. Qooluu yaa wailanaa mam ba'atsanaa mim marqodinaa, haadzaa maa wa'adar rohmaanu wa shodaqol mursaluun. Ing kaanat illaa shoihataw waahidatan faidzaa hum jamii'ul ladainaa muhdhoruun. Wa laqod 'alimatil jinaatu innahum lamuhdhoruun. Haadzihi jahannamul latii kuntum tuu'aduun. Ishlauhal yauma bimaa kuntum takfuruun." Greet the king by saying Assalamu'alaikum (If he speak hebrew then say Salom Alaichem) and tell him your desires. (You may only ask for one wish) If you asked for money you may need to donate some to the charity.


मानव  जीवन एक अनत लम्बाई  लिए  हुए श्रंखला   में ही गति शील  ही  हैं , यदि आज के जीवन  को  बर्तमान  माने  तो इसका  भविष्य  और  भूतकाल भी तो होना ही  चाहिए  ही ,  जीवन को एक रस्सी मान  ले  और  उसके मध्य  के  किसी भी  भाग के पकड़ ले  तो  निश्चय  ही   कहीं तो उसका  प्रारंभ  होगा और  कहीं तो उसका अंत  होगा ही भले  ही वह हमें दृष्टी गत   हो  या  न हो, ठीक  इसी  तरह हमें हमारा  न  अतीत मालूम हैं न  भविष्य  हम मध्य  में कहाँ  हैं , कहाँ जायेंगे यह सब  भी नहीं मालूम ,    जीवन के अनेक प्रश्नों  का उत्तर इतना आसान नहीं हैं , की मात्र  कुछ तर्क   और वितर्क से  वर्तमान  जीवन  की सारी उच्चता   और  विसंगतियों को समझा  जा  सके .उसके समझने के लिए  पूर्व जीवन दर्शन होना ही चाहिए ,  तब पता  चल सकता हैं  की  मेरे जीवन में ऐसा  क्यों हैं  इसका कारण क्या हैं  , और जब ये समझ में आ जायेगा  तो  उसके निराकरण  के  उपाय भी  खोजे जा सकते हैं . अन्यथा,पूरा  जीवन एक अनबुझ पहेली  सा बन कररह जायेगा , अपने देश  में  तीन महान  धर्म  का  उदय  हुआ  हैं ये  हिन्दू , बौद्ध  और जैन  धर्म हैं ,आपस में इनके कितने भी  विरोधाभास   दिखाए  दे पर  एक बात पर  सभी एक मत हैं की कर्म  फल तो  प्राप्त    होता   ही हैं   और सहन करना  ही पड़ेगा   वेदान्त कहता  हैं -हाँ हमने  ही उस कर्म का निर्माण  किया हैं तो हम ही उसे समाप्त कर भी  सकते हैं , पर कैसे  उसके लिए  कारण भी  तो जानना  पड़ेगा  न , आज के जीवन में  यही क्यों मेरा भाई  हैं या मेरे निकटस्थ  होते  हुआ भी इनके प्रति मेरे स्नेह सम्बन्ध क्यों नहीं  हैं , क्यों  दूरस्थ  होता  हुआ  भी व्यक्ति  अपना सा लगता हैं,  क्यों इतनी  गरीबी या शरीर में इतने  रोग  हैं  आदि आदि अनेक  प्रश्नों के उत्तर  भी मिल जाते हैं ,  क्या इस जीवन में  जो गुरु हैं या सदगुरुदेव हैं  क्या  वह   विगत  जीवन में भी या  उससे  भी  पहले के जीवन से जुड़े  हैं और क्या कारण  था  की /और कहाँ  से संपर्क टुटा , सब तो इस  पूर्व जीवन  दर्शन से  संभव  हैं,  आजकल अनेको  प्रविधिया  विकसित हैं ध्यानके माध्यमसे व्यक्ति  धीरे धीरे  पीछे जा सकता  हैं पर  ठीक    बाल्य काल  की    ४ वर्ष कि आयु से पहले जाना  बहुत  ही कठिन हैं , इस अवरोध को पास करना  कठिन हैं .