Thursday, 26 November 2015

Lal Kitab


Lal Kitab Lal kitab sach mea ek dulabh granth sea kam nahi hea aaj kal bhout sea aasea log hea jo lal kitab kea upay deanea mea jara bhi der nahi karta bhalea hu unko lal kitab ka la bhi na pata ho aasa logo ko yea nahi pata ki yea upay karvanea vala aur karnea vala dono ka hi nuksan hoga yea ek aasi book hea jesko sikh nea valea ko vastu ya plam reading sikh ni nahi padthi usko automaticaaly aa jati hea aur yea sikh nea vala kesi bhi joytise kesi bhi plam reading ya vastu dhek nea jaanea valea ko uhi hi parast kar saktea hea kukyi yea lal kitab aasal mea un sab sea uchi hea esko jaanea vala kesi kea ghar mea enter hoti hea bata sakta hea ki unko kya kya problems hea lekin dusra koyi nahi bata sakta es kea upay sea tantra ki bhi kaat hoti hea but usko aachi tarah sea jaanea vala hi es kea upay bata sakta hea varna dono ka nuksan hoga upay kar vanea vala aur karnea vala dono ka aab aap logo kea leyea ek khuse khabri bhi hea aap log bhi es divya lal kitab ko sikh saktea hea vo bhi aapnea ghar mea bhet kea hi kukyi ham lal kitab sikh aanea kea leyea ek whats up group banana rahea hea jesmea yea 2 month ka course hoga jesko sikh nea kea baad aap sea bada sea bada joytise bhi har maan jayea ga ham nea es lal kitab ko jayda sea jayda lok sikh sakyea es sea dusro ki bhalayi kar sakyea es leyea eski rasi sif 600 rs rakhi hea 2 months ki jessea es ka labh jayda sea jayda log utha sakyea aur jan kalyan mea aapna yogdaan dea sakyea to agar koyi bhi meara bhai ya bhen esko sikh na chata hea to merea whats no mea contact kar kea meara acoount details lea kea paise jama karva dejea kukyi aglea friday sea to course suru bhi hogaya hoga meara whats up no 8401744232 Note : only whats up kejea ga koyi bhul kea bhi phone nahi karna kukyi meara whats up no aur mobile no alag hea

Friday, 6 November 2015


ऊँ नमो आदेश आदेश गुरु जी को मैं आज आपको बता रहा हूँ की कैसे आप वास्तु द्वारा धन संपदा को आमंत्रित करें.. कर्ज और गरीबी से तुरंत छुटकारा पाना चाहते है तो, उत्तर-पूर्व की ओर उत्तर-पूर्व की दीवार का फर्श की तरफ झुकावदार होना बहुत जरूरी है. इससे व्यापार बढ़ता है. धन दौलत की घर में वर्षा होने लगती है.अधिकांश लोग अपने घर के उत्तर-पूर्व के कोने में आग,चूल्हा,कुकिंग गैस, ज्योत, हवन आदि की व्यवस्था करते है.जो बिलकुल ही गलत होता है. इस कोने में आग से सम्बन्धित कोई भी काम नहीं होना चाहिए.जेनरेटर, गीजर, बायलर, भट्टी की गर्मी तक भी इस कोने में नहीं आनी चाहिए. 08401744232 अपने घर के हर कमरे में उत्तर-पूर्व की ओर ढलान रखें. इससे गयी खुशहाली भी लौट आती है. दक्षिण-पश्चिम भाग की ऊँचाई और उत्तर-पूर्व की ओर का ढलान घर में सुख शान्ति को बहाल करने वाला होता है. घर के उत्तर-पूर्व में पानी का दरिया, झील, या तालाब हो तो व्यक्ति को अमीर बनते देर नहीं लगती है. 08401744232 आपके आवासीय भवन या फेक्ट्री के भवन में उत्तर-पूर्व का कोना कटा हुआ है तो आपकी उन्नति किसी भी प्रकार से नहीं हो अक्ती है. अर्थात उन्नति के मार्ग में अनेक बाधाए उत्पन्न हो सकती है. उत्तर-पूर्व में यदि ऊँचा चबूतरा भी है तो दुनिया के सारे कष्ट आपको भोगने ही है.उत्तरी क्षेत्र का कटाव उस भवन में रेह्न्र वाले, पुरुषों को बर्बाद कर देता है. और पूर्वी क्षेत्र का कटाव स्त्रियों को भारी कष्ट प्रदान कर देता है.हमेशा याद रखे कि कैसीभी स्थिति हो कभी भी भूल कर उत्तर-पूर्व को ऊँचा ना रखें. यदि है तो इसे ठीक करवा देने में ही भलाई होती है. बिजनेस बहुत ही यदि मन्दा पढ़ गया हो तो दक्षिण की चाहरदीवारी के मुंडेर पर ईंटो की चिनाई करवा कर उसे ऊँचा कर दे, इससे व्यापार में तेजी आनी शुरू हो जायेगी. और उत्तरी दीवार को नीचा राखे, कहने का मतलब यह है कि ऊँची उत्तरी दीवार व्यापार को रोकती है, और उसमे बाधा उत्पन्न करती है. उत्तरी फर्श और उत्तरी दीवार को ठीक करके आप बंद पड़े व्यापार को भी एक गति दे सकते है. घर का भवन या फेक्ट्री का भवन बनाते समय सबसे बाद में उत्तरी दीवार बनवायें. 8401744232 भवन के उत्तरी वायव्य, पश्चिमी, नैऋत्य, दक्षिणी नैऋत्य, और पूर्वी आग्नेय में यदि द्वार होता है तो, धन के लिए यह शुभ नहीं होता है. इस दिशाओं में खिड़कियाँ, दरवाजे, रोशनदान, बंद करा दें और हवा एवं प्रकाश तक भी इन दिशाओं में न आने दें. अन्यथा प्राप्त धन या अपनी जमा पूँजी भी खत्म हो जाती है. भवन का उत्तरी भाग ऊँचा न रखे इससे दुर्भाग्य पूर्ण हवाए उत्पन्न होती है. और घर का दक्षिण-पश्चिम भाग नीचा ना रखे, और यहां कुआं, अंडरग्राउण्ड टैंक, बौरवेल, आदि भी ना लगाए. इससे जानलेवा ऊर्जा पैदा होती है. और इस बात का भी हमेशा ध्यान रखे कि भवन के बीचो बीच में कुआं, टैंक, बोरवेल, बेसमेंट, आदि नहीं होना चाहिए. इनसे घर के लोगो का दुर्भाग्य शुरू हो जाता है. अगर आपकी कोई भी समस्या या सुझाव है तो आप मुझे मेरे वटस ऐप नंबर पे मैसज करें 8401744232 जय महाकाली

Friday, 24 April 2015


* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

* गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार ॥  * सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।  माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥ आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।  नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥ सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥ सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥                      । ॐ नमः शिवाय । जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥ जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥ अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करोभक्तन हित कामा ॥ नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म केदु: ख मिट जावे ॥ जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूतपिशाच निक्ट नहीं आवे ॥ ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारावर्णत न जावे ॥ निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥ घट - घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥ भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥ तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जनकरते पूजा ॥ चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करणअमंगल हारी ॥ पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥ गुरू मछेन्द्र - गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥ शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥ नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मारभक्तन रखवारा ॥ अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनिजन पावे न पारा ॥ दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हमशरण तुम्हारी ॥ योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥ प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़ेअरू योग प्रचारा ॥ हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥ चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥ अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥ काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिनमेरा कौन साहाई ॥ अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥ कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्धजगत उजियारा ॥ योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म सेध्यान लगाया ॥ ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्टसिद्धि नव निधि धर पावे ॥ शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्टअधम को तारा ॥ अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥ शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख,गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥ सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धुयोगी चमत्कारी ॥ पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञानको दीजे ॥ पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥ अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥ जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥ जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होयसिद्ध साक्षी जगदीशा ॥ हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥ बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्णहोई ॥                              -दोहा- सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ । मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥ अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार । कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार । सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥ हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥ रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्घता का नियम है 

yantra leakhan vidhi


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Wednesday, 22 April 2015


अघोर भैरवी साधना*अगर दुर्भाग्य साथ न छोडे और हर कदम पर बाधा बनकर उपस्थित हो,हर तरफ से जिवन मे खूशीया कौन नहि चाहते है परंतु पूर्वजन्म के येसे भि दोष है हमारे ज्यो हमे रुलाते है,ज्यो हमे शिष्य नहि बल्कि अनुयायि बनाते है.अब तो इन सारि दोषो से लढना है,नहि तो ये दोष हमे ज्योतीष्यीयो के गुलाम बना देगे.गुरु और इष्ट मे अविश्वास का जन्म कर देगे.**भगवान से भिक मांगना ये शिष्यो के कार्य नहि है.येसि अनुमति हमारे सदगुरुजी हमे नहि देते है..................................**’’ ब्रम्हांड से कह दो हमे भक्ति नहि साधना चाहिये ‘’ ये बात सद्गुरुजि ने कहि थि.....................**जिवन मे खूशिया सदगुरुजी कि क्रुपा आर्शिवाद से हि मिल सकति है. और उन्हिकि क्रुपा से मिलि है  अघोर भैरवी साधना ज्यो अत्यंत प्रभावि है और जिवन कि सारि बाधाओको दुर कर देति है दोषो सहित.* "* *""*साधना सामग्री :-  कालि हकीक माला, मट्टि का दीपक , काले वस्त्र और आसन ,कपूर .*" "*विधि :-  सर्वप्रथम स्नान करके साधना मे प्रवेश किजिये ,दक्षिण दिशा कि और मुख करते हुये साधना करनी है. अघोर भैरवी साधना से पूर्व हि गुरुपूजन एवँ गुरुमंत्र जाप और निखिल रक्षा कवच कि पाठ आवश्यक है. मट्टि कि दीपक मे कपूर जलाये और अग्नि कि लौ को देखते हुये कालि हकिक माला से 9 मालाये जाप 8 दिन करनी आवश्यक है और 9 वे दिन हवन किजिये ( हवन मे आहुति के लिये काले तिल, लौंग, कालि मिर्च का हि उपयोग करे ) तभी साधना पूर्ण मानी जाति है ,यह साधना गुप्त नवरात्रि मे करनी है , किसि विशेष मनोकामना हेतु हम संकल्प ले सकते है.*" "मंत्र : -"" ""॥ ॐ अघोरे ऎँ घोरे ह्रीँ सर्वत: सर्वसर्वेभ्यो घोरघोरतरे श्री नमस्तेस्तु रुद्ररुपेभ्य: क्लीँ सौ: नम: ॥" साधना समाप्ति के बाद माला को जल मे किसी भि काले वस्त्र मे एक नारियल और सुपारि कि साथ बान्धकर विसर्जित किजिये.और जिवन मे कोइ भि समस्या आये तो इसि दीपक मे थोडि कपूर जलाते हुये अपनि समस्या बोलकर थोडि मंत्रा जाप कर लिजिये किसी भि समय मे अनुकुलता प्राप्त होगि.इस साधना को करते समय मे बडि विचित्र अनुभूतिया देखनि मिल सकति है.ज्यो किसीके पास plz share मत किजिये.

अघोर भैरवी साधना*अगर दुर्भाग्य साथ न छोडे और हर कदम पर बाधा बनकर उपस्थित हो,हर तरफ से जिवन मे खूशीया कौन नहि चाहते है परंतु पूर्वजन्म के येसे भि दोष है हमारे ज्यो हमे रुलाते है,ज्यो हमे शिष्य नहि बल्कि अनुयायि बनाते है.अब तो इन सारि दोषो से लढना है,नहि तो ये दोष हमे ज्योतीष्यीयो के गुलाम बना देगे.गुरु और इष्ट मे अविश्वास का जन्म कर देगे.**भगवान से भिक मांगना ये शिष्यो के कार्य नहि है.येसि अनुमति हमारे सदगुरुजी हमे नहि देते है..................................**’’ ब्रम्हांड से कह दो हमे भक्ति नहि साधना चाहिये ‘’ ये बात सद्गुरुजि ने कहि थि.....................**जिवन मे खूशिया सदगुरुजी कि क्रुपा आर्शिवाद से हि मिल सकति है. और उन्हिकि क्रुपा से मिलि है  अघोर भैरवी साधना ज्यो अत्यंत प्रभावि है और जिवन कि सारि बाधाओको दुर कर देति है दोषो सहित.* "* *""*साधना सामग्री :-  कालि हकीक माला, मट्टि का दीपक , काले वस्त्र और आसन ,कपूर .*" "*विधि :-  सर्वप्रथम स्नान करके साधना मे प्रवेश किजिये ,दक्षिण दिशा कि और मुख करते हुये साधना करनी है. अघोर भैरवी साधना से पूर्व हि गुरुपूजन एवँ गुरुमंत्र जाप और निखिल रक्षा कवच कि पाठ आवश्यक है. मट्टि कि दीपक मे कपूर जलाये और अग्नि कि लौ को देखते हुये कालि हकिक माला से 9 मालाये जाप 8 दिन करनी आवश्यक है और 9 वे दिन हवन किजिये ( हवन मे आहुति के लिये काले तिल, लौंग, कालि मिर्च का हि उपयोग करे ) तभी साधना पूर्ण मानी जाति है ,यह साधना गुप्त नवरात्रि मे करनी है , किसि विशेष मनोकामना हेतु हम संकल्प ले सकते है.*" "मंत्र : -"" ""॥ ॐ अघोरे ऎँ घोरे ह्रीँ सर्वत: सर्वसर्वेभ्यो घोरघोरतरे श्री नमस्तेस्तु रुद्ररुपेभ्य: क्लीँ सौ: नम: ॥" साधना समाप्ति के बाद माला को जल मे किसी भि काले वस्त्र मे एक नारियल और सुपारि कि साथ बान्धकर विसर्जित किजिये.और जिवन मे कोइ भि समस्या आये तो इसि दीपक मे थोडि कपूर जलाते हुये अपनि समस्या बोलकर थोडि मंत्रा जाप कर लिजिये किसी भि समय मे अनुकुलता प्राप्त होगि.इस साधना को करते समय मे बडि विचित्र अनुभूतिया देखनि मिल सकति है.ज्यो किसीके पास plz share मत किजिये.

Tuesday, 21 April 2015

*Shabar Mutti Peer Mantra


*Paryog Vidhi  * Yeh mantra kisi bhi guruwar kiya ja sakta hai. * Jap ke liy White hakik ki mala priyapat hai. * Sarsho ke tel ka diya jala sakte hai. * Loban or dhup ya agrbati istmal kare. * Ye 40 day ki sadhana hai. Ye Raat me 10 baje ke bad sadhana suru kare. * 11 mala daly jap kare or bharahamchari ka palane kare. * Jab Mutthi Peer samne aay dare na or be hizak apne man ki bat keh de. **Mantra* *Bismillah arrahmaan nirrahim Sah chaker ki bavi,Gale motiyan ka haar, lanka soo kot samunder si khai,jahan phire mohmmad vir ki duhai, koon vir aage chale,Suleman vir chale, Durshani Vir chale, Nadirshah vir chale.Mutthi Peer chale, Nahi chale toh hajrat suleman ki duhai,Shabad Sancha, pind kancha, chalo mantra ishvaro vacha. * ** *

Thursday, 16 April 2015

vasikaran siddhi


Vasikaran vasikaran aaj kon yes vidya sea parechet nahi hoga sab log vaikaran siddhi pana chatea hea sab log samaj mea aapne koye value banana chatea hea sab log chatea hea ke log vahe karea jo vo chata hea but yea siddhi pana eetna aasan nahi hea vasikaran sadhana to bhout mel jayea ge but safal kuch he hoge aur kam to kuch he karea ge to kya koye aap insan ke sa vasikaran nahi kar payea ga es baat ko dhyan mea leakar meanea aap ne vasikaran siddhi ka dusro kea leyea upyog karnea ka nirnaye keya hea haa but aap ko eskea leyea pay karna hoga koye mea apne siddhi ka upyog kese aur kea leyea karuga to us insan par siddhi ka reen char jayea ga aur jespar vasikaran keya hoga vo dhek sea vas mea nahi aayea ga to us reen ko chukanea kea leyea pay karna hoga vo bhi bhout kam vasikaran 108 types sea aap log karva saktea hea mujsea aur yea 108 vasikaran vidya baba aadam kea jamanea ke vidya hea es leyea aap mujea pea pura visvas dekha saktea ho

Friday, 6 March 2015

शाबर महाकाली


े किसी भी मंगलवार के दिन शाम को 6:30 से 7:30 के समय मे मंत्र का 108 बार जाप कर लिजिये और 21 आहुती घी का दे साथ मे एक नींबू मंत्र का जाप करके चाकू से काटे तो बलि विधान भी पूर्ण हो जायेगा,नींबू को हवन कुंड मे डालना ना भूले. अब जब भी आपको अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु विधान करना हो तब जमीन पर थोडासा कुछ बुंद जल डाले और हाथ से जमीन को पौछ लिजिये. साफ़ जमीन पर कपूर कि टिकिया रखे और मन ही मन अपनी कामना बोलिये.अब तीन बार "ओम नम: शिवाय" बोलकर कपूर जलाये और माहाकाली मंत्र का जाप करे,यहा पर मंत्र जाप संख्या का गिनती नही करना है और जाप करते समय ध्यान कपूर के ज्योत मे होना चाहिये इसलिये मंत्र भी पहिले ही याद करना जरुरी है. कम से कम 3-4 टिकिया कपूर का इस्तेमाल करे और कपूर इस क्रिया मे बुज़ना नही चाहिये जब तक आपका जाप पूर्ण ना हो और इतने समय तक जाप करे अन्दाज से के आपका 21 बार मंत्र जाप होना चाहिये.अब आपही सोचिये आपको रोज कितना कपूर जलाना है. साधना तब तक करना है जब तक आपका इच्छा पूर्ण ना हो और इच्छा पूर्ण होने के बाद कुछ गरिब बच्चो मे कुछ मिठा बाटे क्युके इच्छा पूर्ण होने के खुशी मे मिठा तो बनता है यार. अब आगे सोचना ही क्या है आनेवाले मंगलवार से साधना शुरू कर दो..... मंत्र- ll ओम नमो आदेश माता-पिता-गुरू को l आदेश कालिका माता को,धरती माता- आकाश पिता को l ज्योत पर ज्योत चढाऊ ज्योत कालिका माता को,मन की इच्छा पुरन कर,सिद्धी कारका l दुहाई माहादेव कि ll आदेश आदेश आदेश.....

