Sunday, 18 January 2015
agar kese ko yea tel chayea yea to mujea email kejea meara email id hea sagar.mashru24@gmail.com शिवाम्बु द्वारा धातु वेधन की क्रिया पर जब हम बात कर रहे थे तो उस दौरान हमने बताया था की कुछ विशेष कल्पों के सेवन से शारीरिक पारद वेधक गुणों से युक्त हो जाता है उन्ही कल्पों में से यह सिद्ध अंकोल कल्प भी एक है। विगत कई वरशो से आयुर्वेद का एक कल्प लोगो के बीच उलझी हुयी पहेली बना है और जिसे सुलझाने के चक्कर में न जाने कितने लोग ख़ुद ही उलझ गए .और वो कल्प है अंकोल कल्प आख़िर क्या बात है की लोग इसके पीछे पड़े हुए हैं .... तंत्र के प्राचीनतम ग्रंथों में लिखा है की इसके तेल(आयल) की बूँद भी मुर्दे को कुछ पलों के लिए जीवन दे देती है .पर जब हम तेल निकालने जाते हैं तो या तो वो निकलता ही नही या फिर जल जाता है तो क्या करें, क्या हमारे वो तंत्र ग़लत हैं कदापि नही..सच तो यह है की आधुनिक समय में हम ख़ुद ही उन सूत्रों को भूल गए हैं जिनके द्वारा हमारे पूर्वज प्रकृति का सहयोग प्राप्त करके अपना अभिस्थ साध लेते थे. इस तेल को प्राप्त करने की विधि जो की अनुभूत है कुछ इस प्रकार है.सबसे पहले तो जहा अंकोल का वृक्ष हो वह जाए और यह देख लें की उस पर फल आ गए हैं दूसरे दिन वह जाकर उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करें और उस शिवलिंग के सामने एक घाट(मटका) की स्थपना करें और अघोर मन्त्र का जप करते हुए एक धागे से उस शिवलिंग,घाट और वृक्ष को बाँध दे और प्रतिदिन अघोर मंत्र की ११ माला करें।जब फल पाक जायें तो उन्हें तोड़कर उस मटके में रखते जायें जब वो मटका भर जाए तो योगिनियों और भैरव पूजन संपन्न करें और उन फलों को थोड़ा कूट कर पातळ यन्त्र के द्वारा आयल निकाल लें. ४ से ५ घंटे में तेल निकल जाता है अग्नि देते समय सावधानी रखेर्ण और मध्यम अग्नि दे. फिर उस तेल पर अघोर मंत्र की ११ माला जप करे और इच्छा अनुसार प्रयोग करें .एक बात और सिर्फ़ तेल से कुछ नही होता यदि १ भाग अंकोल तेल में २ भाग तिल का तेल और सिद्ध पारद भस्म न मिली हो तो वो मरीत्संजिवी नही होता है हाँ अन्य कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है.अंकोल तेल में दो भाग तिल का तेल मिला कर नाशय लेने से जरा मृत्यु का नाश होता है .३०० वर्ष की आयु होती है और किसी भी विष का कोई पराभव पूरे जीवन भर नही होता है. इसके अन्य प्रयोग इस प्रकार हैं. गुरूवार को हस्त नक्षत्र में यदि इसके मूल को शास्त्रीय रूप से प्राप्त करके कर्पूर और शहद के साथ यदि खाया जाए तो नश्त्द्रिष्टि वाला भी देखने लगता है. इस तेल से मर्दित पारद बंधित होकर ताम्र को स्वर्ण में बदल देता है. कृष्ण अंकोल का तेल अदृश्य क्रिया के काम आता है। आइये इन सूत्रों को सहेजें और अपनी परम्परा पर गर्व करें।****आरिफ****Nikhil at 6:06 PM
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