सम्मोहन  भी एक विधा  हैं पर   उसके लिए  उच्चस्तरीय  सम्मोहनकर्ता होना चाहिए , साथ ही साथ  मानव मस्तिष्क इतना शक्तिशाली हैं  की  वह  जो नहीं हैं वह  भी आपको दिखा सकता हैं , इन तथ्योंको  जांच करना  जरुरी हैं .  साधना क्षेत्र  में  भी अनेको साधनाए हैं पर सभी इतनी क्लिष्ट  हैं  इन सभी   को ध्यान में रखते हुए  एक सरल प्रभाव दायक  साधना  आप सभी के लिए .. मन्त्र :*क्लीं पूर्वजन्म दर्शनाय फट्***सामान्य साधनात्मक  नियम :·  जप में  काले  रंग की हकीक माला का उपयोग करें·  साधना  बुध वार से प्रारंभ करसकते हैं ·  जप काल में  दिशा  दक्षिण   रहेगी ·  साधन काल में  धारण  किये जाने वाले वस्त्र और आसन  लाल  रंग के होंगे ·  धृत के दीपक को देखते हुए  रात्रि काल १०  बजे के बाद(10PM) मे 31 माला  मन्त्र जप होना चाहिए ·  यह क्रम ११ दिन तक चले अर्थात   कुल ११ दिन  तक साधना चलनी चाहिए . सफलता पूर्वक होने पर आपको स्वप्न या तन्द्रा अवस्था मे पूर्व जन्म सबंधित द्रश्य दिखाई देते है.  जिनके माध्यम से आपके जीवन की अनेक रहस्य  खुलती जाती हैं. आज के लिए बस इतना ही मानव  जीवन एक अनत लम्बाई  लिए  हुए श्रंखला   में ही गति शील  ही  हैं , यदि आज के जीवन  को  बर्तमान  माने  तो इसका  भविष्य  और  भूतकाल भी तो होना ही  चाहिए  ही ,  जीवन को एक रस्सी मान  ले  और  उसके मध्य  के  किसी भी  भाग के पकड़ ले  तो  निश्चय  ही   कहीं तो उसका  प्रारंभ  होगा और  कहीं तो उसका अंत  होगा ही भले  ही वह हमें दृष्टी गत   हो  या  न हो, ठीक  इसी  तरह हमें हमारा  न  अतीत मालूम हैं न  भविष्य  हम मध्य  में कहाँ  हैं , कहाँ जायेंगे यह सब  भी नहीं मालूम ,    जीवन के अनेक प्रश्नों  का उत्तर इतना आसान नहीं हैं , की मात्र  कुछ तर्क   और वितर्क से  वर्तमान  जीवन  की सारी उच्चता   और  विसंगतियों को समझा  जा  सके .उसके समझने के लिए  पूर्व जीवन दर्शन होना ही चाहिए ,  तब पता  चल सकता हैं  की  मेरे जीवन में ऐसा  क्यों हैं  इसका कारण क्या हैं  , और जब ये समझ में आ जायेगा  तो  उसके निराकरण  के  उपाय भी  खोजे जा सकते हैं . अन्यथा,पूरा  जीवन एक अनबुझ पहेली  सा बन कररह जायेगा , अपने देश  में  तीन महान  धर्म  का  उदय  हुआ  हैं ये  हिन्दू , बौद्ध  और जैन  धर्म हैं ,आपस में इनके कितने भी  विरोधाभास   दिखाए  दे पर  एक बात पर  सभी एक मत हैं की कर्म  फल तो  प्राप्त    होता   ही हैं   और सहन करना  ही पड़ेगा   वेदान्त कहता  हैं -हाँ हमने  ही उस कर्म का निर्माण  किया हैं तो हम ही उसे समाप्त कर भी  सकते हैं , पर कैसे  उसके लिए  कारण भी  तो जानना  पड़ेगा  न , आज के जीवन में  यही क्यों मेरा भाई  हैं या मेरे निकटस्थ  होते  हुआ भी इनके प्रति मेरे स्नेह सम्बन्ध क्यों नहीं  हैं , क्यों  दूरस्थ  होता  हुआ  भी