Saturday, 28 February 2015

MAYURESH STOTRA - SABHI MANOKAAMNAON KI


*“Vakrtund Mahakaay Soorykoti Samprabha |**Nirvighnam Kuru Me Dev Sarv Kaaryeshu Sarvada ||” *Jai SadgurudevDear Brothers and Sisters,  We as per tradition and owing to the fact that we have seen these types of procedures in daily life, we are accustomed to do them. But in accordance with shastras too, Lord Ganpati is worshipped before doing any auspicious work.Brothers and sisters, all of you know that Lord Ganpati destroys all types of obstacles, provide accomplishments in work and completeness to life in all respects.  It has been said in “Kalau Chandi Vinayako” that In Kalyuga, only Durga and Ganesh can provide complete success. All human beings, gods and devils perform sadhna of Ganpati Ji for getting success in every work. Even Lord Shiva himself has done Ganesh sadhna and performed his work without any interruption. Tulsidas has said in Ram Charit Maanas that----  “ Jo Sunirat Siddhi Hoy , Gan Naayak Karivar Vadan |Karau Anugrah Soi, Buddhi Raashi Shubh Gun Sadan||”Not even in India but all sadhaks of world do Ganpati sadhna for accomplishment of their work and getting siddhis in all sadhnas… Sadgurudev has told many procedures of accomplishing this sadhna, which include Mantric, tantric and Stotra procedures. In it, Mayuresh Stotra is also described. Though there are hundreds and thousands of Stotras related to Ganpati Ji but Mayuresh Stotra is considered the best. This mantra is completely activated in itself. Therefore, reading it provides complete success.Mayuresh Stotra is considered best for getting rid of all type of diseases and anxiety, for peaceful family life, for getting rid of child diseases, for complete peace and for complete success and progress in every field…. This Stotra can be done by any person irrespective of their sex and age. It is auspicious if we start the day with this Stotra….. This sadhna can be started from any of Wednesday…  1- East direction, yellow or white aasan, Ganpati idol/picture/yantra….2- Curd, Durva (Green grass), Kush, Flower, Rice, Vermillion, Yellow mustard and Supaari. These eight things have to be taken into container and should be offered as Ardhya….3- In absence of any article, rice can be used.4- Ghee lamp is very important and so is offering of Modak (favourite sweet of Lord Ganesha) and Laddu ( round-shaped sweet) Sadhak should take bath in morning and sit on aasan facing east direction and meditate on Lord Ganpati.“ Sarv Sthooltnum Gajendrvadnam Lambodram SundaramPrasyandanmdhugandhlubdhmdhupvyaaloolgandsthalam Dantaaghaatvidaaritaareerudhireh Sindoorshobhaakar, Vande Shailsut Ganpati Siddhipradam Kaamdam || Sindooraabh Trinetra Prathutarjathat Hamerddhaanstpadmerddhaanam Dant Pashaakushesht-anddhu Rukarvilasiddhijpura Viraamam,  Baalendushautmaulli Karipativadnam Daanpuraargand- Bhaugindra addhbhoop Bhajat Ganpati Raktvastraangraangam Sumukhaschaika-dantascha kapilo gajakarankah |Lambodarascha vikato vidhna-naaso vinaayakah ||Dhumraketu ganaadhyaksho bhaalachandra gajaananah |Dhvaada-shaitaani naamaani ya: pathech-chhrunuyaa-api ||Vidhyaa-rambhe vivaahe cha praveshe nirgame tathaa |Sangraame sankate chaiva vidhna-stasya naa jaayate ||Now do Shodashaaupchaar poojan of Lord Ganpati Ji….i.e.Aavahan, Aasan, Paadya, Ardhya, Aachmaneey, Bath, Cloth, Yagyopavit, Gandh (scent), Flower-Durva, Dhoop, Lamp, Naivedya, Eating leaf, Pradakshina and Pushpaanjali. Thereafter, recite the below Stotra 11 or 21 times-- *“Mayuresh Stotra”**Bramho Uvach*Puraanpurusham devam nanakreedakaram muda ,Mayavinm durvibhavyam mayuresham namamyham||Paratparam chidanandam nirvikaram hradi sthitam,Gunatitam gunmayam mayuresham namamyham||Srijantampaalyantam ch sanharntam nijechchhyaa,Sarvvighanharam devam mayuresham namamyham||Nanadaityanihantaaram nanarupani vibhratam,Nanaayudhdharam bhaktya mayuresham namamyham||Indradidevtavranndairabhishtutamahanirsham,Sadsadwyakttmvyakattam mayuresham namamyham||Sarvshaktimayam devam sarvrupdhram vibhuam,sarvvidyapravktaaram mayuresham namamyham||parvatinandanam shambhoranandparivardhnam ,bhaktanandkaram nityam mayuresham namamyham||munidhyeyammuninutam munikaamprapurkam ,samashtivyashtirupam tavaam mayuresham namamyham||sarvagyannihantaaram sarvgyankaram shuchim,satygyanmayam satyam mayuresham namamyham||anekkotibramhaandnaayakam jagdishwaram,anantvibhvam vishnum mayuresham namamyham||Mayuresh Uvaachidam bramhkaram strotam sarvpapprashnam,sarvkaampradam nranaam sarvopdravnaashnam||karagrahgatanaam ch mochnam din saptkat,aadhivyadhiharam chaiv bhuktimuktipradam shubham||In this manner, you can make your life auspicious and accomplish your work without any hurdles and attain success in your spiritual lives.This sadhna can be done on any fourth day of each Paksha or every Wednesday or daily too. You can make it as part of your daily sadhna ritual.Isn’t a very easy and simple procedure…..by the grace of Sadgurudev…. *Nikhil Pranaam* *------------------------------------------------------------- * *"वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ | निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||"*  जय सदगुरुदेव,  प्रिय स्नेही स्वजन, हम परम्परा अनुसार भी और अपने आपको चूँकि बचपन से इसी तरह की विधियां दैनिक जीवन में देखी हैं,अतः हम भी उसी पे चलने के आदि हैं, किन्तु शास्त्र सम्मत भी है कि भी शुभ कार्य के पहले भगवान गणपति का स्मरण किया जाता है.  भाइयों बहनों ये सब जानते है कि भगवान गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले, कार्यों में सिद्धि देने वाले, तथा जीवन में सभी प्रकार से पूर्णता देने वाले हैं.  "कलौ चंडी विनायको" के द्वारा कहा गया है कि कलियुग में दुर्गा और गणेश ही पूर्ण सफलता देने वाले हैं......  चाहे मानव हो, देव हो, या असुर हो सभी प्रत्येक कार्य कि सफलता हेतु गणपति जी की साधना संपन्न करते ही हैं, स्वयं भगवान शिव ने भी गणेश साधना सम्पन्न कर अपने कार्यों को को निर्विघ्न संपन्न किया है.  तुलसीदासजी ने राम चरित मानस में कहा है कि---- "जो सुमिरत सिद्धि होय, गण नायक करिवर वदन | करउ अनुग्रह सोई, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन ||"  भारत के ही नहीं वरन विश्व के सभी साधक अपने कार्यों और समस्त साधना में सिद्धि हेतु गणपति की साधना करते ही हैं.....  सदगुरुदेव ने इनकी साधना की अनेक विधियाँ बताई हैं, मांत्रिक भी और तांत्रिक भी साथ ही स्त्रोत भी. उनमें से ही एक मयुरेश स्त्रोतका वर्णन भी है. यूँ तो गणपतिजी से सम्बंधित सैकड़ों, हजारों स्त्रोत हैं, किन्तु मयुरेश स्त्रोत उनमे सर्वोपरि माना गया है . यह मन्त्र अपने आप में पूर्ण चैतन्य है अतः इसका पाठ करने से ही पूर्ण सफलता की प्राप्ति होती है.  सभी प्रकार की चिंता एवं रोग, गृह बाधा में शांति हेतु, बच्चों के रोग निवारण हेतु, शुख शांति प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण सफलता और उन्नति के लिए मयुरेश स्त्रोत को सर्वश्रेष्ठ माना गया है......  इस स्तोत्र को सभी व्यक्ति स्त्री पुरुष, बाल-वृद्ध,युवा कोई भी कर सकता है . हमारे जीवन में यदि इस स्त्रोत के पाठ से दिन का प्रारंभ हो तो अति शुभ है.....  इस साधना को किसी भी बुधवार से प्रारम्भ कर सकते हैं.... १- पूर्व दिशा, पीला या सफ़ेद आशन, गणपति मूर्ति या चित्र या यंत्र...... २- दहीं, दूर्वा, कुशाग्र या कुश,पुष्प,अक्षत,कुम्कुम्, पीली- सरसों, और सुपारी . इन आठ वस्तुओं को एक पात्र में लेकर अर्ध्य देना है.... ३- जिन वस्तुओं या पदार्थों का अभाव हो उसके स्थान पर अक्षत का प्रयोग किया जाता है. ४- घी का दीपक अति महत्वपूर्ण है तथा मोदक या लड्डू का भोग...... साधक प्रातः स्नान कर आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुह कर बैठ जाये, और भक्तिपूर्वक भगवान गणपति का ध्यान करें...  "सर्व स्थूलतनुम् गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम  प्रस्यन्द्न्मधुगंधलुब्धमधुपव्यालोलगंडस्थलम | दंताघातविदारितारीरुधिरे: सिन्दुरशोभाकर, वन्दे शैलसुत गणपति सिद्धिप्रदं कामदम || सिन्दुराभ त्रिनेत्र प्रथुतरजठर हमेर्दधानस्त्पदमेर्दधानम्  दंत पाशाकुशेष्ट-अन्द्दु रुकर्विलसद्विजपुरा विरामम, बालेन्दुद्दौतमौली करिपतिवदनं दानपुरार्र्गन्ड- भौगिन्द्रा बद्धभूप भजत गणपति रक्तवस्त्रान्गरांगम . सुमुखश्चेक़दंतश्च कपिलो गजकर्णक: लम्बोदरश्च विक्तो विघ्ननाशो विनायकः धूम्रकेतु गणध्यक्षो भालचन्द्रो गजानना: द्वादशेतानी नामानि य पठच्छ्रणुयदपि | विद्धारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा | संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्यतस्य ना जायते ||" अब गणपति जी का पूर्ण षोडशोपचार पूजन करें.....अर्थात-- आवाहन, आसन, पाद्धय, अर्ध्य,आचमनी

Friday, 27 February 2015

बिरहना पीर प्रकट करना


लौट गया सिकंदर


GRAHAN VIDHAAN - SADGURUDEV PRADATT TANTRA BADHA NIVARAN PRAYOG


Jai Sadgurudev, NityamShudhamNirabhaasamNirakaaramNirjanam |NitybodhamChidanandamGurum Brahm Namaamyham || Dear brothers and sisters, Guru has got an important place in life since without Guru, life is like a boat without boatman, like a horse without control. In other words, life loses its meaning.                  Happiness and sufferings are part and parcel of life. Common person does not know why suddenly we are confronted with all these troubles, why happy life has suddenly transformed to hell?     So many such questions arise in our mind and we get entangled in whirlpool of such thoughts. It is due to absence of life in Guru who could have taken us out of problems, could have told what is Tantra? And what is Tantra obstacle?      I have seen many families which were destroyed due to Tantra obstacles.      Tantra obstacle is very troublesome in anyone’s life since life after it become very problematic. Just think life after Tantra procedure.            Just think a scenario where head of family who is sole bread earner for family suddenly falls ill and is unable to get up from bed, engagement of daughter is broken again and again, questions marks are raised on competence of son to do job, inflow of money stops, social respect is on stake .Then what can be done. Doing Tantric procedure is very easy. But consequences thereafter are very disastrous. Life of suffering person become hell-like and unbearable……..   Certain situations are created sometimes- For example, creation of deadly environment in home, children feel terrified and fell ill, quarrelsome environment is created in house. And an amazing fear surrounds us, then it should be understood that Tantra obstacle has occurred.      But is there any solution available to us?      Though you all read it too like Tantra Baadha Nivaran Diksha, Tantra Baadha Nivaran Procedure…etc.       Tantra procedure can be done by anyone, but its consequences are to be borne by person very terribly. Seen in one manner, the whole life is disturbed and gets out of order. For a person to do Tantra procedure and attack someone, it does not require lot of sadhna or hard-work. But in order to eradicate Tantra procedure, it requires a cumbersome sadhna or accomplished and experienced person….:)       Though very special time is approaching us in which we not only can get riddance from such problem but can also secure our future life against such problems.          And that time is solar eclipse…..Isn’t it….:)       Solar eclipse i.e. time to get rid of darkness from our life and enlighten it. Any sadhna done during eclipse time is fructified very quickly.              So brothers and sisters, if you are facing such problem and even if you are not, we should do this procedure so as to secure our future life against such procedures………It is opportunity too and our tradition too. According to Nikhil Tradition, we do not let go any sadhna opportunity…….:)           *Sadhna Procedure: *Since during eclipse time, special poojan is not done. Therefore, do not touch any idol/yantra by hand.  Articles required in this sadhna is one coconut, vermillion, Kajal (Collyrium) , Black agate rosary or coral rosary . Three mustard-oil lamps are also required. In absence of mustard oil, any other oil can be used too.     Take bath and sit in black or Yellow aasan facing south. Dress will be black or Yellow. Perform Guru Poojan mentally and chant 4, 11 or 16 rounds of Guru Mantra. Offer Guru Mantra and seeks blessings from Gurudev and take Sankalp.         Now, mix vermillion with water and with it,make a downward-facing triangle on floor in front of you. On all three vertex of triangle, light lamp of mustard oil. https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEis7XgkdhuUR9Sv7DqPRn8IAstqLXfBHi46VfccuPUoKzweTei4HovdC3AvszHFixcJaul2MijzOTM_UqRBPBmXiH-w-MHw8H8MWdc9oLPw0jkvzdm9fgq_7ftULwEhyKbSzpA2CSd4nUnJ/s320/Untitled.jpg After that, establish coconut inside triangle in such a manner that its tail is facing upward. Apply seven marks of Collyrium on coconut while chanting below mantraMantra: OM AING HREENG MAM SAMAST TANTRA DOSH NIVRITTYE HREENG AING PHAT Now chant 11 rounds of this mantra using black agate/ Rudraksh/ coral rosary.  And thereafter, chant 4 rounds of Guru Mantra and pray to Gurudev for success in sadhna, our life is free from Tantra obstacles and we always remain safe… After completion of sadhna or on next day, leave coconut on any uninhabited place…..:)          “Nikhil Pranaam” =========================================  जय सदगुरुदेव,           नित्यं शुद्धं निराभासं निराकारंनिर्जनम् |         नित्यबोधं चिदानंदम गुरूम ब्रहमनमाम्यहम ||                 स्नेही भाइयों-बहनों गुरु का जीवनमे एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि बिना गुरुके जीवन बिन मांझी के नाव बिना और बिनलगाम के घोड़े बिना है . अर्थात फिर जीवनसिर्फ खींचने के अलावा और कुछ नहीं.          क्योंकि यदि जीवन है तो सुख भी और दुःख भी, साधारण जीवन जिन्हें कुछ नहीं पता कि आखिर ये दुःख क्यों अचानक हमारे जीवन में आ रहे हैं क्यों अचानक अच्छी सुखमय जिंदगी नर्क बनती चली जा रही है ?               भाइयो फिर ऐसे अनेक प्रश्न उभरते हैं दिमाग में, और हम उलझते जाते हैं ऐंसे अनेक झंझावातों में, क्योंकि गुरु नहीं है ना जीवन में जो उबार सके ऐंसे कष्टों से, बता सके कि तंत्र क्या होता ? और क्या होती है तंत्र बाधा ?            मैंने ऐंसे अनेक परिवार देखे हैं जो बेचारे तंत्रबाधा के चलते मिटते चले गए बर्बाद होते चले गए .              तंत्र बाधा अत्यंत ही दुखदायी है किसी के भी जीवन में क्योंकि उसके बाद की जिंदगी बड़ी कष्टदायी और नारकीय हो जाती है . जरा सोचिये की एक तंत्र प्रयोग के बाद का जीवन कैसा होता है .           जब अचानक गृह का मुखिया जिसके सहारे पूरा परिवार पल रहा हो, अचानक रोगग्रस्त होकर बिस्तर से लग जाये, घर में बेटी की शादी बार-बार टूट जाये, नौकरी योग्य पुत्र की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लग जाये, रूपये पैसे की आवक रुक जाये, सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी हो तो ?          भाइयों बहनों तंत्र प्रयोग करना एक अत्यंत सरल प्रक्रिया है. किन्तु इसके बाद के जो परिणाम होते हैं वे अत्यंत भयानक होते हैं क्योंकि इससे गुजरने वाला व्यक्ति या परिवार का जीवन नर्क की भांति होता है जो असहनीय होता है ....          कुछ ऐंसी स्तिथियाँ बन जाती हैं कभी-कभी -- जैसे अचानक घर मे भयावह वातावरण बन जाये, बच्चे अचानक डर कर बीमार रहने लगें,घर में कलह की स्तिथी रहने लगे . और एक अजीब सा डर रहने लगे , तब समझना चाहिए कि निश्चित ही तंत्र बाधा हुई है,          किन्तु क्या इसका कोई उपाय है ?             वैसे आप लोग अक्सर पड़ते भी हैं की तंत्र बाधा निवारण  दीक्षा, तंत्र बाधा निवारण प्रयोग.... आदि             तांत्रिक प्रयोग कोई भी कर सकता है, परन्तु उसके परिणाम व्यक्ति को गहराई से और पीड़ादायक भोगने पड़ते हैं, एक प्रकार से देखा जाये तो पूरी जिंदगी अस्त-व्यस्त हो जाती है . हमला करने या तांत्रिक प्रयोग करने कि विद्या सीखने बहुत साधना या मेहनत नहीं करना पड़ता परन्तु तांत्रिक प्रयोग यदि हो गया तो उसे दूर करने के लिए कठिन साधना या सिद्ध और अनुभवी व्यक्ति की जरुरत पड़ती ही है...... :)           चूँकि अभी हमारे समक्ष अत्यंत विशिष्ट समय का आगमन हो रहा है जब की हम ऐंसी ही किसी भी समस्या से ना केवल मुक्ति पा सकते हैं, अपितु अपने जीवन को ऐसी आने वाली समस्या से सुरक्षित भी कर सकते हैं .         और भाइयो बहनों वह समय है सूर्य ग्रहण का ... हैं ना :)                सूर्य ग्रहण अर्थात जीवन से किसी भी ग्रहण को दूर कर प्रकाशित करने का समय . ग्रहण काल मे की गयी कोई भी साधना अत्यंत तीव्रता से फलित होती है .            तो भाइयों बहनों यदि ऐंसी स्थिति है तो भी और नहीं हैं तो भी ताकि भविष्य को भी सुरक्षित कर सकें, कि ऐसा प्रयोग हो न सके या ऐसी स्तिथी ही बन पाए तो भी हमें इस प्रयोग को करना ही चाहिए  हैं ना ..... क्योंकि मौका भी है और हमारी परंपरा भी . क्योंकि निखिल परंपरा के अनुसार हम कोई भी साधनात्मक अवसर को छोड़ते ही नहीं हैं..... :)   *साधना विधि :-*  भाइयो चूँकि  ग्रहण कल में विशेष पूजा नहीं की जाती  अतः ग्रहण काल में किसी भी विगृह, यंत्र या मूर्ति का हाथ से स्पर्श ना करें .        इसके आवश्यक सामग्री हैं एक नारियल,कुंकुम, काजल और काली  हकीक माला या मूंगा माला और तीन दिए जो कि सरसों के तेल के हों तो अति उत्तम या किसी भी प्रकार का तेल हो सकता है.......           स्नान कर  दक्षिण मुख होकर आसन पर बैठ जाएँ और मानसिक गुरु पूजन कर ४,११

