Thursday, 15 January 2015
मित्रो हमारी देह ईश्वर कि और से हमें सबसे बड़ा वरदान है.क्युकी अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाये तो हम धन,वैभव,सुख आदि का भोग नहीं कर पाते है.और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते है.कई उपचार किये जाये।औषधि ली जाये किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है.और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है. परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है.यहाँ के ऋषि मुनि ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग कि उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है.संसार में सर्व प्रथम काया कल्प पर अगर किसी ने चर्चा कि तो वो हमारे भारत के ऋषि आदि ने ही कि,आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में.और इस क्षेत्र में कई कई शोध किये हमारे साधको तथा संतो ने.आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है.यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से काया कल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तंत्र।यही कारण है कि आज भी उच्च कोटि कि औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है.जो कि देह को रोगो से मुक्त करती है.और यही पारद जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तो,देह को रोग मुक्त करता है साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सिच कर उसे अध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है.रोग मुक्ति के हेतु भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते है.और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते है.उसका मुख्य कारण ये है कि,पारद में औषिधि तत्त्व भी विद्यमान होते है.अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते है तो,आपको दो मार्गो से लाभ प्राप्त होने लगता है.प्रथम मंत्र के माध्यम से उसमे स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते है.और दूसरा उसके स्पर्श में आयी हर वस्तु औषिधि में परिवर्तित हो जाती है. विशेषकर वीर्य से सम्बंधित दोषो में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र कि तरह कार्य करता है. अतः असाध्य रोगो से भयभीत न हो उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने.आईये जानते है इस दिव्य विधान को. साधना आप किसी भी सोमवार से आरम्भ करे.समय रात्रि या दिन का कोई भी आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते है.आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बंधन नहीं है.स्नान कर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दे और उस पर कोई भी पात्र रख दे.इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करे.सर्व प्रथम गुरु तथा गणपति का पूजन करे.अब भगवान रसेश्वर का सामान्य पूजन करे.शुद्ध घृत या तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई रखे.इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है.अब आपको निम्न मंत्र को पड़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है. ॐ रुद्राय फट १०८ बार आपको उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है.इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ११ माला जाप करे. ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः Om Hraam Hraam Ayim Joom Sah Mrityunjayay Raseshwaraay Sarv Rog Shantim Kuru Kuru Namah ११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः रसलिंग पर निम्न मंत्र पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है. ॐ हूं सर्व रोग नाशाय रसेश्वराय हूं फट Om Hoom Sarv Rog Naashaay Raseshwaraay Hoom Phat इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान से प्रार्थना करे.उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है.रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाये।और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मंदिर में दान कर दे कुछ दक्षिणा के साथ.बाद में नित्य मूल मंत्र जिसका आपने रुद्राक्ष माला पर जाप किया है.उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभी मंत्रित कर ले और ग्रहण कर ले.ये साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते है.जिन लोगो के पास पारद निर्मित महारोग नाशक गुटिका है वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दे.और ११ दिनों बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर ले,लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।बाकि साधना आप पूर्ण विश्वास से करे आपको अवश्य लाभ होगा।आप सभी निरोगी हो इसी कामना के साथ. मित्रो हमारी देह ईश्वर कि और से हमें सबसे बड़ा वरदान है.क्युकी अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाये तो हम धन,वैभव,सुख आदि का भोग नहीं कर पाते है.और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते है.कई उपचार किये जाये।औषधि ली जाये किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है.और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है. परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है.यहाँ के ऋषि मुनि ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग कि उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है.संसार में सर्व प्रथम काया कल्प पर अगर किसी ने चर्चा कि तो वो हमारे भारत के ऋषि आदि ने ही कि,आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में.और इस क्षेत्र में कई कई शोध किये हमारे साधको तथा संतो ने.आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है.यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से काया कल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तंत्र।यही कारण है कि आज भी उच्च कोटि कि औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है.जो कि देह को रोगो से मुक्त करती है.और यही पारद जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तो,देह को रोग मुक्त करता है साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सिच कर उसे अध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है.रोग मुक्ति के हेतु भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते है.और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते है.उसका मुख्य कारण ये है कि,पारद में औषिधि तत्त्व भी विद्यमान होते है.अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते है तो,आपको दो मार्गो से लाभ प्राप्त होने लगता है.प्रथम मंत्र के माध्यम से उसमे स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते है.और दूसरा उसके स्पर्श में आयी हर वस्तु औषिधि में परिवर्तित हो जाती है. विशेषकर वीर्य से सम्बंधित दोषो में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र कि तरह कार्य करता है. अतः असाध्य रोगो से भयभीत न हो उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने.आईये जानते है इस दिव्य विधान को. साधना आप किसी भी सोमवार से आरम्भ करे.समय रात्रि या दिन का कोई भी आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते है.आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बंधन नहीं है.स्नान कर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दे और उस पर कोई भी पात्र रख दे.इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करे.सर्व प्रथम गुरु तथा गणपति का पूजन करे.अब भगवान रसेश्वर का सामान्य पूजन करे.शुद्ध घृत या तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई रखे.इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है.अब आपको निम्न मंत्र को पड़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है. ॐ रुद्राय फट १०८ बार आपको उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है.इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ११ माला जाप करे. ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः Om Hraam Hraam Ayim Joom Sah Mrityunjayay Raseshwaraay Sarv Rog Shantim Kuru Kuru Namah ११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः रसलिंग पर निम्न मंत्र पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है. ॐ हूं सर्व रोग नाशाय रसेश्वराय हूं फट Om Hoom Sarv Rog Naashaay Raseshwaraay Hoom Phat इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान से प्रार्थना करे.उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है.रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाये।और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मंदिर में दान कर दे कुछ दक्षिणा के साथ.बाद में नित्य मूल मंत्र जिसका आपने रुद्राक्ष माला पर जाप किया है.उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभी मंत्रित कर ले और ग्रहण कर ले.ये साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते है.जिन लोगो के पास पारद निर्मित महारोग नाशक गुटिका है वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दे.और ११ दिनों बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर ले,लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।बाकि साधना आप पूर्ण विश्वास से करे आपको अवश्य लाभ होगा।आप सभी निरोगी हो इसी कामना के साथ.
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