व्यक्ति  अपना सा लगता हैं,  क्यों इतनी  गरीबी या शरीर में इतने  रोग  हैं  आदि आदि अनेक  प्रश्नों के उत्तर  भी मिल जाते हैं ,  क्या इस जीवन में  जो गुरु हैं या सदगुरुदेव हैं  क्या  वह   विगत  जीवन में भी या  उससे  भी  पहले के जीवन से जुड़े  हैं और क्या कारण  था  की /और कहाँ  से संपर्क टुटा , सब तो इस  पूर्व जीवन  दर्शन से  संभव  हैं,  आजकल अनेको  प्रविधिया  विकसित हैं ध्यानके माध्यमसे व्यक्ति  धीरे धीरे  पीछे जा सकता  हैं पर  ठीक    बाल्य काल  की    ४ वर्ष कि आयु से पहले जाना  बहुत  ही कठिन हैं , इस अवरोध को पास करना  कठिन हैं .सम्मोहन  भी एक विधा  हैं पर   उसके लिए  उच्चस्तरीय  सम्मोहनकर्ता होना चाहिए , साथ ही साथ  मानव मस्तिष्क इतना शक्तिशाली हैं  की  वह  जो नहीं हैं वह  भी आपको दिखा सकता हैं , इन तथ्योंको  जांच करना  जरुरी हैं .  साधना क्षेत्र  में  भी अनेको साधनाए हैं पर सभी इतनी क्लिष्ट  हैं  इन सभी   को ध्यान में रखते हुए  एक सरल प्रभाव दायक  साधना  आप सभी के लिए .. मन्त्र :*क्लीं पूर्वजन्म दर्शनाय फट्***सामान्य साधनात्मक  नियम :·  जप में  काले  रंग की हकीक माला का उपयोग करें·  साधना  बुध वार से प्रारंभ करसकते हैं ·  जप काल में  दिशा  दक्षिण   रहेगी ·  साधन काल में  धारण  किये जाने वाले वस्त्र और आसन  लाल  रंग के होंगे ·  धृत के दीपक को देखते हुए  रात्रि काल १०  बजे के बाद(10PM) मे 31 माला  मन्त्र जप होना चाहिए ·  यह क्रम ११ दिन तक चले अर्थात   कुल ११ दिन  तक साधना चलनी चाहिए . सफलता पूर्वक होने पर आपको स्वप्न या तन्द्रा अवस्था मे पूर्व जन्म सबंधित द्रश्य दिखाई देते है.  जिनके माध्यम से आपके जीवन की अनेक रहस्य  खुलती जाती हैं. आज के लिए बस इतना ही 


Sunday, 25 January 2015

Tuesday, 20 January 2015

गुप्त नवरात्री विशेष ------------------------------- यह नवरात्री खास करके इतर योनी से मदत प्राप्त करने हेतु एकदम खास है,यहा पर आज मै विशेष क्रिया बता रहा हू जिससे 100% मनोकामना पूर्ण होता है. आनेवाले शनिवार के दिन सफेद आक के पौधे के पास जाये और वहा पर एक सफेद वस्त्र बिछाये,वस्त्र पर काजल से अपना पूर्ण नाम लिखे और नाम के उपर सव्वा किलो चावल का ढेरी बनाये.अब आक के पौधे को जल चढाये और कुंकुम से रौली से पुजन करे.पुजन के बाद 5 अगरबत्ती जलाये और पौधे की पांच परिक्रमा करके अगरबत्ती को जमीन पर लगादे. अब चावल के ढेरी पर एक मिट्टी का दीपक रखे जिसमे सुगन्धित तेल भरा हो और अपना कामना बोलकर दीपक को प्रज्वलित करदे. यह क्रिया रात को बारा बजे होनी चाहिये सिर्फ इतना ही नियम है.दीपक प्रज्वलित करने के बाद एखादा गुलाब का पुष्प दीपक के पास चढा दिजिये और बिना पीछे मुडे घर को वहा से निकल जाये. अगर किसी प्रकार का आवाज आये तो डरना नही कोई तकलीफ़ नही होगा. मातारानी आपका कामना पूर्ण करे. आदेश.