BHAGWAAN PAARDESHVAR SADHNA - KAARYA SIDDHI VIDHAAN

Janmjdukhvinashaaklingam Tat PranmaamiSadashivlingam There is no difference between Lord Shiva and Tantra. All the 64 tantras have been originated from Lord Shiva. He is worshipped by all god and goddesses. From ancient times, he has been worshipped as Isht in various regions of the world. In fact, in highly abstruse form, his symbol in the form of Shivling has been subject of worship in all important regions of the world. And it has been said in various scriptures and Tantra sect regarding Shivling that by worshipping Shivling, person becomes capable of attaining anything in life. Moreover, worship of Lord Shiva is quickly fruitful too because he listens to prayers of his devotee very quickly. Everyone is well aware of this fact. There are various types of Shivling told in Tantra scriptures. Out of them, significance of Parad Shivling is the most since it is replica of Lord Shiva’s sperm. Ras Vigyan and Ras Tantra i.e. Parad Vidya has been one of the great vidyas of our country and it has also been called last tantra. Parad Shivling has been major subject of worship in this Parad Tantra field. This Shivling acts as agent of accomplishment and knowledge. If there is pure Shivling prepared by fully tantric procedure then person definitely attains various types of benefits. It has been approved by scriptures and even Ras Acharyas hold such an opinion. Ancient and modern accomplished sadhak have inarguably accepted the significance of this rare Shivling. According to Tantra, when mercury is capable of saving persons from jaws of death then can it not provide person riddance from our problems?  Definitely, Ras Ling is all capable of resolving problems of both Bhog and salvation. There are many tantric procedures in vogue among Siddhs related to this Ras Ling.  Procedure present here belongs to that set of procedures and it is done on Parad Shivling. This procedure is very easy for all sadhaks. In fact, this procedure can provide sadhak progress in both the aspects. Accomplishment of work here does not mean any particular work rather it is related to sadhak’s progress in life. If sadhak does not get appropriate results even after hard-work, he is facing problem in business etc. or there is problem in his home in one form or the other, then sadhak should do this procedure. If there is any work of sadhak in which he is repeatedly facing problem or work is struck, such obstacle is also resolved. In this manner, this procedure is important for all sadhaks. Sadhak should start this sadhna from any Monday. It can be done in morning or after 9 P.M in the night. Sadhak should take bath, wear yellow dress and sit on yellow aasan facing North direction. Sadhak should spread yellow cloth in front of him and establish *Parad Shivling* on it. Sadhak should then perform Poojan of Sadgurudev and Shivling. In poojan, yellow colour flowers should be offered and yellow coloured sweets/fruits should be offered as Bhog. Sadhak can use any lamp of any oil. After Poojan, sadhak should do tratak on Parad Shivling and chant 21 rounds of below mantra. Sadhak should use yellow agate or Rudraksh rosary for chanting. OM HREENG HOOM OM After completion of chanting, sadhak has to offer 108 oblations of pure ghee in fire. If sadhak can’t do this procedure at home, he can do it in ant Shiva temple. Sadhak should use wood of Bilv tree as Samidha in oblation. It is easily available. If it is not available in sufficient quantity then sadhak should keep one piece of wood of Bilv tree along with wooden blocks of other tress and perform oblation. In this manner, this procedure is completed within one night. If sadhak wants, he can repeat this procedure for 3 or 7 days. Sadhak gets success in his future endeavours. जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् भगवान शिव और तंत्र में कोई भेद ही कहाँ है. ६४ तन्त्रो की उत्पत्ति ही भगवान शिव से मानी गई है. जो सभी देवताओं के भी जो आराध्य है वह भगवान शिव आदि काल से विश्व के कई कई प्रदेशो में इष्ट रूप में पूजित रहे है, वस्तुतः अति गुढ़ रूप में उनका प्रतिक चिन्ह शिवलिंग के स्वरुप में विश्व के सभी प्रमुख प्रदेश में उपासना का विषय रहा है. और इसी शिवलिंग के संदभ में विविध ग्रन्थ एवं तंत्र मत्त में कहा गया है की शिवलिंग की उपासना से व्यक्ति कुछ भी प्राप्त करने के लिए योग्य हो जाता है तथा भगवान शिव की उपासना अति शीघ्र फल दायक भी है क्यों की भोलेनाथ अपने साधको की पुकार को अति शीघ्र सुन लेते है यह तथ्य तो हर कोई जानता ही है. शिवलिंग के विविध प्रकार तंत्र शास्त्रों में बताए गए है उनमे पारद शिवलिंग का महत्त्व सब से अधिक है क्यों की यह शिव सत्व शिव की प्रतिकृति ही है. रस विज्ञान एवं रस तंत्र अर्थात पारद विद्या हमारे देश की एक महान विद्या रही है जिसे तन्त्रो में भी अंतिम तंत्र कहा गया है और इसी पारद तंत्र क्षेत्र की मुख्य उपासना तो पारद शिवलिंग ही रहा है. यही शिवलिंग ही तो मुख्य सिद्धि एवं ज्ञान का कारक होता है. अगर पूर्ण तंत्रोक्त विधान से निर्मित विशुद्ध शिवलिंग हो तो व्यक्ति को निश्चय ही कई प्रकार के लाभ nप्राप्त होते है यह शास्त्र सम्मत है तथा रसाचार्यो का भी यही मत्त है. प्राचीन एवं अर्वाचीन सिद्धो ने इस दुर्लभ लिंग की महत्ता को निर्विवादित रूप से स्वीकार किया है. तंत्र मत्त के अनुसार जो पारद व्यक्ति को मृत्यु के मुख के वापस ले आने की सामर्थ्य रखता है क्या वह पारद हमें हमारी समस्याओ से मुक्ति नहीं दिला सकता? निश्चय ही भोग तथा मोक्ष दोनों समस्याओ के निराकरण के लिए यह रस लिंग सर्व समर्थ है. तथा इसी रस लिंग से सबंधित कई कई तांत्रिक विधान सिद्धों के मध्य प्रचलित है. प्रस्तुत प्रयोग भी उसी क्रम का एक प्रयोग है जिसे पारद शिवलिंग पर सम्प्पन किया जाता है. यह प्रयोग सभी साधको के लिए सहज है. वस्तुतः यह प्रयोग साधक को दोनों पक्षों में उन्नति प्रदान कर सकता है. कार्य सिद्धि का अर्थ कोई एक विशेष कार्य से न हो कर साधक के जीवन की प्रगति के सबंध में है. अगर साधक को परिश्रम करने पर भी उचित परिणाम की प्राप्ति नहीं होती हो, व्यापार आदि में समस्या हो रही हो, या फिर घर परिवार में किसी न किसी रूप से कोई समस्या बनी रहती हो तब यह प्रयोग साधक को करना संपन्न करना चाहिए.  अगर साधक का कोई कार्य है जिसको बार बार करने में समस्या आ रही हो या अटक रहा हो तो उस बाधा का भी निराकरण होता है. इस प्रकार यह प्रयोग सभी साधको के लिए महत्त्वपूर्ण है.यह साधन साधक किसी भी सोमवार के दिन करे. साधक यह साधना सुबह के समय या रात्री में ९ बजे के बाद करे. साधक स्नान आदि से निवृत हो कर पीले वस्त्रों को धारण करे तथा पीले आसन पर बैठ जाए.साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए. साधक को अपने सामने पीले रंग के वस्त्र पर*पारद शिवलिंग* को स्थापित करे. साधक को सदगुरुदेव एवं शिवलिंग का पूजन करना है, इस पूजन में साधक को पीले रंग के पुष्प को समर्पित करना चाहिए तथा पीले रंग की मिठाई या फल का भोग लगाना चाहिए. दीपक तेल का हो. साधक किसी भी तेल का प्रयोग कर सकता है. पूजन के बाद साधक पारदशिवलिंग पर त्राटक करते हुवे निम्न मन्त्र का २१ माला जाप करे. यह जाप साधक पीले हकीक माला से या रुद्राक्ष की माला से सम्प्पन करे. * **ॐ ह्रीं हूं ॐ*** *(OM HREENG HOOM OM)*** मन्त्र जाप पूर्ण हो जाने पर साधक को शुद्ध घी से १०८ आहुति अग्नि में समर्पित करनी है. साधक अगर घर पर यह क्रम न कर सके तो किसी शिव मंदिर में भी यह क्रिया कर सकता है. इस प्रयोग में आहुति की समिधा में बिल्व वृक्ष की लकड़ी का प्रयोग करे यह आसानी से उपलब्ध हो जाती है अगर पर्याप्त मात्र में यह उपलब्ध न हो पाए तो साधक को दूसरे वृक्ष की लकडियों के साथ एक टुकड़ा बिल्व वृक्ष की लकड़ी का रख कर हवन सम्प्पन करे.   इस प्रकार एक ही रात्री में यह प्रयोग पूर्ण होता है. साधक अगर चाहे तो यही क्रम को ३ दिन या ७ दिन तक कर सकता है. साधक को भविष्य में अपने कार्यों में सफलता की प्राप्ति होती है.

Thursday, 26 February 2015

BHAGVATI MAHAKALI TEEVRA KAAMNA POORTI PRAYOG - CHANDRA GRAHAN VIDHAAN

*KaalahPachtiBhootaani, KaalahSamhartePrajaah**KaalahSupteshuJaagarti, Kaalo Hi Durtikramah*Each and every person understands the importance of a particular time potion or Kaal in his life according to his own level of understanding. There is no doubt in the fact that without particular time portion, existence of human is impossible. Not only humans but existence of anyone is impossible. For existence, time is not only necessary but it is also must. Our complete life stands on the speed of time and Kaal. At a particular time, one particular Shakti (power) spreads completely in entire universe and it is then transformed into various rare powers. This happens each and every moment. For example, at particular moment, Bhagwati Aadya Shakti is present in universe with its diverse forms. But at the same time, she keeps on accepting various forms in energy form. In one moment itself, she become Praan energy of some creature, mental energy for some, physical strength for some, health for some and somewhere that energy is becoming destructive and performing death of some. But it is possible that in one small unit of time i.e. moment power is completely transformed. It is possible that person at verge of death gets a new life and contrary to it, it is also possible that a completely healthy person dies. It all depends on particular time which is under the control of a particular power. Therefore in above verse, significance of time has been described that time is capable of swallowing all creatures. In other words, it is in hidden form in which all elements disappear. If we use modern science vocabulary, this concept is known by the name of ‘black hole’. It has been said further that Kaal is the one which destroys all the entities which have taken birth/originated. In other word, it signifies destruction procedure; it has primacy of Tamas character. When everything is in state of sleepiness i.e. in case of illusion or when indefiniteness pervades over, Kaal is alive at that time. It only means cremation ground because cremation ground is also alive and conscious in the night. Abstract meaning of it is Mahanisha too because night (after 11:30p.m) is conscious when all procedures and creatures have slept. It has been said further in verse that time is inaccessible, invincible and cannot be comprehended. Except time, hypothesis of any other universal creature is impossible.In fact, it is not merely a verse rather it is very intense procedure, full of abstruse secrets which can be done only in eclipse time. If this sadhna procedure is decoded it can be understood that this verse describes various forms of Mahakaali. *First line represents Dakshin Kaali form of Bhagwati which contains entire creature with in her. Second line is related to Samhaar Kaali, ruler of destruction. Nisha Kaali represents Mahanisha, as told by third line. On the other hand, fourth line is related to Guhya Kaali. In this manner, this verse describes about quadruple Beej Mantra of Mahakaali.*In fact, this mantra is king of mantra in it because it is capable of providing four virtues of human life as per Hindu tradition viz Dharma , Artha, Kaam and Moksha.These four beejs are full of power of four diverse forms of Mahakaali. Dakshin Kaali provides strength to person’s life in field of attraction and hypnotism. Bhagwati Samhaar Kaali paralyses all the enemies of sadhak. Alongwith it Bhagwati Nisha Kaali provides fame and reputation in sadhak’s life and Bhagwati Guhya Kaali open the door of progress for sadhak in various spiritual aspects. In this manner, this mantra provides sadhak various fruits to sadhak. Since it is related to a particular moment of time, effect of Mahakaali and it power increases multiple times during eclipse time. Procedure and sadhna done during this time provides special success to person. Eclipse time is very special for any sadhak irrespective of his sect. When energy created by special procedures comes in contact with the special energy emitted during eclipse time, sadhak gets quick results.If this quadruple beej mantra related to Bhagwati is chanted during eclipse duration then sadhak not only attains above said special benefits but along with it, it gets transformed into very special procedure for sadhak.This procedure is unparalleled in this respect because it is desire-fulfilment procedure which can be done only in eclipse. Every person has got special desire in his life. Many times, despite trying so hard for fulfilment of wish, when person is not successful then person should take help of divine powers. If we have any desire which is ethically right and we do not have any intention to harm anyone then fulfilment of such desires is approved by Tantra. Tantra path has various types of special procedures for fulfilment of such desires. And if out of these sadhnas, this sadhna is said to be Kohinoor, it won’t be an exaggeration because it is very easy and simple procedure which can be done by any sadhak.Sadhak should do this procedure during the eclipse time. Sadhak should at least start this procedure during eclipse duration. Sadhna may be continued even if eclipse is over. For example, if eclipse duration is of 20 minutes then it is not possible to complete entire procedure in 20 minutes. But at least one should start sadhna during eclipse duration. There is no problem even if procedure continues for more than 20 minutes.Sadhak should take bath and sit on aasan facing north direction. There are no special rules for Aasan and dress etc. Sadhak can sit on any aasan. First of all sadhak should do Guru Poojan, chant Guru Mantra and attain blessings from Sadgurudev for success in sadhna.Sadhak should light a mustard oil lamp in front of him and mentally utter his desire 3times. Sadhak should meditate on four forms of Bhagwati Shri Mahakaali and chant quadruple Beej Mantra. Sadhak has to chant 21 rounds of mantra. Sadhak can use Rudraksh, coral or Shakti rosary for chanting. If sadhak does not have rosary, he can do this procedure without rosary too.OM KREENG KREENG KREENG KREENG PHAT After completion of chanting, sadhak should pray to goddess for her blessings. In this manner, this very easy procedure is completed. But sadhak can feel intensity of this mantra during chanting time. Upon analysing the mantra, sadhak can himself guess the intensity of this mantra. Sadhak should completely utilize auspicious occasion of eclipse and do such amazing procedure for both materialistic and spiritual upliftment and gain complete pleasure in life. ======================================= *कालः पचति भूतानि**, कालः संहरते प्रजाः   **कालः सुप्तेषु जागर्ति**, कालो हि दुरतिक्रमः*हर एक मनुष्य अपने जीवन में समय के विशेष खंड या काल का महत्त्व अपने अपने स्तर पर अवश्य समजता है तथा यह स्वीकार करने में किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होगी की बिना समय के एक विशेष खंड अर्थात विशेष काल के बिना मनुष्य का अस्तित्व असंभव है. और मनुष्य के साथ साथ किसी का भी अस्तित्व असंभव है. अस्तित्व के लिए काल का होना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है. काल और समय की गति के ऊपर ही तो हमारा पूरा जीवन टिका है. विशेष समय  में एक विशेष शक्ति का पूर्ण रूप से ब्रह्माण्ड में प्रसार होता है तथा विविध दुर्लभ शक्तियों में उसका रूपांतरण होता रहता है. यह हर क्षण में होने वाली घटना है. उदाहारण के लिए एक विशेष क्षण में ब्रहांड में भगवती आद्य शक्ति अपने विविध स्वरुप के साथ विद्यमान रहती है. लेकिन उसी समय वह उर्जा रूप में अपने विविध स्वरुप को ग्रहण करती है. एक ही क्षण पे वो कहीं किसी जिव की प्राण उर्जा बनती है, तो कहीं मानसिक उर्जा, कहीं शारीरिक बल, कहीं स्वास्थ्य, तो कहीं वह उर्जा संहार शक्ति बन कर किसी को मृत्यु की क्रिया को भी संपन्न कर रही है. लेकिन हो सकता है काल के एक छोटे से एकम में अर्थात क्षण में ही शक्ति का पूर्ण परिवर्तन हो जाए. यह संभव हो सकता है की एक मरता व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ हो जाए और यह भी हो सकता है की एक पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाए. यह सब काल विशेष का ही खेल है

Monday, 23 February 2015

बिर मुद्रि


बिर मुद्रिका    बहोत दिनो से इस विशय पर खोज चल रहा है कुछ ने तो मंत्र तक छाप दीये किताबो मे परंतु जब उनको पूछो इसको जगाने का विधि क्या है तो फोन काट देगे.जब पता नही कुछ तो क्यू छाप देना मंत्रो को सिर्फ खुद का नाम चलाने के लिये? बिर मुद्रिका बिर कंगन जैसे कार्य करता है सिर्फ फर्क इतना है बिर कंगन मे 52 बिर 64 जोगिनी बाँध सकते है तो कुछ कंगन 51-52 बाँध सकते है और बिर मुद्रिका मे 1-2 या सिर्फ 1 बिर बाँध सकते है.बिर कंगन साथ मे लेकर घूमना खतरे से खाली नही और मुद्रिका पहेन कर घुम सकते है.बिर कंगन मे अष्ट या नव धातु और बिर मुद्रिका सिर्फ एक धातु से बनता है.कंगन कई से काम ले सकते है मुद्रिका से सीमित कार्य होते है.मैने कुछ ज्योतिषी देखे जो बिर मुद्रिका पहेनकर बिना कुंडली देखे सारी बाते बता देते है परंतु उन्होने मेहनत नही की है मुद्रिका बनाने मे ये बात वो मानते है.जैसे "कान्होर्या बिर" इसको कुछ भी पूछो ये हर खबर बताता है और ये आज तक चाँनल से भी आगे है,ये भूत भविश्य भी बता देता है और बदलेमे कुछ नही माँगता.जब फूंक लगाओ तब जागता है और बाकी समय भगवान जाने कहा होता है.इस मुद्रिका को पूर्वषाढा नक्षत्र मे बना सकते है क्युके यह नक्षत्र अद्रुश्य शक्ती को वश करने मे साहाय्यक है.काले घोडे के नाल को शनी अमवस्या के दिन प्राप्त करे और इस नाल को 7 बार शंख की ध्वनि सुनाये.जब अच्छे योग हो तो चन्द्र बल देखकर नाल से मुद्रिका निर्माण करे.जिस दिन मुद्रिका बनाओ उसी दिन उतरण और आपटा के पौधे को निमंत्रण देकर आये,निमंत्रण देते समय ये कहेना है "मि आलो तुया कामासाठी,तू चाल माया कामासाठी" और येसा कहेकर दूसरे दिन दोनो पौधो को उखाड़कर लाये.दोनो पौधो के जड को घर लाने के बाद छाव मे सुखाये और सुखाने के बाद शनिवार को रात्री मे पंचाम्रुत से स्नान कराये और हनुमानजी के मंदिर जाकर उनके चरणो मे रख दे,दूसरे दिन सवेरे सूर्य निकलने से पहिले उन्हे घर पर लाकर सम्भाल कर रखे.जब पूर्वषाढा नक्षत्र हो उस रात मे दोनो जड से (एक हाथ से जल निकाले कुवे से या हैंडपम्प से) जल डालते रहे मुद्रिका पर और मंत्र जाप करते रहे,जाप करते समय गुर्र गुर्र गुर्र....येसा ध्वनि सुनायी देगा तो डरना नही मंत्र जाप करते रहे कुछ समय बाद आवाज आयेगा "क्या चाहते हो मुझसे"तब मंत्र जाप बंद करदे और कान्होर्या बिर को मुद्रिका मे स्थापित होने का प्रार्थना करे और उसे वचन माँगे "जब मै तुम्हेजगाउन्गा तब बिना शर्त तुम मुझे साहय्यता करना",तब वो वचन देकर चला जायेगा. यह बिर मुद्रिका जिन्हे प्राप्त करना हो वह साधक मुझसे सम्पर्क करे.

Friday, 20 February 2015

mahakali beej mantra


kleem mantra mahakali ka beej mantra kehealata hea agar es mantra ka sahe direction colth aur time pea keya jayea to sadhana ko bhout zyada uraja maye measus hota hea aur uspea aanea vale musebato ka pata usko swapan kea mahadeam sea chal jata hea aur mahakali kea darsan bhi swapan mea ho jatea but ha mahakali vardan nahi dea te sif darsan dea te hea aur vo bhi sadhank ke sadhana per depend karta hea ke mahakali usko darsan deana chate hea ya nahi to aab mea aap ko vidhi bata tahu mantra jaap ke 14 din mea 12500 jap khatam karna hea kleem beej ka mala:rudraksh ke direction:daksin kapdea aur asan:kala time:rat ko 10 bajea kea baad mea sadhana karne hoge

Sunday, 15 February 2015

काली तत्व


काली तत्व jay kali kalkatea vale teara vachan jahea na khale jay maa maha kali Dosto es duniya mea sab sea bade takat koye hea to vo he maa kali kuke jab maa aadhe sakti ne sati kea roop mea janam leyea tha tab unko aapna dhe tayag na phada tha kuke uno ne mahadev ke baat nahi mane the esleyea unke aakal mutu hone karan unke aadhure echao kea karan unke e chaao nea sarv(skanentar) ka rup dharan kar leyea tha aur jab parvati rup mea aavtar hu to mahadev ne parvati ji ko tantra ke madheum sea unke purv janam ke e chaa o sea muk keyaa aur bhoat sare siddhi tantra kea madheum sea melea hea aur sabsea bade takat aur siddhi hea mahakali es leyea mahakali sabhi kale sakti ke janne hea aur adhea sakti honea kea karan aur sare kali takat tantra kea madheum sea parap te kea karan aur mahadev ne savam tantra sekha ya esleyea mahadev ke gyan ke takat aur sati ke saatet vahea ke takat air bhi bhoat sare shakti o ko melaya jahea to mahakali bante hea mahakali ke puja muslim amil bhi kartea hea aur koye devi dev take puja muslim nahi kartea yha tak ke mahadev ke bhi nahi mahakali apnea bhakto ke echa pure karnea kea leyea kuch bhi karsakye hea aap ko mea yea baat ek kesa khea kar suna tahu mahakali nea ek bhak ko ek bar unke sanraksa karea ge asa vachan deaa tha aur us vachan ke purte kea leyea unonea mahadev ka bhi aastetva meta deaa tha aur baad mea bapas bhi mahadev ko es jagat mea laye bhi the tabhi sea log kahea nea lagea ke jaymaa kali teara vachan ja yea na vachan na jayea khale to dosto jara soche yea ke ek vachan ke purte kea leyea jo kali mahadev ko nigal sakte hea vo kya kuch nahi karsakte ham aarea ander bhi mahakali ke takat samaves hoti hea bas der hea to usko jaganea ke to aab aap soch rahea hogea ke es tatva ko kea sea jagea kuke agar yea tatva jag gaya to kya dulabh rhea jata hea kese kea leyea to mea aap ko baata du ke kali tatva sif mahakali he jagrut kar sakte hea kuke apne aatma ka sabhad mahi kali kea sath honea ka gyan hona chayea aur yea gyan sif mahakali he karva sakte hea aab aap soch reahea hogea ke ham mea aab kabhi kali tatva nahi jageyea ga kuke mahkali to khud aayea ge nahi yea gyan dea nea air unkea aalava koye aur yea gyan nahi dea sakta to neras mat hoyea mearea dosto kuke mahakali kabhi apnea bhakto ko niras nahi karte jesnea yea tatva banaya usnea bhoat sarea marg bhi deaa hea es tatva ka unsea gyan leyea nea ka to aab mea aap ko baata ta hu ke mahakali kes kes tarekea sea hazir hoge aur tatva gyan dea ge eskea leyea bhoat sarea hindu aur muslim vidhan hea jensea mahakali darsan dea kar man cha ha vardea dea ge aur ham nea ek gutika bhi banayea hea jes sea mahakali darsan bhi deage aur vardan bhi to koye eetne dulabh sadhana yaha likhana thek nahi hoga to jo koye yea sadhana aur gutika chata hea mujea email baat karea mea usea vidhi bata duga to aab tyar ho jayea maa mahakali ke darsan karnea kea leyea Note:mearea pass 2 ya3 vidhan hea mahakali ke darsan karnea kea leyea but usmea sea jayda tar to aae yea es shiv ratre shiv ke bhi shakti param shakti maha kali kea darsan karea sadhana mea es gutika ka upyog hota hea to jo koye bhi gutika chata hea vo mujea email karea

Friday, 6 February 2015

yantra lekhan diksa


Aaj yea sa kuch nahi hea jo tantra sea na ho payea sab kuch tantra kea madheam sea sambhav hea tantra ko two parts mea divide kea gaya hea (1) mantra aur (2) yantra mantra ke siddhi kea leyea time lagta hea but yantra sea thodea he time mea he siddhi mel jate hea aur aap kea leyea ek khuse khabare hea mea nea yantra dilsa deyea nea ka soch hea to jo koya yantra diksa lena chata hea mujea email kejea aur meare diksa mea aap log yea sikhea gea (1)Vasikaran yantra ke diksa (2)Akasan yantra ke diksa (3)Uchatan yantra ke diksa (4)maran yantra ke diksa (5)Alag Alag rog sea nivaran hea tu yantra ke diksa (6)Itaryoni sea raksa kea leyea yantra diksa (7)bhoat sarea muslim talisman (8)bhootni ko sapanea mea hazir karna Aur bhi bhoat sarea yantra ke diksa hea list to bhout badi hea esleyea yaha likhana muskil hea but jo log yea diksa chatea hea vo mujea email karea mea aap ko 50 sea bhi jayada yantra ke vidhi bata yu ga

Wednesday, 4 February 2015

दूसरों के मन को पढ़ aaj kea jamnea mea kese pea vesvas nahi karsaktea aaj ka jamanea mea kesea kea man mea kya chal raha hota hea vo kon janta hea agar ham dusro kea man ke baat jaan saktea to kitna bheter hoto bhote sare musebaat sea bhi ham bacch saktea hea log ko bhi phechan saktea hea ke kon bhala aur kon bura insan hea to aab aap socha rahea hogea ke kya koye asa tareka nahi hea jesea dusro kea man ke batea jaan sakea? to dosto aaj mea ek esa vidhan duga jesea dusro kea man ke baatea jaan saktea hea Note:yea vidhan edhar likhana uchit nahi hoga kuke kaye burea log eska durupoyog kar saktea hea to jo koye bhi yea vidhan chata hea mujea email karea


SABAR VASHIKARAN SADHNA (साबर वशीकरण साधना) दुनिया मे वशीकरण क्रिया को बदनाम कर दिया है परंतु इसका महत्व वही लोग समजते है जिनहे इसका जरूररत है........ गोपनीय सूत्र- कोई भी वशीकरण साधना सिद्धि से पूर्व मंगलवार को हनुमान जी का पूजन करना आवश्यक है और बच्चो मे प्रसाद बाट दे  जिस व्यक्ति पे आप प्रयोग करते हो उससे प्रयोग करने के बाद जुट नहीं बोलना चाहिए सिर्फ सती बोलिए नहीं तो वशीकरण का प्रभाव कम होने लगता है व्यक्ति विशेष से आपका परिचय होना चाहिये,अगर बात होती होगी तो बहोत अच्छी बात है॰ रविवार और मंगलवार प्रत्येक वशीकरण साधना एवं प्रयोग करने के लिए उपयुक्त है साबर वशीकरण साधना मे रुद्राक्ष का माला और उत्तर दिशा का महत्व है,आसन और वस्त्र लाल हो…………. साबर वशीकरण मंत्र- ॥ मै तोह मोहो मोहिनी,तू मोहे संसार । बाट के बटोहिया मोहे,कुंआ की पनिहारी मोहे,पलना बैठी रानी मोहे। दुलीचा बैठो राजा मोहे,ठग मोहे,ठाकुर मोहे,पर-घर मोहे। सब जात मोहले “अमुक”को मोहाईले ।मेरे पाईन तर आन राख । उलटन्त वेद ,पलटन्त  कट काया ,तोहि श्रीनरसिंह बुलाया । मेरी भगत ,गुरु की सकत,फुरै मंत्र ईश्वरो वाचा ॥ साधना विधि- व्यक्ति विशेष पर प्रयोग करने से पूर्व मंत्र का किसी भी शुभ समय मे ११ दिन से पहिले या ११ डीनो मे १,१०० बार मंत्र जाप करले,मंत्र जाप के बाद जलते हुये कोयलों पे मंत्र से लोबान+गूगल मिलकर १०८ आहुती दे दीजिये,इस सारे क्रिया के बाद अमुक के जगह स्त्री/पुरुष का नाम लेकर नित्य १०८ बार जाप कुछ ही दिन करने से व्यक्ति विशेष आपके अनुकूल हो जायेगा,साधमा पूर्णत: प्रामाणिक है सोच समजकर ही प्रयोग करे नहीं तो हानी १००% होगी ये मेरा गारंटी है...........आगे आपके विचार जो स्वयं आप ही बदल सकते हो........ श्री-सदगुरुजीचरनार्पणमस्तू.................


SABAR VASHIKARAN SADHNA (साबर वशीकरण साधना) दुनिया मे वशीकरण क्रिया को बदनाम कर दिया है परंतु इसका महत्व वही लोग समजते है जिनहे इसका जरूररत है........ गोपनीय सूत्र- कोई भी वशीकरण साधना सिद्धि से पूर्व मंगलवार को हनुमान जी का पूजन करना आवश्यक है और बच्चो मे प्रसाद बाट दे  जिस व्यक्ति पे आप प्रयोग करते हो उससे प्रयोग करने के बाद जुट नहीं बोलना चाहिए सिर्फ सती बोलिए नहीं तो वशीकरण का प्रभाव कम होने लगता है व्यक्ति विशेष से आपका परिचय होना चाहिये,अगर बात होती होगी तो बहोत अच्छी बात है॰ रविवार और मंगलवार प्रत्येक वशीकरण साधना एवं प्रयोग करने के लिए उपयुक्त है साबर वशीकरण साधना मे रुद्राक्ष का माला और उत्तर दिशा का महत्व है,आसन और वस्त्र लाल हो…………. साबर वशीकरण मंत्र- ॥ मै तोह मोहो मोहिनी,तू मोहे संसार । बाट के बटोहिया मोहे,कुंआ की पनिहारी मोहे,पलना बैठी रानी मोहे। दुलीचा बैठो राजा मोहे,ठग मोहे,ठाकुर मोहे,पर-घर मोहे। सब जात मोहले “अमुक”को मोहाईले ।मेरे पाईन तर आन राख । उलटन्त वेद ,पलटन्त  कट काया ,तोहि श्रीनरसिंह बुलाया । मेरी भगत ,गुरु की सकत,फुरै मंत्र ईश्वरो वाचा ॥ साधना विधि- व्यक्ति विशेष पर प्रयोग करने से पूर्व मंत्र का किसी भी शुभ समय मे ११ दिन से पहिले या ११ डीनो मे १,१०० बार मंत्र जाप करले,मंत्र जाप के बाद जलते हुये कोयलों पे मंत्र से लोबान+गूगल मिलकर १०८ आहुती दे दीजिये,इस सारे क्रिया के बाद अमुक के जगह स्त्री/पुरुष का नाम लेकर नित्य १०८ बार जाप कुछ ही दिन करने से व्यक्ति विशेष आपके अनुकूल हो जायेगा,साधमा पूर्णत: प्रामाणिक है सोच समजकर ही प्रयोग करे नहीं तो हानी १००% होगी ये मेरा गारंटी है...........आगे आपके विचार जो स्वयं आप ही बदल सकते हो........ श्री-सदगुरुजीचरनार्पणमस्तू.................