Sunday, 18 January 2015

agar kese ko yea tel chayea yea to mujea email kejea meara email id hea sagar.mashru24@gmail.com शिवाम्बु द्वारा धातु वेधन की क्रिया पर जब हम बात कर रहे थे तो उस दौरान हमने बताया था की कुछ विशेष कल्पों के सेवन से शारीरिक पारद वेधक गुणों से युक्त हो जाता है उन्ही कल्पों में से यह सिद्ध अंकोल कल्प भी एक है। विगत कई वरशो से आयुर्वेद का एक कल्प लोगो के बीच उलझी हुयी पहेली बना है और जिसे सुलझाने के चक्कर में न जाने कितने लोग ख़ुद ही उलझ गए .और वो कल्प है अंकोल कल्प आख़िर क्या बात है की लोग इसके पीछे पड़े हुए हैं .... तंत्र के प्राचीनतम ग्रंथों में लिखा है की इसके तेल(आयल) की बूँद भी मुर्दे को कुछ पलों के लिए जीवन दे देती है .पर जब हम तेल निकालने जाते हैं तो या तो वो निकलता ही नही या फिर जल जाता है तो क्या करें, क्या हमारे वो तंत्र ग़लत हैं कदापि नही..सच तो यह है की आधुनिक समय में हम ख़ुद ही उन सूत्रों को भूल गए हैं जिनके द्वारा हमारे पूर्वज प्रकृति का सहयोग प्राप्त करके अपना अभिस्थ साध लेते थे. इस तेल को प्राप्त करने की विधि जो की अनुभूत है कुछ इस प्रकार है.सबसे पहले तो जहा अंकोल का वृक्ष हो वह जाए और यह देख लें की उस पर फल आ गए हैं दूसरे दिन वह जाकर उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करें और उस शिवलिंग के सामने एक घाट(मटका) की स्थपना करें और अघोर मन्त्र का जप करते हुए एक धागे से उस शिवलिंग,घाट और वृक्ष को बाँध दे और प्रतिदिन अघोर मंत्र की ११ माला करें।जब फल पाक जायें तो उन्हें तोड़कर उस मटके में रखते जायें जब वो मटका भर जाए तो योगिनियों और भैरव पूजन संपन्न करें और उन फलों को थोड़ा कूट कर पातळ यन्त्र के द्वारा आयल निकाल लें. ४ से ५ घंटे में तेल निकल जाता है अग्नि देते समय सावधानी रखेर्ण और मध्यम अग्नि दे. फिर उस तेल पर अघोर मंत्र की ११ माला जप करे और इच्छा अनुसार प्रयोग करें .एक बात और सिर्फ़ तेल से कुछ नही होता यदि १ भाग अंकोल तेल में २ भाग तिल का तेल और सिद्ध पारद भस्म न मिली हो तो वो मरीत्संजिवी नही होता है हाँ अन्य कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है.अंकोल तेल में दो भाग तिल का तेल मिला कर नाशय लेने से जरा मृत्यु का नाश होता है .३०० वर्ष की आयु होती है और किसी भी विष का कोई पराभव पूरे जीवन भर नही होता है. इसके अन्य प्रयोग इस प्रकार हैं. गुरूवार को हस्त नक्षत्र में यदि इसके मूल को शास्त्रीय रूप से प्राप्त करके कर्पूर और शहद के साथ यदि खाया जाए तो नश्त्द्रिष्टि वाला भी देखने लगता है. इस तेल से मर्दित पारद बंधित होकर ताम्र को स्वर्ण में बदल देता है. कृष्ण अंकोल का तेल अदृश्य क्रिया के काम आता है। आइये इन सूत्रों को सहेजें और अपनी परम्परा पर गर्व करें।****आरिफ****Nikhil  at 6:06 PM


शिवाम्बु द्वारा धातु वेधन की क्रिया पर जब हम बात कर रहे थे तो उस दौरान हमने बताया था की कुछ विशेष कल्पों के सेवन से शारीरिक पारद वेधक गुणों से युक्त हो जाता है उन्ही कल्पों में से यह सिद्ध अंकोल कल्प भी एक है। विगत कई वरशो से आयुर्वेद का एक कल्प लोगो के बीच उलझी हुयी पहेली बना है और जिसे सुलझाने के चक्कर में न जाने कितने लोग ख़ुद ही उलझ गए .और वो कल्प है अंकोल कल्प आख़िर क्या बात है की लोग इसके पीछे पड़े हुए हैं .... तंत्र के प्राचीनतम ग्रंथों में लिखा है की इसके तेल(आयल) की बूँद भी मुर्दे को कुछ पलों के लिए जीवन दे देती है .पर जब हम तेल निकालने जाते हैं तो या तो वो निकलता ही नही या फिर जल जाता है तो क्या करें, क्या हमारे वो तंत्र ग़लत हैं कदापि नही..सच तो यह है की आधुनिक समय में हम ख़ुद ही उन सूत्रों को भूल गए हैं जिनके द्वारा हमारे पूर्वज प्रकृति का सहयोग प्राप्त करके अपना अभिस्थ साध लेते थे. इस तेल को प्राप्त करने की विधि जो की अनुभूत है कुछ इस प्रकार है.सबसे पहले तो जहा अंकोल का वृक्ष हो वह जाए और यह देख लें की उस पर फल आ गए हैं दूसरे दिन वह जाकर उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करें और उस शिवलिंग के सामने एक घाट(मटका) की स्थपना करें और अघोर मन्त्र का जप करते हुए एक धागे से उस शिवलिंग,घाट और वृक्ष को बाँध दे और प्रतिदिन अघोर मंत्र की ११ माला करें।जब फल पाक जायें तो उन्हें तोड़कर उस मटके में रखते जायें जब वो मटका भर जाए तो योगिनियों और भैरव पूजन संपन्न करें और उन फलों को थोड़ा कूट कर पातळ यन्त्र के द्वारा आयल निकाल लें. ४ से ५ घंटे में तेल निकल जाता है अग्नि देते समय सावधानी रखेर्ण और मध्यम अग्नि दे. फिर उस तेल पर अघोर मंत्र की ११ माला जप करे और इच्छा अनुसार प्रयोग करें .एक बात और सिर्फ़ तेल से कुछ नही होता यदि १ भाग अंकोल तेल में २ भाग तिल का तेल और सिद्ध पारद भस्म न मिली हो तो वो मरीत्संजिवी नही होता है हाँ अन्य कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है.अंकोल तेल में दो भाग तिल का तेल मिला कर नाशय लेने से जरा मृत्यु का नाश होता है .३०० वर्ष की आयु होती है और किसी भी विष का कोई पराभव पूरे जीवन भर नही होता है. इसके अन्य प्रयोग इस प्रकार हैं. गुरूवार को हस्त नक्षत्र में यदि इसके मूल को शास्त्रीय रूप से प्राप्त करके कर्पूर और शहद के साथ यदि खाया जाए तो नश्त्द्रिष्टि वाला भी देखने लगता है. इस तेल से मर्दित पारद बंधित होकर ताम्र को स्वर्ण में बदल देता है. कृष्ण अंकोल का तेल अदृश्य क्रिया के काम आता है। आइये इन सूत्रों को सहेजें और अपनी परम्परा पर गर्व करें।****आरिफ****Nikhil  at 6:06 PM


Thursday, 15 January 2015

मित्रो हमारी देह ईश्वर कि और से हमें सबसे बड़ा वरदान है.क्युकी अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाये तो हम धन,वैभव,सुख आदि का भोग नहीं कर पाते है.और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते है.कई उपचार किये जाये।औषधि ली जाये किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है.और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है. परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है.यहाँ के ऋषि मुनि ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग कि उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है.संसार में सर्व प्रथम काया कल्प पर अगर किसी ने चर्चा कि तो वो हमारे भारत के ऋषि आदि ने ही कि,आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में.और इस क्षेत्र में कई कई शोध किये हमारे साधको तथा संतो ने.आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है.यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से काया कल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तंत्र।यही कारण है कि आज भी उच्च कोटि कि औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है.जो कि देह को रोगो से मुक्त करती है.और यही पारद जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तो,देह को रोग मुक्त करता है साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सिच कर उसे अध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है.रोग मुक्ति के हेतु भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते है.और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते है.उसका मुख्य कारण ये है कि,पारद में औषिधि तत्त्व भी विद्यमान होते है.अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते है तो,आपको दो मार्गो से लाभ प्राप्त होने लगता है.प्रथम मंत्र के माध्यम से उसमे स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते है.और दूसरा उसके स्पर्श में आयी हर वस्तु औषिधि में परिवर्तित हो जाती है. विशेषकर वीर्य से सम्बंधित दोषो में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र कि तरह कार्य करता  है. अतः असाध्य रोगो से भयभीत न हो उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने.आईये जानते है इस दिव्य विधान को. साधना आप किसी भी सोमवार से आरम्भ करे.समय रात्रि या दिन का  कोई भी आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते है.आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बंधन नहीं है.स्नान कर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दे और उस पर कोई भी पात्र रख दे.इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करे.सर्व प्रथम गुरु तथा गणपति का पूजन करे.अब भगवान रसेश्वर का सामान्य पूजन करे.शुद्ध घृत या तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई रखे.इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है.अब आपको निम्न मंत्र को पड़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है. ॐ रुद्राय फट  १०८ बार आपको उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है.इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ११ माला जाप करे. ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः  Om Hraam Hraam Ayim Joom Sah Mrityunjayay Raseshwaraay Sarv Rog Shantim Kuru Kuru Namah  ११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः रसलिंग पर निम्न मंत्र पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है. ॐ हूं सर्व रोग नाशाय रसेश्वराय हूं फट  Om Hoom Sarv Rog Naashaay Raseshwaraay Hoom Phat  इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान से प्रार्थना करे.उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है.रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाये।और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मंदिर में दान कर दे कुछ दक्षिणा के साथ.बाद में नित्य मूल मंत्र जिसका आपने  रुद्राक्ष माला  पर जाप किया है.उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभी मंत्रित कर ले और ग्रहण कर ले.ये साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते है.जिन लोगो के पास पारद निर्मित  महारोग नाशक गुटिका है वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दे.