SABAR VASHIKARAN SADHNA (साबर वशीकरण साधना) दुनिया मे वशीकरण क्रिया को बदनाम कर दिया है परंतु इसका महत्व वही लोग समजते है जिनहे इसका जरूररत है........ गोपनीय सूत्र- कोई भी वशीकरण साधना सिद्धि से पूर्व मंगलवार को हनुमान जी का पूजन करना आवश्यक है और बच्चो मे प्रसाद बाट दे  जिस व्यक्ति पे आप प्रयोग करते हो उससे प्रयोग करने के बाद जुट नहीं बोलना चाहिए सिर्फ सती बोलिए नहीं तो वशीकरण का प्रभाव कम होने लगता है व्यक्ति विशेष से आपका परिचय होना चाहिये,अगर बात होती होगी तो बहोत अच्छी बात है॰ रविवार और मंगलवार प्रत्येक वशीकरण साधना एवं प्रयोग करने के लिए उपयुक्त है साबर वशीकरण साधना मे रुद्राक्ष का माला और उत्तर दिशा का महत्व है,आसन और वस्त्र लाल हो…………. साबर वशीकरण मंत्र- ॥ मै तोह मोहो मोहिनी,तू मोहे संसार । बाट के बटोहिया मोहे,कुंआ की पनिहारी मोहे,पलना बैठी रानी मोहे। दुलीचा बैठो राजा मोहे,ठग मोहे,ठाकुर मोहे,पर-घर मोहे। सब जात मोहले “अमुक”को मोहाईले ।मेरे पाईन तर आन राख । उलटन्त वेद ,पलटन्त  कट काया ,तोहि श्रीनरसिंह बुलाया । मेरी भगत ,गुरु की सकत,फुरै मंत्र ईश्वरो वाचा ॥ साधना विधि- व्यक्ति विशेष पर प्रयोग करने से पूर्व मंत्र का किसी भी शुभ समय मे ११ दिन से पहिले या ११ डीनो मे १,१०० बार मंत्र जाप करले,मंत्र जाप के बाद जलते हुये कोयलों पे मंत्र से लोबान+गूगल मिलकर १०८ आहुती दे दीजिये,इस सारे क्रिया के बाद अमुक के जगह स्त्री/पुरुष का नाम लेकर नित्य १०८ बार जाप कुछ ही दिन करने से व्यक्ति विशेष आपके अनुकूल हो जायेगा,साधमा पूर्णत: प्रामाणिक है सोच समजकर ही प्रयोग करे नहीं तो हानी १००% होगी ये मेरा गारंटी है...........आगे आपके विचार जो स्वयं आप ही बदल सकते हो........ श्री-सदगुरुजीचरनार्पणमस्तू.................


Tuesday, 3 February 2015

महा रति काया कल्प प्रयोग वर्तमान समय में वायु मंडल दूषित होता जा रहा है।और हमारा खान पान भी इतना शुद्ध नहीं है,इसी कारन देह की कांति समाप्त सी हो जाती है ।कई लोगो को चेहरे पर दाग धब्बे हो जाते है तो किसी को चर्म रोग घेर लेता है।किसी के बाल लगातार गिरते जा रहे है,तो कोई अधिक पतला या मोटा है।प्रस्तुत साधना साधक के अन्दर एक ऐसी उर्जा का निर्माण करती है जिससे की उसका काया कल्प होता है।देह कांति युक्त हो जाती है,दाग आदि दूर हो जाते है,शरीर सुन्दर एवं सुडोल बन जाता है। परिश्रम के साथ ही यदि हमें मंत्रो की शक्ति का सहयोग मिल जाये तो परिश्रम में सफलता शीघ्रता से मिलती है।प्रस्तुत है इसी विषय पर एक तीव्र साधना . साधना किसी भी शुक्रवार से आरम्भ करे समय शाम सूर्यास्त से रात्रि ३ बजे के मध्य का हो।आसन तथा वस्त्र लाल या पीले हो,आपका मुख उत्तर की और हो।सामने बाजोट पर पिला वस्त्र बिछाये और उस पर शिवलिंग स्थापित करे,पारद शिवलिंग का हो तो उत्तम है अन्यथा जो भी शिवलिंग हो उसे स्थापित करे।अब शिवलिंग के सामने एक रुद्राक्ष स्थापित करे।शिव का सामान्य पूजन करे,और देवी रति का रुद्राक्ष पर सामान्य पूजन करे।तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई अर्पण करे।अब अपने सामने एक पात्र में थोड़ी सी हल्दी रख ले,और मूल मंत्र पड़ते जाये ये आपको लगातार १ घंटे तक करना है,और साथ ही रुद्राक्ष पर थोड़ी थोड़ी हल्दी अर्पण करते जाना है।साधना के बाद मिठाई स्वयं खा ले।ये क्रिया नित्य ३ दिनों तक करे,अंतिम दिन साधना के बाद घी में लोबान मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे।अगले दिन रुद्राक्ष को मंत्र पड़ते हुए गुलाब जल से स्नान करवाए और लाल धागे में डालकर गले में धारण कर ले।फिर नित्य थोड़े से जल पर मंत्र को २१ बार या उससे अधिक पड़कर अभी मंत्रित कर ले।और जल पि जाये,नहाने के जल को भी इससे अभीमंत्रित किया जा सकता है।निसंदेह आपकी देह कुछ ही दिनों में अद्भूत तेज से भर जाएगी।आवश्यकता है साधना को पूर्ण विश्वास से करने की।***मंत्र***॥ॐ रति रति महारती कामदेव की दुहाई संसार की सुंदरी भुवन मोहिनी अनंग प्रिया मेरे शरीर में आवे,अंग अंग सुधारे,जो न सुधारे तो कामदेव पर वज्र पड़े॥


Saturday, 31 January 2015

शून्य सिद्धी गोलक yea ek a sa gholak hea jeasea शून्य mea sea kuch bhi paya ja sakta hea esea शून्य gutika bhi kaha jata hea yea gutika mea puru parad he hote hea meara matlab hea ke esmea parad kea aala va dusara koye dhatu use nahi hota 8 sanskar o kea baad yea divya gutika ka nirman hota hea e sea elephant jase bade chezea aur ant jease chote cheeze bhi parap kar saktea hea hamrea puvojo nea aur saint nea e skea barea mea battaya hea eska nirman bhout hard hota hea 1 ya 2 month lag jatea hea bhout sare divya osodheyo kea saahat eska melaab karna padta hea esko gold glass dea na padta hea aur bhi jatel keya o kea baad eska nirman hota hea sadguru kea marg darsan mea meanea en gutika o ka nirman ke aa tha abhi mearea paas 4 gutika hea mujea sif ek kahe kam hea dusrea ham hamrea sadhak metro ko dena chatea hea to agar koye yea gutika chata hea to mujea email karea Note:esmea hamra koye faeda nahi hea yea dusre gutika ka hamea koye kam nahi hea eslea ham esea distibute kar rehea hea my email id is sagar.mashru24@gmail.com Note:mea sif eska nirman kar kea aap tak puchau ga aap ko siddhi ko panea kea leyea ees gutika ko aapnea nam sea siddh karna hoga aur esea siddh karnea kea leyea aap ko espea ek chote se 5 din ke sadhana karne hoge aur शून्य siddhi aap ke sayed yea baat aap logo kese nea bata ye nahi hoge ke kese bhi gutika nirman karvao uus gutika ka ko aapnea nam sea jab tak siddh na keyaa ho tab tak vo gutika kam nahi karte fer chayea vo khechari gutika he Q na ho


शून्य सिद्धी गोलक yea ek a sa gholak hea jeasea शून्य mea sea kuch bhi paya ja sakta hea esea शून्य gutika bhi kaha jata hea yea gutika mea puru parad he hote hea meara matlab hea ke esmea parad kea aala va dusara koye dhatu use nahi hota 8 sanskar o kea baad yea divya gutika ka nirman hota hea e sea elephant jase bade chezea aur ant jease chote cheeze bhi parap kar saktea hea hamrea puvojo nea aur saint nea e skea barea mea battaya hea eska nirman bhout hard hota hea 1 ya 2 month lag jatea hea bhout sare divya osodheyo kea saahat eska melaab karna padta hea esko gold glass dea na padta hea aur bhi jatel keya o kea baad eska nirman hota hea sadguru kea marg darsan mea meanea en gutika o ka nirman ke aa tha abhi mearea paas 4 gutika hea mujea sif ek kahe kam hea dusrea ham hamrea sadhak metro ko dena chatea hea to agar koye yea gutika chata hea to mujea email karea Note:esmea hamra koye faeda nahi hea yea dusre gutika ka hamea koye kam nahi hea eslea ham esea distibute kar rehea hea my email id is sagar.mashru24@gmail.com Note:mea sif eska nirman kar kea aap tak puchau ga aap ko siddhi ko panea kea leyea ees gutika ko aapnea nam sea siddh karna hoga aur esea siddh karnea kea leyea aap ko espea ek chote se 5 din ke sadhana karne hoge aur शून्य siddhi aap ke sayed yea baat aap logo kese nea bata ye nahi hoge ke kese bhi gutika nirman karvao uus gutika ka ko aapnea nam sea jab tak siddh na keyaa ho tab tak vo gutika kam nahi karte fer chayea vo khechari gutika he Q na ho


Friday, 30 January 2015

NURANI JADU SIKHEDOSTO RUHANI DUNIYA KE BARE LOG BOHUT KUCH NAHI JANTE,AUR YE DUNIYA SIRF MUAKKIL HASIL KARTE HI KHATAM NAHI HOJATI,BALKI INSAN KI ROOH ME ITNI KUWAT HE KE WO ‘ALAME JAAT’ SE ‘ALAME HU’ TAK SARE MAKAN TAY KARSAKTA HE.AUR KUCH AISE AMAL V HE JISSE BINA KISI NUKSAN YA KHAUF KE INSAN KARAMATI TAKAT HASIL KARSAKTA HE,MASLE KE TAUR PE GAYEB HOJANA YANI AAP JAB CHAHE LOGO KI NAJRO SE GAYEB HOJAYE AUR APKO KOI NA DEKHSAKE,AISE KAFI NURANI SEHAR BUJURGO NE SECRETLY APNE SAGIRDO KO SIKHAYA HE,MAI V KUCH KUCH JANTA HU,MERE MURSHID NE SIKHAYA THA.AGAR KOI ISE SIKHNA CHAHTA HE TO MUJHSE MAIL ME RABTA KARE.MAI YAHA EK LIST LIKHDETA HO,JO MAI JANTA HU. (1)LOGO KI NAJRO SE GAYEB HOJANA(2)JINNATI DUNIYA KO ANKHO SE DEKHNA(3)RUHANI DUNIYA ME SAFAR KARNA(4)AAG,PANI,HAWA AUR MITTI KO KABU KARNA(5)KAGAJ KO RUPIYE ME TABDIL KARNA(6)JAMIN KE ANDAR DEKHNA(7)KABR KI ANDAR DEKHNA(8)KISI VI ROOH KO BULANA AUR USE HUKM DENA(9)SARRO ASMAN KO KHULE ANKH SE DEKHNA (10)KISI KA MIND READ KARNA


कुछ लघु प्रयोगमित्रो लघु प्रयोगो का सदा से अपना ही महत्व रहा है.जहा बड़े बड़े उपाय कुछ नहीं  कर पाते है वही लघु प्रयोग तीव्र प्रभाव दिखा जाते है.आपके लिए उन्ही लघु प्रयोगो में से कुछ यहाँ दिए जा रहे है पूर्ण विश्वास है कि आपको लाभ होगा। १. क्रोध शांति हेतु  जिन्हे बहुत अधिक क्रोध आता हो वे नित्य रात्रि में सोते समय एक ताम्बे के लोटे में जल भर दे और उसमे एक चाँदी का सिक्का डाल दे.प्रातः मुह आदि धोकर इस जल का सेवन करे.धीरे धीरे क्रोध में कमी आ जायेगी और आपका स्वभाव  सोम्य होने लगेगा। २. नकारत्मक ऊर्जा को दूर करने हेतु  यदि आप सदा मानसिक तनाव में रहते है.नित्य बुरे स्वप्न आते है.छोटी छोटी बाते आपको अधिक विचलित कर देती है.अकारण भय लगता रहता है तो ,रात्रि में सोते समय अपने तकिये के निचे एक छोटा सा फिटकरी का टुकड़ा रख ले.और सुबह उठकर उसे अपने सर से तीन बार घुमाकर घर के बहार फेक दे.सतत कुछ दिनों तक करे  अवश्य लाभ होगा। ३.गृह कलह निवारण एवं शुद्धि हेतु  यदि निरंतर घर में कलह का वातावरण बना रहता हो,अशांति बनी रहती हो.व्यर्थ का तनाव बना रहता हो तो.थोड़ी सी गूगल लेकर " ॐ ह्रीं मंगला दुर्गा ह्रीं ॐ "  मंत्र का १०८ बार जाप कर गूगल को अभी मंत्रित कर दे और उसे कंडे पर जलाकर पुरे घर में घुमा दे.ये सम्भव न हो तो गूगल ५ अगरबत्ती पर भी ये प्रयोग किया जा सकता है.घर में शांति का वातावरण बनने लगेगा। ४.स्मरण शक्ति हेतु  यदि आपकी स्मरण शक्ति तीव्र नहीं है,तो किसी भी सोमवार को शिवलिंग पर शहद से अभिषेक करे.अभिषेक करते समय ॐ नमः शिवाय का जाप करते जाये और एक एक चम्मच शहद शिवलिंग पर अर्पित  करते जाये इस प्रकार १०८ बार करे.फिर इस शहद को किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले.अब नित्य थोडा शहद लेकर १०८ बार " ऐं " बीज मंत्र का जाप करे और शहद अभी मंत्रित कर ले.इस शहद को स्वयं ग्रहण कर ले.तथा थोडा सा शहद मस्तक पर लगाये।धीरे धीरे आप स्वयं अनुभव करेंगे कि आपकी स्मरण शक्ति में सुधार हो रहा है. ५. अनिद्रा दूर करने हेतु  यदि आपको अनिद्रा कि समस्या है तो रात्रि में सोने से पूर्व " ॐ क्लीं शांता देवी क्लीं नमः " का माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए १०८ बार जाप करे और सो जाये। धीरे धीरे आपकी ये समस्या का भी अंत हो जायेगा। ६. धन वृद्धि हेतु  यदि धन में वृद्धि ना हो रही हो,साथ ही व्यर्थ का व्यय बढ़ता जा रहा हो तो शुक्रवार को १६ कमलगट्टे को शुद्ध घृत में मिलाकर अग्नि में " ॐ श्रीं स्थिर लक्ष्मी श्रीं वरदायै नमः "मंत्र से आहुति प्रदान करे.कुछ शुक्रवार करे और परिणाम स्वयं देखे।इसी मंत्र के मध्यम से अघोरी अपने जीवन में लक्ष्मी को बांध देते है.रस क्षेत्र में भी इस मंत्र का अत्यंत महत्व है,जिसमे कुछ विधि या साधना  करके लक्ष्मी को सदा सदा के लिए घर में स्थिर किया जा सकता है.परन्तु ये रस तंत्र का विषय है तो इस पर चर्चा फिर कभी होगी। आप सभी इन लघु प्रयोगो को करे,माँ से प्रार्थना है कि आपको सफलता प्राप्त हो. जय माँ 