और ११ दिनों बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर ले,लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।बाकि साधना आप पूर्ण विश्वास से करे आपको अवश्य लाभ होगा।आप सभी निरोगी हो इसी कामना के साथ. मित्रो हमारी देह ईश्वर कि और से हमें सबसे बड़ा वरदान है.क्युकी अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाये तो हम धन,वैभव,सुख आदि का भोग नहीं कर पाते है.और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते है.कई उपचार किये जाये।औषधि ली जाये किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है.और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है. परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है.यहाँ के ऋषि मुनि ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग कि उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है.संसार में सर्व प्रथम काया कल्प पर अगर किसी ने चर्चा कि तो वो हमारे भारत के ऋषि आदि ने ही कि,आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में.और इस क्षेत्र में कई कई शोध किये हमारे साधको तथा संतो ने.आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है.यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से काया कल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तंत्र।यही कारण है कि आज भी उच्च कोटि कि औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है.जो कि देह को रोगो से मुक्त करती है.और यही पारद जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तो,देह को रोग मुक्त करता है साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सिच कर उसे अध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है.रोग मुक्ति के हेतु भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते है.और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते है.उसका मुख्य कारण ये है कि,पारद में औषिधि तत्त्व भी विद्यमान होते है.अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते है तो,आपको दो मार्गो से लाभ प्राप्त होने लगता है.प्रथम मंत्र के माध्यम से उसमे स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते है.और दूसरा उसके स्पर्श में आयी हर वस्तु औषिधि में परिवर्तित हो जाती है. विशेषकर वीर्य से सम्बंधित दोषो में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र कि तरह कार्य करता  है. अतः असाध्य रोगो से भयभीत न हो उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने.आईये जानते है इस दिव्य विधान को. साधना आप किसी भी सोमवार से आरम्भ करे.समय रात्रि या दिन का  कोई भी आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते है.आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बंधन नहीं है.स्नान कर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दे और उस पर कोई भी पात्र रख दे.इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करे.सर्व प्रथम गुरु तथा गणपति का पूजन करे.अब भगवान रसेश्वर का सामान्य पूजन करे.शुद्ध घृत या तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई रखे.इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है.अब आपको निम्न मंत्र को पड़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है. ॐ रुद्राय फट  १०८ बार आपको उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है.इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ११ माला जाप करे. ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः  Om Hraam Hraam Ayim Joom Sah Mrityunjayay Raseshwaraay Sarv Rog Shantim Kuru Kuru Namah  ११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः रसलिंग पर निम्न मंत्र पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है. ॐ हूं सर्व रोग नाशाय रसेश्वराय हूं फट  Om Hoom Sarv Rog Naashaay Raseshwaraay Hoom Phat  इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान से प्रार्थना करे.उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है.रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाये।और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मंदिर में दान कर दे कुछ दक्षिणा के साथ.बाद में नित्य मूल मंत्र जिसका आपने  रुद्राक्ष माला  पर जाप किया है.उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभी मंत्रित कर ले और ग्रहण कर ले.ये साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते है.जिन लोगो के पास पारद निर्मित  महारोग नाशक गुटिका है वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दे.और ११ दिनों बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर ले,लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।बाकि साधना आप पूर्ण विश्वास से करे आपको अवश्य लाभ होगा।आप सभी निरोगी हो इसी कामना के साथ.