Thursday, 29 January 2015

        गुरु साधना से लक्ष्मी प्राप्ति “अच्युताय नमस्तुभ्यं गुरवे परमात्मने |सर्वतंत्रस्वतंत्र   या चिद्घनानंदमूर्तये ||”‘ॐ त्वमा वह वहे वद वे गुरोर्चन धरै सह प्रियन्हर्षेतु’ हे अविनाशी परमात्मा स्वतंत्र चैतन्य और आनंद मूर्ति स्वरुप गुरुदेव ! आपको नमस्कार है | हे गुरुदेव ! आप सर्वज्ञ हैं , हम ईश्वर को नहीं पहचानते, न हि उन्हें कभी देखा है, और आपके द्वारा हि उस प्रभु या ईष्ट के दर्शन सहज और संभव है, मै अपना समर्पित कर आपका अर्चन पूजन कर पूर्णता प्राप्त करने का आकांक्षी हूँ |      भाइयो बहनों !                   इस श्लोक का भावार्थ आप समझ हि गए हैं यानि गुरु हि वह व्यक्तित्व है जो अज्ञान के अंधकार से शिष्य को पार ले जाकर जीवन में ज्ञान का प्रकाश देता है | गुरु हि हैं जो जीवन की बाधाओं के शिष्य को सचेत भी करते हैं औरुनसे निकलने का मार्ग भी प्रसस्त करते हैं |  प्रिय स्नेही स्वजन ! आगामी वर्ष कि ढेरो शुभ कामनाओं के साथ आपके लिए एक मह्त्वपूर्ण साधना ------- एक शिष्य का जीवन गुरु से शुरू होकर गुरु पर ही समाप्त होता है तो क्यों न एस नव वर्ष की शुरुआत गुरु साधना से ही की जाये | क्योंकि गुरु ही वह श्रोत जो शिष्य में आत्म उत्साह प्रदान करता है क्रिया के साथ जाग्रति साधना कहलाती है और अभ्यास अपने आप को दृण निश्चय के साथ उच्च स्तिथि में ले जाने की क्रिया है, जिससे वह अपना आत्म ज्ञान प्राप्त कर सके गुरु व्यक्ति की शक्तियों को एक श्रंखला बद्ध रूप देता है जिससे बिखरी हुई शक्तियां एक धारा में श्रेष्ठता के साथ बह सकें |    गुरु वह व्यक्ति नहीं है जिनके ऊपर अपनी आप अपनी सारी समस्याओं एवं कठिनाइयों का बोझ डाल सको, गुरु तो वह व्यक्तित्व है जो आपको जीवन जीने का रचनात्मक, सुयोग्य और प्रभावकारी मार्ग दिखलाता है जिससे कि आप में स्वयं को जानने कि प्रक्रिया प्रारम्भ हो सके |   जीवन में सही क्रिया क्या है? दूसरों के भाव विचारों को किस प्रकार समझा जा सकता है यह जानने कि क्रिया के सम्बन्ध में जानकारी देकर योग्य व्यक्ति बनाना हि गुरु का मूल उद्देश्य है | स्नेही आत्मीयजन !        जीवन में दारिद्रय योग सबसे कष्ट दायक होता है और इसे दूर कर जीवन को सहज बनाना हि हमारा प्रथम उद्देश्य होना चाहिए क्योंकि उसके बाद हि जीवन में प्रत्येक क्रिया को किया जा सकता है | महर्षि विश्वामित्र ने बड़े स्पष्ट रूप से स्वीकार्य किया है कि गुरु अपने आप में समस्त ऐश्वर्य का अधिपति होता है, अतः गुरु साधना के माध्यम से समस्त ऐश्वर्या को प्राप्त किया जा सकता है अतः मैंने नववर्ष के प्रारम्भ को गुरु साधना से हि प्रारम्भ करने का विचार बनाया |    हो सकता है कि आपमें से से कैन व्यक्तियों के पास यह साधना उपलब्ध हो कि किन्तु कैन ऐसे नए साधक हैं जिनके पास न हो, कभी कभी ऐसा भी होता है कि हमारे पास साहित्य उपलब्ध होता है और हम उसका हम उपयोग नहीं कर पाते| अतः इस साधना कि उपयोगिता बताते हुए यह कहना चाहती हूँ कि मात्र एक बार इस प्रयोग को कर के देखें और अनुभूत करें..........   महर्षि विश्वामित्र द्वारा प्रणीत, सदगुरुदेव द्वारा प्रदत्त, दुर्भाग्य को मिटाने वाली अखंड लक्ष्मी प्राप्ति साधना | यह साधना मात्र तीन घंटे कि है जिसे कि इकत्तीस कि रात 11 बजे से शुरू करें | या जो इकत्तीस कि रात को ना कर पाएं तो एक तारिक के प्रातः 5 बजे से प्रारम्भ करें| साधना क्रम :-    सफ़ेद वस्त्र, सफ़ेद आसन, उत्तर दिशा, सामने गुरु चित्र, सामग्री में- कुमकुम ,अक्षत (बिना टूटे चावल ), गंगा जल, केसर, पुष्प (किसी भी तरह के), पंचपात्र, घी का दीपक जो साधना क्रम में अखंड जलेगा, कपूर, अगरबत्ती, एक कटोरी | साधक शुद्धता से स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण कर उत्तर कि ओर मुह कर बैठें | सामने बाजोट पर यदि गणपति विग्रह हो तो स्थापित कर पूजन करें अथवा चावल कि धेरी पर एक सुपारी में कलावा बांधा कर गणपति के रूप में पूजन संपन्न करें | तत्पश्चात पंचोपचार गुरु पूजन संपन्न करें | और चार माला गुरु मंत्र कि करें अब अपने स्वयं के शरीर को गुरु का हि शरीर मानते हुए अपने आपको गुरु में लीं करते हुए आज्ञा चक्र में “परमतत्व गुरु” स्थापन करें |  *परमतत्व गुरु स्थापन –**** *ऐं ह्रीं श्रीं अम्रताम्भोनिधये नमः| रत्ना-द्विपाय नम: | संतान्वाटीकाय नम: | हरिचंदन-वाटिकायै नम: | पारिजात-वाटिकायै नम: | पुष्पराग-प्रकाराय नम: |गोमेद-रत्नप्रकाराय नम: | वज्ररत्न्प्रकाराय नम: | मुक्ता-रत्न्प्रकाराय नम: | माणिक्य-रत्नाप्रकाराय नम: | सहेस्त्र स्तम्भ प्रकाराय नम: | आनंद वपिकाय नम: | बालातपोद्धाराय नम: | महाश्रिंगार-पारिखाय नम: | चिंतामणि-गृहराजाय नम: | उत्तर द्वाराय नम: | पूर्व द्वाराय नम: | दक्षिण द्वाराय नम: | पश्चिम द्वाराय नम: | नाना-वृक्ष-महोद्ध्य्नाय नम: | कल्प वृक्ष-वाटिकायै नम: | मंदार वाटिकायै नम: | कदम्ब-वन वाटिकायै नम: | पद्मराग-रत्न प्राकाराय नम: | माणिक्य-मण्डपाय नम: | अमृत-वपिकायै नम: | विमर्श- वपिकायै नम: | चन्द्रीकोद्राराय नम: | महा-पद्माटव्यै नम: | पुर्वाम्नाय नम: | दक्षिणा-म्नाय नम: | पस्चिम्माम्नाय नम: | उत्तर-द्वाराय नम: | महा-सिंहासनाय नम: | विश्नुमयैक-पञ्च-पादाय नम: | ईश्वर-मयैक पञ्च पादाय नम: | हंस-तूल-महोपधानाय नम: | महाविभानिकायै नम: | श्री परम तत्वाय गुरुभ्यो नम: | Aim hreem shreem amritaambhonidhye namh .  Ratn-dwipaay namh .  santaan-vatikaayai namh . paarijaat  vatikayai namh . puspraag-prakaaraay namh. Gomed ratn –praakaaraay namh. Vajra ratn praakaaraay namh.  mukta –ratn-praakaaraay namh. Manikya –ratn praakaaraay namh. Sehestra stambh praakaaraay namh. Anand-vapikayai namh.  Balatpoddhaaraay namh.  Mahashringaar-paarikhaayai  namh.  Chintamani – grihraajaay namh.  Uttardwaraay namh.  Purv-dwaraay namh.  Dakshin dwaraay  namh. Paschim  dwaraay namh .  nana-vriksh-mahodhyaanaay namh.  Kalp vriksh-vatikaayai namh. Mandaar vaatikaayai namh.  Kadamb-van vatikaayai  namh.  Padmraag-ratn  praakaaray  namh.  Manikya –mandpaay namh.  Amrit-vapikaayai namh.  Vimrsh-vaapikaayai namh .  chandrikodraay namh.  Mahaa-padmatvyaai namh.  Purvamnaay namh.  Dakshina-mnaay namh. Paschimmaamnaay namh.  Uttar-dwaraay namh.  Maha-sinhaasnaay namh. Vishnumyaik-punch-paadaay  namh.  Eshwar-mayaik punch paadaay namh.  Hans-tul-mahopdhaanaay namh.  Mahaavibhanikayai namh. Shree param tatvaay gurubhyo namh.       इस प्रकार परमतत्व गुरु को अपने आज्ञा चक्र में स्थापित करने के बाद एक पात्र में जल कुमकुम अक्षत और पुष्प कि पंखुड़ियां लेकर गुरु कि द्वादश कलाओं को अर्ध दें  *द्वादश कला पूजन:-*** ऐं ह्रीं श्रीं कं भं तपिन्यै नम: |(“ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं अं सूर्य मण्डलाय द्वादश्कलात्मने अर्घ्यपात्राय नम:”, प्रत्येक मंत्र के बाद इस मंत्र से पात्र में रखे हुए कुमकुम मिश्रित जल से दुसरे पात्र में अर्घ्य देने हैं ) ऐं ह्रीं श्रीं खं बं तापिन्यै नम:| ऐं ह्रीं श्रीं गं फं धूम्रायै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं घं पं विश्वायै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं ड़ं नं बोधिन्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं चं धं ज्वालिन्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं छं दं शोषिण्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं जं थं वरण्योये नम:|ऐं ह्रीं श्रीं झं तं आकर्षण्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं ञं णं मयायै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं टं ढं विवस्वत्यै नम:|ऐं ह्रीं श्रीं ठं डं हेम-प्रभायै नम:| *Aim hreem shreem kam bham tapinyai namh.**(“Aim hreem shreem kleem am sooryamandalaay dwaadashkalaatmane arghpaatray namh”)**Aim hreem shreem kham bam taapinyai namh.**Aim hreem shreem gam fam dhoomraayai namh.**Aim hreem shreem gham pam vishvaayai namh.**Aim hreem shreem dam nam bodhinyai namh.**Aim hreem shreem cham dham jwaalinyai namh.**Aim hreem shreem chham dam shoshinyai namh.**Aim hreem shreem jam tham varnyoye namh.**Aim hreem shreem jham tam aakarshanyai namh.**Aim hreem shreem iyam  ndam namh.**Aim hreem shreem tam dham vivasvatyai namh.**Aim hreem shreem ttham dam hem- prabhayai namh.*   उपरोक्त कला पूजन में “ऐं ह्रीं श्रीं” लक्ष्मी के बीज मंत्र हैं अतः इस प्रकार ये लक्ष्मी के सभी स्वरूप हमारे शरीर में समाहित हो जाते हैं | कोई भी धन का सही उपयोग तभी जीवन में पूर्ण आनंद और ऐश्वर्या देता है जब कि लक्ष्मी के साथ सुख, सम्मान, तुष्टि-पुष्टि, ओर संतोष भी प्राप्त हो अतः सोलहकला पूजन विधान है | इसके लिए गुरु को अर्घ्य पात्र में जल, अक्षत, पुष्प, कुमकुम लेकर समर्पित करें | पहले निम्न मंत्र से मूल समर्पण करें फिर सोलह कलाओं के प्रत्येक मंत्र के साथ अर्घ्य पात्र में समर्पित करें | ऐं ह्रीं श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय षोडशी कलात्मने अर्घ्य पात्रामृताय नमः | *Aim  hreem  shreem  saum  um  som-mandalaay  shodashi  kalaatmane  arghya  paatraamritaay namah .  ** *  इस अर्घ्य को समर्पित करते समय उसका जल थोड़ा थोड़ा करके सोलह बार ग्रहण करें, इसके बाद गुरु कि सोलह कलाओं का अर्घ्य पूजन करें | *सोलह कला पूजन –**** ** *ऐं ह्रीं श्रीं अं अमृतायै नमः |(ऐं ह्रीं श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय षोडशी कालात्मने अर्घ्य पात्रामृताय नमः ) ऐं ह्रीं श्रीं आं मानदायै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं इं तुष्टयै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं ईं पुष्टयै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं उं प्रीत्यै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं ऊं रत्यै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं ॠं श्रीयै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं ऋृं क्रियायै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं लृं सुधायै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं लृं रात्रयै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं एं ज्योत्स्नायै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं ऐं हैमवत्यै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं ओं छायायै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं औं पूर्णीमायै नमः | ऐं ह्रीं श्रीं अः विद्यायै नमः |ऐं ह्रीं श्रीं वः अमावस्यायै नमः |   Aim  hreem  shreem am  amritaayai  namah. (*Aim  hreem  shreem  saum  um  som-mandalaay  shodashi  kalaatmane  arghya  paatraamritaay namah . )*  Aim  hreem  shreem  aam  maandaayai  namah.  Aim  hreem  shreem  im  tushtayai  namah.  Aim  hreem  shreem  eem  pushtayai  namah. Aim  hreem  shreem  um  preetyai  namah. Aim  hreem  shreem  oom ratyai  namah.  Aim  hreem  shreem  rim(ऋं)  shriyai namah.   Aim  hreem  shreem rim kriyayai namah.   Aim  hreem  shreem lrim sudhayai namah.   Aim  hreem  shreem lrim ratryai  namah.   Aim  hreem  shreem aim jyotsnayai namah.  Aim  hreem  shreem aim haimvatyai namah. Aim  hreem  shreem om chayayai namah.   Aim  hreem  shreem aum purnimayai namah. Aim  hreem  shreem ah vidyayai namah.   Aim  hreem  shreem vah amavasyayai namah. इसके बाद गुरु के मूल मंत्र का जाप करें “ॐ परम तत्वाय नारायणाये नमः “ (om param tatvaye narayanaye  namah )इस मंत्र कि एक माला फेरें या जो आपका गुरु मंत्र है उसकी माला करें | अब अपने सामने किसी पात्र में दीपक और कपूर जलाएं | फिर अपने शारीर में हि गुरु को समाहित मानकर बेठे हि बेठे समर्पण और आमंत्रण आरती करें | *पूर्ण सिद्ध आरती** *अत्र सर्वानन्द – मय व्यन्दव - चक्रे परब्रह्म - स्वरूपणी परापर - शक्ति - श्रीमहा – गुरु देव – समस्त – चक्र – नायके – सम्वित्ती – रूप – चक्र नायाकाधिष्ठिते त्रैलोक्यमोहन – सर्वाशपरी – पुरख – सर्वसंक्षोभकारक – सर्वसौ – भाग्यादायक – सर्वार्थसाधक – सर्वरक्षाकर – सर्वरोगहर – सर्वासिद्धीप्रद – सर्वानन्दरय – चक्र – समुन्मीलित – समस्त – प्रकट – गुप्त – गुप्ततर – सम्प्रदाय – कुल – कौलिनी – निगम – रहस्यातिरहस्य – परापर रहस्य – समस्त – योगिनी – परिवृत – श्रीपुरेशी – त्रिपुरसुन्दरी – त्रिपुर – वासिनी – त्रिपुरा – श्रीत्रिपुरमालिनी – त्रिपुरसिद्धा – त्रिपुराम्बा – तत्तच्चक्रनायिका – वन्दित – चरण – कमल – श्रीमहा – गुरु – नित्यदेव – सर्वचक्रेश्वर – सर्वमंत्रेश्वर – सर्वविद्येश्वर – सर्वपिठेश्वर – त्रलोक्यमोहिनी – जगादुप्तत्ति – गुरु – सर्वचाक्रमय तन्चक्र – नायका – सहिताः स – मुद्रा, स – सिद्धयः, सायुधाः, स – वाहनाः, स – परिवाराः, सर्वो-पचारे: श्री परमतत्वाय गुरु  परापराय – सपर्यया पुजितास्तर्पिता: सन्तु |   इसके बाद हाँथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें- श्रीनाथादी गुरु – त्रयं गण – पति पीठ त्रयं भैरव सिद्धोध बटुक – त्रयं पद युग्म दूती क्रमं मंडलम वीरानष्ट – चतुष्क – षष्टि – नवकं वीरावली – पंचकं, श्रीमन्मालिनी – मंत्रराज – सहितं वन्दे गुरोर्मंडलम |  स्नेही भाइयों बहनों इस प्रकार यह पूर्ण लक्ष्मी साधना केवल एक बार किसी भी अमावस्या को या किसी भी रात्री को या दीपावली को संपन्न करने से  पूर्ण लक्ष्मी सिद्धि प्राप्त होती है |  इस नव वर्ष की शुरुआत इस महत्वपूर्ण साधना से करें और पूर्ण आनंद ओर सुख, समृद्धि को प्राप्त करें, इसी अकांक्षा के साथ नव वर्ष कि शुभकामनाएं |


१॰ हनुमान रक्षा-शाबर मन्त्र “ॐ गर्जन्तां घोरन्तां, इतनी छिन कहाँ लगाई ? साँझ क वेला, लौंग-सुपारी-पान-फूल-इलायची-धूप-दीप-रोट॒लँगोट-फल-फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र ‌प्रताप-रक्षा-कारण वेगि चलो। लोहे की गदा कील, चं चं गटका चक कील, बावन भैरो कील, मरी कील, मसान कील, प्रेत-ब्रह्म-राक्षस कील, दानव कील, नाग कील, साढ़ बारह ताप कील, तिजारी कील, छल कील, छिद कील, डाकनी कील, साकनी कील, दुष्ट कील, मुष्ट कील, तन कील, काल-भैरो कील, मन्त्र कील, कामरु देश के दोनों दरवाजा कील, बावन वीर कील, चौंसठ जोगिनी कील, मारते क हाथ कील, देखते क नयन कील, बोलते क जिह्वा कील, स्वर्ग कील, पाताल कील, पृथ्वी कील, तारा कील, कील बे कील, नहीं तो अञ्जनी माई की दोहाई फिरती रहे। जो करै वज्र की घात, उलटे वज्र उसी पै परै। छात फार के मरै। ॐ खं-खं-खं जं-जं-जं वं-वं-वं रं-रं-रं लं-लं-लं टं-टं-टं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः। अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। वायु-पुत्राय नमः। राम-दूताय नमः।” विधिः- अत्यन्त लाभ-दायक अनुभूत मन्त्र है। १००० पाठ करने से सिद्ध होता है। अधिक कष्ट हो, तो हनुमानजी का फोटो टाँगकर, ध्यान लगाकर लाल फूल और गुग्गूल की आहुति दें। लाल लँगोट, फल, मिठाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १ सुपारी चढ़ा कर पाठ करें।


चन्द्रिका यक्षिणी साधना. ----------------------------------- ईश्वर उवाच- अथाग्रे कथियिष्यामि यक्षिण्यादि प्रसाधनम्l यस्य सिद्धौ नराणां हि सर्वे सन्ति मनोरथाः ॥ श्री शिवजी बोले – हे रावण ! अब मैं तुमसे यक्षिणी साधन का कथन करता हूं , जिसकी सिद्धि कर लेने से साधक के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं । चन्द्रिका यक्षिणी शीघ्र फल प्रदान करती है उन्हे साधका से कोई अपेक्षा नही है,जैसे षोडश यक्षिणी साधानाये हमारे तंत्र शास्त्र मे है और बाकी पन्द्राह यक्षिणीया साधक के कार्य को अनुकूल करने के उपरांत कुछ ना कुछ अपेक्षाये रखती है जिसे कुछ लोग भोग कहेते है.परंतु यहा आज आपको चन्द्रिका यक्षिणी साधना दियी जा रहि है जिसे अत्यन्त निर्मल मन से संपन्न करे,शुद्ध भाव,सहनशिलता और पूर्ण विश्वास से ही यक्षिणी साधना मे सफलता संभव है. बहोत से मेरे प्यारे बन्धूजनो का एक निवेदन था इन समस्या पर साधना पोस्ट करे जैसे "मै कर्ज से मुक्त हो जाऊ,मेरा शादि हो जाये,मेरी प्रेमिका मुझे वापस मिल जाये,मुझे धन प्राप्त हो,मै किसिसे निस्वार्थ प्रेम करता हू उनसे शादि हो जाये,मेरा कारोबार अच्छेसे चल जाये,मेरे नौकरी मे बाधा है या मुझे नौकरी मिले.....लिस्ट बहोत बडी है". समस्याओ की गिनती नही परंतु समाधान एक ही है "चन्द्रिका यक्षिणी साधना",जिसने की वो खुश ही रहेगा. यक्षिणी देवलोक से होती है इन्हे इतर योनी ना माने,ज्यादातर अघोरीयो के पास यह सिद्धी होती है जिससे उन्हे मनोवांछित कार्य करने मे मदत मिलता है.यह साधना साधु,सन्यासी,पु रुष और स्त्री भी कर सकते है.साधना हेतु लाल वस्त्र और आसन जरुरी है,नयी स्फटीक माला हो जो शिवलिंग से स्पर्शित करके तय्यार रखे.जब तक आपके मन मे प्रसन्नता ना हो तब तक साधना ना करे. विधान आसान है जैसे उत्तर दिशा मे मुख करके बैठना है,साधना 11 दिन का है,21माला जाप रोज करना है,रोज बेसन के लड्डू का भोग लगाये जो शुद्ध घी मे बना हुआ हो,स्टील के प्लेट मे एक कुंकुम से स्वस्तिक बनाये,लाल गुलाब रोज चढाना है स्वस्तिक पर,स्वस्तिक रोज प्लेट पर बनाये और साधना करने के बाद प्लेट को शुद्ध जल से धोकर जल दूसरे दिन सुबह पिपल के पेड के पास चढा दे.साधना रात्री मे 10 बजे से किसी भी शुक्रवार से प्रारंभ करे.लड्डू का प्रसाद स्वयं ग्रहन करे.साधना से पूर्व हाथ मे जल लेकर संकल्प बोले "मै अमुक पिता का पुत्र गुरूकृपा से चन्द्रिका यक्षिणी साधना संपन्न करने जा रहा हू,मुझे इस साधना मे पूर्ण सफलता प्राप्त हो और मेरा अमुक कार्य सिद्ध हो" जल को जमीन पर छोड दे और अपने गुरू से साधना सफलता हेतु प्रार्थना करे. विधि:- सबसे पहिले देवि का आवाहन करे- ll आवाहयामी देवि त्वं सर्वशक्ति प्रदायनी,सर्व मंगलरुपा त्वं सर्व कार्य सुभंकरी,आवाहयाम ी आवाहयामी देवि चन्द्रिके,स्थाप यामी पुजयामी नम: ll मंत्र:- ll ओम ह्रीं चन्द्रिके आगच्छ इच्छीतं साधय ओम फट ll Om hreem chandrike aagachcha ichchitam saadhay om phat आप सभी की कामना पूर्ण हो यही सदगुरूजी के चरणो मे नम्र विनती है,आपकी साधना मंगलमय रहे.


Wednesday, 28 January 2015

भगवान हनुमान को चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है | कहा जाता है कि वे आज भी जीवित हैं और हिमालय के जंगलों में रहते हैं | वे भक्तों की सहायता करने मानव समाज में आते हैं लेकिन किसी को आँखों से दिखाई नहीं देते | लेकिन एक ऐसा मंत्र है जिसके जाप से हनुमान जी भक्त के सामने साक्षात प्रकट हो जाते हैं | मंत्र है : कालतंतु कारेचरन्ति एनर मरिष्णु , निर्मुक्तेर कालेत्वम अमरिष्णु यह मंत्र तभी काम करता है जब नीचे लिखी दो शर्ते पूरी हों - (1) भक्त को अपनी आत्मा के हनुमान जी के साथ संबंध का बोध होना चाहिए | (2) जिस जगह पर यह मंत्र जाप किया जाए उस जगह के 980 मीटर के दायरे में कोई भी ऐसा मनुष्य उपस्थित न हो जो पहली शर्त को पूरी न करता हो | अर्थात या तो 980 मीटर के दायरे में कोई नहीं होना चाहिए अथवा जो भी उपस्थित हो उसे अपनी आत्मा के हनुमान जी के साथ सम्बन्ध का बोध होना चाहिए | यह मंत्र स्वयं हनुमान जी ने पिदुरु पर्वत के जंगलों में रहने वाले कुछ आदिवासियों को दिया था | पिदुरु (पूरा नाम "पिदुरुथालागाला ) श्री लंका का सबसे ऊँचा पर्वत है | जब प्रभु राम जी ने अपना मानव जीवन पूरा करके समाधि ले ली थी तब हनुमान जी पुनः अयोध्या छोड़कर जंगलों में रहने लगे थे | उस समय वे लंका के जंगलों में भी भ्रमण हेतु गए थे जहाँ उस समय विभीषण का राज्य था | लंका के जंगलों में उन्होंने प्रभु राम के स्मरण में बहुत दिन गुजारे | उस समय पिदुरु पर्वत में रहने वाले कुछ आदिवासियों ने उनकी खूब सेवा की | जब वे वहां से लौटने लगे तब उन्होंने यह मंत्र उन जंगल वासियों को देते हुए कहा - "मैं आपकी सेवा और समर्पण से अति प्रसन्न हूँ | जब भी आप लोगों को मेरे दर्शन करने की अभिलाषा हो, इस मंत्र का जाप करना | मै प्रकाश की गति से आपके सामने आकर प्रकट हो जाऊँगा |" जंगल वासियों के मुखिया ने कहा -"हे प्रभु , हम इस मंत्र को गुप्त रखेंगे लेकिन फिर भी अगर किसी को यह मंत्र पता चल गया और वह इस मंत्र का दुरुपयोग करने लगा तो क्या होगा?" हनुमान जी ने उतर दिया - "आप उसकी चिंता न करें | अगर कोई ऐसा व्यक्ति इस मंत्र का जाप करेगा जिसको अपनी आत्मा के मेरे साथ सम्बन्ध का बोध न हो तो यह मंत्र काम नहीं करेगा |" जंगलवासियों के मुखिया ने पूछा -"भगवन , आपने हमें तो आत्मा का ज्ञान दे दिया है जिससे हम तो अपनी आत्मा के आपके साथ सम्बन्ध से परिचित हैं | लेकिन हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों का क्या ? उनके पास तो आत्मा का ज्ञान नहीं होगा | उन्हें अपनी आत्मा के आपके साथ सम्बन्ध का बोध भी नहीं होगा | इसलिए यह मंत्र उनके लिए तो काम नहीं करेगा |" हनुमान जी ने बताया -"मै यह वचन देता हूँ कि मै आपके कुटुंब के साथ समय बिताने हर 41 साल बाद आता रहूँगा और आकर आपकी आने वाली पीढ़ियों को भी आत्म ज्ञान देता रहूगा जिससे कि समय के अंत तक आपके कुनबे के लोग यह मंत्र जाप करके कभी भी मेरे साक्षात दर्शन कर सकेंगे |"


Monday, 26 January 2015

घबराकर लौट गया सिकंदर सिकंदर महान् था ! महान् तो था उसका गुरू ! जो उसमें कम से कम यह तो भाव भर सका कि वह महान् है !अब महान् किसको कहते हैं, यह तो उसका गुरू भी नहीं जानता होगा ! इसलिये सिकंदर ने मारकाट को ही महानता समझा ।किसी  की  स्वतन्त्रता पर अधिकार करना, उसकी इच्छा के  विरुद्ध उसके तन, मन, धन, भू, भूमि, स्त्री, संपत्ति आदि सब को बलात् अपना समझना और उनका मनमाना उपयोग करना तथा ऐसा करने की  क्षमता होने को ही वह महानता मानता था । चल दिया वह यूनान से । सारे जगत् पर अधिकार करने के लिए, ता कि उसे महान् माना जाये । देशों को जीतता हुआ अर्थात् मारकाट मचाता हुआ, वह आगे बढ़ता गया । संसार के सीधे साधे लोग किसी से शत्रुता रखते ही नहीं थे, इसलिए लड़ाई, लूटपाट, हत्या के अभ्यासी नहीं थे ।  शीघ्र ही चारों ओर आतंक फैल गया । वह महान् नहीं था, आतंकवादी था, लुटेरा था । ऊपर से अपने को महान् और कहता था । वह भारत की ओर बढ़ा ! इधर उसे कठिनाई आने लगी । इधर के लोग भी अजीब थे और इधर की घरती भी ! यूनानी सेना को जिधर समतल प्रतीत होता उधर पहाड़ निकल आता, जहां पहाड़ प्रतीत होता वहां पर नदी बह रही होती, जिसे वे नदी समझते वह समतल होता ! जिसे नदी या सागर समझते वह सूखा ही सूखा होता । अद्भुत् माया थी इधर उधर ।                                       सेना आगे नहीं बढ़ पा रही थी ।  यूनानी सैनिकों ने अपने सिकंदर को बताया कि यह भूमि एक योगी की है । वह बड़ा मायावी है । उसने भैरवनाथ नाम का एक  गुप्त  देवता प्रत्येक चौराहे पर क्षेत्रपाल कर के बिठा रखा है ।  शत्रु भाव से आने वाला कोई भी व्यक्ति उस देवता की दृष्टि से बच नहीं सकता है । कहीं आग, कहीं दलदल, कहीं झाड़-झंखाड़, कहीं नदी, कहीं पहाड़ जब देखो तब सैनिकों के मार्ग में अकस्मात् आ खड़े होते हैं । सेना भयभीत है । आगे बढ़ने का साहस भी उसमें नहीं बचा है । सिकंदर ने कहा कि हमें इस भूमि को अवश्य जीतना है । इस भूमि को एक ओर छोड़ कर आगे बढ़ने में दो समस्याएं हैं । एक यह कि हम हारे हुए माने जायेंगे जो कि हमारी महानता में दाग होगा ! दूसरा यह कि यह भी नहीं पता कि उसकी यह भूमि कहां तक है ! सैनिकों ने कहा कि चरवाहे बता रहे हैं कि यह सारा देश योगी की योग-भूमि है । वे कहते हैं कि उन योगी महाराज की अनुमति के बिना तो इस भूमि पर कोई पराया परिन्दा पर भी नहीं मार सकता, तुम सैनिक तो हो ही किस खेत की गाजर मूली ! सैनिकों ने सिकन्दर को यह भी बताया कि उस योगी के प्रभाव से ये साधारण से लगने वाले चरवाहे भी बहुत अल्हड़, उद्दण्ड और निडर हो रहे हैं । सैनिकों को आने जाने में भी टोकते हैं ! इधर मत जाओ, इधर गायें चर रहीं हैं, इधर घोड़ा मत दौडाओ, गायों पर धूल गिरेगी, माता की आंखों में धूल जायेगी, तुम को दिखता नहीं है क्या ?   सैनिकों ने कहा, ''एक सैनिक ने चरवाहे की नहीं मानी, उसे चरवाहे का अहंकार सहन नहीं हुआ, उसने घोड़ा आगे बढ़ा दिया । उस बाल किशोर चरवाहे ने दूर से ही उस घोड़े को अपनी लाठी दिखायी और जोर से बोला . '' छू छू मन्तर छू छू '' ! बस तुरन्त ही घोड़ा अपने सवार सहित मूर्छित होकर चारों खाने चित्त धरती पर गिर गया ।'' ''आस पास के बहुत से छोटे बड़े ग्वाले एकत्र होकर हम सैनिकों का मजाक उडाने लगे -''बढ़ो, बढ़ो, आगे बढ़ो, यह योगी की भूमि है । हमारी शान्त धरा-माता पर हमारी गो माताएं शान्ति से घास चर रहीं हैं, वह तुम को नहीं सुहाता है ! रक्त पिपासु उत्पाती आततायियों, यहां रक्त बहाने की भूल न करना । यहां योग बहता है, योग ! यहां घी दूध की नदियां बहती हैं । इस हमारी माता को दूषित, कलुषित करने का दुस्साहस मत करना ।''   सिकन्दर ने सेना को रोक दिया । पहले अपने सेनापति के साथ योगी से मिलने का निश्चय उसने किया । ग्वालों के माध्यम से उसे पता चल ही गया था कि वह योगी कोई साधारण योगी नहीं है । वहां श्रद्धा भाव से ही जाया जा सकता है, सेना लेकर नहीं । अत: विवश होकर वह सेनापति के साथ अकेला ही चला ।  बहुत दूर तक उपवन के समान फैले समतल भूभाग के मध्य एक ऊंचा टीला था । वह बहुत ही रमणीय स्थान था । एक दिव्य देवालय वहां बना हुआ था ! अखण्ड रूप से प्रज्वलित एक निर्धूम धूणा सबका ध्यान आकर्षित कर रहा था । बाबाजियों के लिए तीन चार साधारण कुटियाएं इधर उधर बनी हुईं थीं ।कोई सशस्त्र रक्षा व्यवस्था वहां नहीं थी । चारों ओर शान्ति का साम्राज्य पसरा हुआ था । सिकन्दर ने योगी से कहा कि वह विश्व विजेता बनने के लिये भारत को जीतना चाहता है, अत: आगे बढ़ने के लिये आप की भूमि का उपयोग करने दीजिये ! योगी ने कहा -''यह धरती हमारी माता है । यह कोई सम्पत्ति नहीं कि किसी पराये को दे दी जाये । माता भोग्या नहीं, पूज्या होती है । क्या तुम तुम्हारी मां को किसी को दे सकते हो ?'' सिकन्दर आग बबूला हो गया, चिल्लाता सा बोला .   ''कैसी बातें करते हो ! जबान सम्हाल कर बोलो मूर्ख ! जानते हो मैं सिकन्दर महान् हूं !'' योगी ने बिना किसी आवेश के कहा -''मारकाट से कोई महान् नहीं होता सिकन्दर ! तू तो हत्यारा है । विध्वंसक है । तू बिगाड़ सकता है, बना नहीं सकता ! तू महान् कैसे हुआ ! महान् तो वह है, जो बनाता है । जो बना नहीं सकता, उसे बिगाड़ने का क्या अधिकार है । जो जिला नहीं सकता, उसे मारने का क्या अधिकार है ।'' सिकन्दर को कोई उत्तर नहीं सूझा । जीवन में पहली बार उसे निरूत्तर होना पड़ा । वह तो लौह तलवार की भाषा  समझता था । वाणी की तलवार की धार उसने पहली बार देखी । तब भी उसने साहस कर पूछा -''आप कैसे कह सकते हैं कि यह धरती आप की माता है । यह धरती निष्प्राण है, यह माता कैसे हो सकती है ?'' योगी ने कहा . ''माता बेटों की बात मानती है । यह धरती भी हम बेटों बात मानती है ! यह तुम जैसे अक्कल के  दुश्मनों को कभी भी आगे नहीं जाने देगी !'' सिकन्दर को आगे बढ़ने में कठिनाई हो ही रही थी ! इसलिए योगी की यह चेतावनी तो उसे समझ में आ रही थी कि वह आगे नहीं जा सकेगा !इसे वह योगी का चमत्कार ही मान रहा था ! परन्तु धरती से मा-बेटे का सम्बन्ध होता है, यह उसे समझ में नहीं आ रहा था ।वह योगी की बातों से हतोत्साहित हो रहा था, तो भी उसने साहस बटोरा और योगी से पूछा –‘’आप कैसे कह सकते हैं कि धरती आप की बात मानती है ?’’ वह योगी अपने आसन पर खड़ा हो गया और धरती को हाथ जोड़ कर प्रार्थना कि 'हे माता आप मुझे स्थान दे दीजिये ।'इतना सुनना था कि भीषण ध्वनि के साथ भूमि फट गयी, योगी सशरीर उसमें समा गया, तुरन्त धरती पूर्ववत् भी हो गयी । समाचार वायुवेग से चारों फैल गया । झुण्ड के झुण्ड लोग गोरक्षनाथ जी महाराज की जयजयकार करते हुए आने लगे ! सिकन्दर भयभीत हो गया । उसे ज्ञात हो चुका था कि ये तो विश्व प्रसिद्ध गुरू गोरक्षनाथ जी महाराज हैं  ! वह अपनी सेना चुपचाप लौटा ले गया । पुनश्च -'गोरख टीला' के नाम से प्रसिद्ध उस स्थान पर ही पुराकाल में श्रीराम लक्ष्मण को गुरू गोरक्षनाथ जी महाराज ने योग दीक्षा दी थी ।सिद्ध है कि त्रेता युग से ही वह स्थान गुरू गोरक्षनाथ जी महाराज की तपस्थली रहा है । नटेश्वरी  पंथ का उद्गम भी इस दिव्य स्थान से हुआ है ।ज्ञातव्य है कि गुरू गोरखनाथ जी महाराज तो अमरकाय हैं ! वे शून्यावतार हैं । न उनका जन्म होता है, न उनकी मृत्यु होती है । संसार में जब उनकी  आवश्यकता  होती है तब वे शून्य में से प्रकट हो जाते हैं और कार्य सम्पन्न कर शून्य में विलीन हो जाते हैं ।दुर्भाग्य है कि ऐसा पवित्र स्थान इस समय तथाकथित पाकिस्तान में है ।