Dosto aaj kea jaman nea mea sabsea badi chezze hea vo hea eejzad matlab aakasan,aakasan cheeze he aase hea jeskea bina sagar bina pani aakasan he to sab ko gate deate hea but kaye loge mea aakasan he nahi hota vo ketna bhi prayas karea unmea aaksan he nahi aata hea sadhana nea safal na honeyea ka ek karan aaksan bhi hea kuke sadhak mea aaksan he nahi hota hea agar sadhanak kese itaryoni jeasea yaksini bhoot etc sadhana kar raha hea to usemea aaksan ke sabsea jarure cheeze hea agar sadhak mea aaksan hea to en sadhana mea siddhi mel nea kea chances bar jataea hea ene sabhi baato dhenmea rahakhar meanea ek aasea tabezze ka nirman ke ya hea jesea sadhak mea aaksan shakti bhut bhad jate hea agar shadhak esea phenea rakhea to samaj mea sabka visikaran hojata hea aur vo sadhak ke eejat karnea lagtea hea sadhakt agar yaksini ya other kese itaryoni ke sadhana kar raha hea to yesea locket ko phene lheana chayea yea eesea siddhi kea chances bhut bad jatea hea yea koye mamule locket nahi hea kuke yesea mea maya jaal ke jad ko hawan aur dveyea mantra sea pran dalea jaatea hea maya jaal ke ek jad aate hea vo vasikaran mea use hote hea eesekea pe6a ek khaahani hea jo es prakar hea bhagvan vishinu kea pass maya namak ek devi hea jo unke seva karte hea kese karan sar uunea dhurte pea jaad kea roop mea janam lena padha agar kesea kea pass yea jadd pranpadhese thit ho to vo sabko aaksan aavam vasikaran karsakta hea to jo koye log yea locket(tabeeze) chatea hea vo mujea email kejea meara email id hea sagar.mashru24@gmail.com


Wednesday, 14 January 2015

यहाँ बाबा भैरव जी का शाबर मंत्र दे रहा हु जो तीष्ण है,इस मंत्र का सिद्धी सिर्फ ८ दिन का है,साधना के लीये भैरव चित्र और रुद्राक्ष माला जरुरी है,भैरव जी के चित्र का पूजन करे करके नित्य मंत्र का एक माला जाप करे, माला होते ही कीसी पात्र मे शराब का भोग अर्पित करना है। जब साधना का आठवा दिन समाप्त हो जाये तो एक नारियल का बली आवश्यक है और दहीवडा भी चढ़ाये। सिर्फ इतना ही विधान जरुरी है। और साधना रात्री मे ९ बजे के बाद शुरू करे,आसान,वस्त्र का क्या रंग होगा ? यह चिंता छोड़ दे जो भी है वह चलेगा। साधना सिद्ध होने के बाद जब भी भैरव जी से अपना कामना पूर्ण करवाना हो। तो शराब अर्पित करे और नारियल का बली दे इतनी पूजा भैरव जी को देने से कार्य पूर्ण होता है। मंत्र :- ॥ ॐ काला भैरू,कबरा केश। काना कुंडल भगवा वेष। तीर पतर लियो हाथ,चौसठ जोगनिया खेले पास। आस माई,पास माई। पास माई सीस माई। सामने गादी बैठे राजा,पीडो बैठे प्रजा मोही। राजा को बनाऊ कुकडा। प्रजा को बनाऊ गुलाम। शब्द साँचा,पींड काचा। गुरु का बचन जुग जुग साचा ॥ साधना मे भयानक दॄश्य दिखे तो घबराना मत,माँ काली जी का स्मरण करे आदेश आदेश आदेश …………