अघोर तांत्रिक श्मशान साधनाहम सभी ने अघोर तांत्रिकों के बारे में जरुर सुना होगा। अघोरी सांसारिक बंधनों को नहीं मानते और अधिकांश समय श्मशान में बिताते हैं। अघोर का अर्थ है जो घोर या वीभत्स नहीं है। अघोरी वो लोग होते हैं जो संसार की किसी भी वस्तु को घोर अर्थात वीभत्स नहीं मानते। इसलिए न तो वे किसी वस्तु से घृणा करते हैं और न ही प्रेम। उनके मन के भाव हर समय एक जैसे ही होते हैं। अघोर तांत्रिक श्मशान में ही तंत्र क्रियांए करते हैं , इनके मतानुसार श्मशान में ही शिव का वास होता है। अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्मशान साधना, शिव साधना और शव साधना। ऐसा माना जाता है कि शव साधना के चरम पर मुर्दा बोल उठता है और इच्छाएं पूरी करता है। शव साधना के लिए एक खास काल में जलती चिता में शव के ऊपर बैठकर साधना की जाती है। यदि पुरूष साधक हो तो उसे स्त्री का शव और स्त्री साधक के लिए पुरूष का शव चाहिए होता है।शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस मंदिरा की जगह मावा चढाया जाता हैं। अघोरी लोगो का मानना होता है कि वे लोग जो दुनियादारी और गलत कार्यों के लिए तंत्र साधना करते है अतं में उनका अहित होता है। अघोरी की आत्मा को प्रसन्न करने एवं उससे सहायता प्राप्त करने हेतु साधना बता रहा हूँ , इस साधना को आप घर पर भी कर सकते है - साबर मंत्र - " आडू देश से चला अघोरी , हाथ लिये मुर्दे की झोली , खड़ा होए बुलाय लाव , सोता हो जागे लाव , तुझे अपने गुरु अपनों की दुहाई , बाबा मनसा राम की दुहाई ! " विधान - मंगलवार या शनिवार के दिन , कृष्णपक्ष से रात्रि के समय , लाल या काले आसन पर बैठ कर नित्य ही ११ माला का जप करे । अपने सम्मुख अघोरी आत्मा हेतु एक मिट्टी के कुलहड़ में देसी शराब , श्वेत फूलो की माला , मिठाई -नमकीन आदि रखे । गूगल की धुप और कडुवे तेल का गिरी हुए बत्ती का दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित रखे । जब जप पूर्ण हो जाये तो ये सभी सामग्री किसी चौराहे पर या किसी पीपल के पेड के नीचे चुपचाप से रख आये और हाथ-पैर धोकर सो जाये । 7वें दिन नहीं जाना है । तब किसी अघोरी की आत्मा आएगी और सामग्री न देने का कारण अत्यंत उग्र स्वर में पूछेगी ...घबराए नहीं और उत्तर भी नहीं देना और जो पूर्व दिन की बची सामग्री है उसे रख दें । न ही किसी भी प्रकार का प्रश्न करें न ही किसी प्रश्न का उत्तर दें । अब जप के पश्चात् जो सामग्री वर्तमान दिन ...यानि 8वें दिन की है ...फिर से चौराहे पर या पीपल के पेड के नीचे रख आये । यह साधना 11 दिन की है एवं 11वें दिन अघोरी की आत्मा आएगी और सौम्य भाषा -शब्दों में वार्ता करगी । उससे अपनी बुद्धि के अनुसार वचन ले लीजिये ,ये आत्मा साधक के अभिष्टों को पूर्ण करेगी । जब भी किसी कुल्हड़ में देसी शराब और नमकीन -मिठाई अघोरी के नाम से अर्पित करोगे तो वो सम्मुख आकर साधक की समस्या का निवारण भी करेगी । इस साधना के प्रभाव से अघोरी की आत्मा साधक के आस-पास ही रहेगी तथा उसे सुरक्षा भी प्रदान करेगी ।


सुलेमानी तंत्र –साधना -जिन साधना जहां सभी तंत्रो में तीक्ष्ण सुलेमानी तंत्र को माना गया है !क्यू के इस में सिद्धि जल्द और तीक्ष्ण होती है !ऐसा नहीं है के बाकी तंत्र प्रभावकारी नहीं क्यू के तंत्र का अर्थ ही किरिया है !जहां मंत्रो से प्रार्थना की जाती है !और तंत्र किरिया होने के कारण समस्या का निवारण करता ही है !क्यू के किरिया का अर्थ करना मतलव काम किया और हो गया !इस लिए तंत्र दीनता नहीं सिखाता मतलव समस्या के आगे झुकना नहीं !जहां एक बहुत ही प्रभाव कारी साधना दे रहा हु जो सुलेमानी साधना से स्मन्धित है ! क्या आप गुरवत से पूरी तरह घिर गए है ? क्या कर्ज में फसते जा रहे है ? क्या शत्रु के षड्यंत्र का वार वार शिकार हो रहे है ? क्या रोजगार के सभी रास्ते बंद हो गए है? तो एक वार इस साधना को करे और फिर देखे कितना चेंज आता है आप की ज़िंदगी में !यह एक बहुत ही पाक पंज तन पाक का कलाम है !इसे पूर्ण पावित्रता से करे ! जिस कमरे में आप साधना कर रहे हो उसे अशी तरह साफ करे पोचा वैगरालगा कर जा धो ले फिर शूकल पक्ष के पर्थम शूकरवार को इस साधना को शुरू करे और 21 दिन करनी है ! वस्त्र सफ़ेद पहने और सफ़ेद आसान का उपयोग करे ! दिशा पशिम और इस तरह बैठे जैसे नवाज के वक़्त बैठा जाता है ! सिर टोपी जा सफ़ेद रुमाल से ढक कर बैठे अगरवाती लगा दे और साधना के वक़्त जलती रहनी चाहिए दिये की कोई जरूरत नहीं है !फिर भी लगाना चाहे तो तेल का दिया लगा सकते है !सर्व पर्थम गुरु पूजन कर आज्ञा ले फिर एक माला गुरु मंत्र करे और निमन मंत्र की पाँच माला जप सफ़ेद हकीक माला से करे साधना के बीच बहुत अनुभव हो सकते है !मन को सथिर रखते हुए जप पूर्ण करे !जिस कमरे में साधना कर रहे हो व्हा कोई शराब पीकर न आए इस बात का विशेष ख्याल रखे !जप उल्टी माला से करे न माला हो तो एक घंटा करे ! साबर मंत्र – बिस्मिल्ला हे रेहमान ए र्र्हीम उदम बीबी फातमा मदद शेरे खुदा , चड़े मोहमंद मुस्तफा मूजी कीते जेर ,वरकत हसन हुसैन की रूह असा वल फेर !  जिन साधना जिन का नाम सुनते ही क्यी ड़र जाते है !पर यह बहुत ही चमत्कारी साधना है !डरने की जरूरत नहीं है !इसे दृर चित होकर करे !जिन जहां कुश खतरनाक ताकत है वही कुश जिन खुदा की नेक ताकतों में से एक है !अगर इसको सही ढंग से करे तो सभी कुश हासिल कर सकते है !और अपने शत्रु को प्रसत भी कर सकते है !इन ताकतों का दुरुपयोग होने के कारण इन्हे बदनाम कर दिया गया है जद की ऐसा नहीं है !यह खुदा के समान ताकतवर जिन है और नेक बंदो की मदद करके खुश होता है !इस लिए करने से पहले अपने मन को अशी तरह तयार कर ले ! नोचन्दे शूकरवार से शुरू कर 21 दिन करनी है! एक करबा करेला ले उस में हिंग भर दे और गाँव जा शहर के बाहर जा कर खुले मदान में इस साधना को करे करेला हाथ में लेकर पशिम मुख खड़े हो जाए उस से पहले सुलेमानी रक्षा मंत्र से अपने चरो और एक घेरा खीच ले ! रक्षा मंत्र----आयतुल कुर्सी क्श कुरान आगे पीछे तू रेहमान धड़ रखे खुदा सिर रखे सुलेमान !! यह मंत्र 11 वार पढ़ कर रक्षा चक्र लगा ले और फिर गुरुदेव से प्रथना करके मंत्र शुरू करे एक घंटा मंत्र जप करना है उस के बाद करेले को पशिम की तरफ फेक देना है और घर आके मुह हाथ धो ले यह कर्म 21 दिन करना है रोज करेला नया लेना है !21 वे दिन जा साधना पूरी होते जिन परकट हो जाएगा और आप से नेकी के तीन सवाल पुछेगा अगर आपने सही जबाब दे दिया तो आफ़रीन आफ़रीन तीन वर कहेगा और आपको जो चाहिए वोह धन दोलत और परी जा जो भी आप कहेगे हजार कर देगा अगर जबाब न सही दे पाये तो चला जाएगा और फिर दुवारा आपके बुलाने पे नहीं आएगा इस लिए सभी सवालो का उतार सोच समझ कर दे !यह जिन नेकी पसंद है और कुश देने से पहले आपकी परीक्षा जरूर लेता है !पास होने पर आपको माला माल कर देता है और मिली इमदाद से दसवा हिसा गरीबो की हेल्प में लगा दे तो आप की नेकी के बदले आपको बहुत कुश देगा और आप जब भी पुकारे गे हजार हो कर आपके काम करेगा काम होने पर हलवा उसे दे जो शुद घी से घर में बनाया हो !और जब तक साधना कर रहे हो लशन प्याज का प्रयोग बंद कर दे !और दूध जा दूध से बना खाना सेविए आदि उपजोग जायदा करे मन को साफ रखे !यह नील वरणीय बहुत ही पावर फुल जिन है !उसे देख कर डरे नहीं वोह आपको कुश नहीं कहेगा यह परयोग मेरा अनुभूत किया हुया है ! मंत्र --- ऐन उल हक ये जेतान !! Mantr - Ain ul hak ye jetan


Conjuring The King of JinnsAccording to Syaikh Ahmad Dairobi, the below ritual is meant for conjuring the King of Jinns. *The Method Is As Follows:* * This ritual must be performed at mid-night, in a dark empty room while burning some incense. * The conjurer must be alone. * Recite Surat Al-Jin 100x.(Click here for the verse ) * Recite the below prayer (from Surat Yaasiin):"Bismillahir Rahmmanir Rahiim. Qul Uuhiya Ilayya Annahus Tama'a Nafarum Minal Jinni Fa Qaaluu Innaa Sami'naa Qur-aanan 'Ajabaa Yahdii Ilar Rusydi Fa Aamannaa Bihii Wa Lan Nusyrika Bi Rabbinaa Ahadaa Wa Annahuu Ta'aalaa Jaddu Rabbinaa Mat Takhadza Shaahibataw Wa Laa Waladaa Wa Annahuu Kaana Yaquulu Safiihunaa 'Alallaahi Syathathaa." The above prayer must be recited repeatedly until the king of jinns is visible. When the king comes, then recite the below prayer: "Wa nufikho fish shuuri faidzaa hum minal ajdaatsi ilaa robbihim yansiluun. Qooluu yaa wailanaa mam ba'atsanaa mim marqodinaa, haadzaa maa wa'adar rohmaanu wa shodaqol mursaluun. Ing kaanat illaa shoihataw waahidatan faidzaa hum jamii'ul ladainaa muhdhoruun. Wa laqod 'alimatil jinaatu innahum lamuhdhoruun. Haadzihi jahannamul latii kuntum tuu'aduun. Ishlauhal yauma bimaa kuntum takfuruun." Greet the king by saying Assalamu'alaikum (If he speak hebrew then say Salom Alaichem) and tell him your desires. (You may only ask for one wish) If you asked for money you may need to donate some to the charity.


मानव  जीवन एक अनत लम्बाई  लिए  हुए श्रंखला   में ही गति शील  ही  हैं , यदि आज के जीवन  को  बर्तमान  माने  तो इसका  भविष्य  और  भूतकाल भी तो होना ही  चाहिए  ही ,  जीवन को एक रस्सी मान  ले  और  उसके मध्य  के  किसी भी  भाग के पकड़ ले  तो  निश्चय  ही   कहीं तो उसका  प्रारंभ  होगा और  कहीं तो उसका अंत  होगा ही भले  ही वह हमें दृष्टी गत   हो  या  न हो, ठीक  इसी  तरह हमें हमारा  न  अतीत मालूम हैं न  भविष्य  हम मध्य  में कहाँ  हैं , कहाँ जायेंगे यह सब  भी नहीं मालूम ,    जीवन के अनेक प्रश्नों  का उत्तर इतना आसान नहीं हैं , की मात्र  कुछ तर्क   और वितर्क से  वर्तमान  जीवन  की सारी उच्चता   और  विसंगतियों को समझा  जा  सके .उसके समझने के लिए  पूर्व जीवन दर्शन होना ही चाहिए ,  तब पता  चल सकता हैं  की  मेरे जीवन में ऐसा  क्यों हैं  इसका कारण क्या हैं  , और जब ये समझ में आ जायेगा  तो  उसके निराकरण  के  उपाय भी  खोजे जा सकते हैं . अन्यथा,पूरा  जीवन एक अनबुझ पहेली  सा बन कररह जायेगा , अपने देश  में  तीन महान  धर्म  का  उदय  हुआ  हैं ये  हिन्दू , बौद्ध  और जैन  धर्म हैं ,आपस में इनके कितने भी  विरोधाभास   दिखाए  दे पर  एक बात पर  सभी एक मत हैं की कर्म  फल तो  प्राप्त    होता   ही हैं   और सहन करना  ही पड़ेगा   वेदान्त कहता  हैं -हाँ हमने  ही उस कर्म का निर्माण  किया हैं तो हम ही उसे समाप्त कर भी  सकते हैं , पर कैसे  उसके लिए  कारण भी  तो जानना  पड़ेगा  न , आज के जीवन में  यही क्यों मेरा भाई  हैं या मेरे निकटस्थ  होते  हुआ भी इनके प्रति मेरे स्नेह सम्बन्ध क्यों नहीं  हैं , क्यों  दूरस्थ  होता  हुआ  भी व्यक्ति  अपना सा लगता हैं,  क्यों इतनी  गरीबी या शरीर में इतने  रोग  हैं  आदि आदि अनेक  प्रश्नों के उत्तर  भी मिल जाते हैं ,  क्या इस जीवन में  जो गुरु हैं या सदगुरुदेव हैं  क्या  वह   विगत  जीवन में भी या  उससे  भी  पहले के जीवन से जुड़े  हैं और क्या कारण  था  की /और कहाँ  से संपर्क टुटा , सब तो इस  पूर्व जीवन  दर्शन से  संभव  हैं,  आजकल अनेको  प्रविधिया  विकसित हैं ध्यानके माध्यमसे व्यक्ति  धीरे धीरे  पीछे जा सकता  हैं पर  ठीक    बाल्य काल  की    ४ वर्ष कि आयु से पहले जाना  बहुत  ही कठिन हैं , इस अवरोध को पास करना  कठिन हैं .सम्मोहन  भी एक विधा  हैं पर   उसके लिए  उच्चस्तरीय  सम्मोहनकर्ता होना चाहिए , साथ ही साथ  मानव मस्तिष्क इतना शक्तिशाली हैं  की  वह  जो नहीं हैं वह  भी आपको दिखा सकता हैं , इन तथ्योंको  जांच करना  जरुरी हैं .  साधना क्षेत्र  में  भी अनेको साधनाए हैं पर सभी इतनी क्लिष्ट  हैं  इन सभी   को ध्यान में रखते हुए  एक सरल प्रभाव दायक  साधना  आप सभी के लिए .. मन्त्र :*क्लीं पूर्वजन्म दर्शनाय फट्***सामान्य साधनात्मक  नियम :·  जप में  काले  रंग की हकीक माला का उपयोग करें·  साधना  बुध वार से प्रारंभ करसकते हैं ·  जप काल में  दिशा  दक्षिण   रहेगी ·  साधन काल में  धारण  किये जाने वाले वस्त्र और आसन  लाल  रंग के होंगे ·  धृत के दीपक को देखते हुए  रात्रि काल १०  बजे के बाद(10PM) मे 31 माला  मन्त्र जप होना चाहिए ·  यह क्रम ११ दिन तक चले अर्थात   कुल ११ दिन  तक साधना चलनी चाहिए . सफलता पूर्वक होने पर आपको स्वप्न या तन्द्रा अवस्था मे पूर्व जन्म सबंधित द्रश्य दिखाई देते है.  जिनके माध्यम से आपके जीवन की अनेक रहस्य  खुलती जाती हैं. आज के लिए बस इतना ही मानव  जीवन एक अनत लम्बाई  लिए  हुए श्रंखला   में ही गति शील  ही  हैं , यदि आज के जीवन  को  बर्तमान  माने  तो इसका  भविष्य  और  भूतकाल भी तो होना ही  चाहिए  ही ,  जीवन को एक रस्सी मान  ले  और  उसके मध्य  के  किसी भी  भाग के पकड़ ले  तो  निश्चय  ही   कहीं तो उसका  प्रारंभ  होगा और  कहीं तो उसका अंत  होगा ही भले  ही वह हमें दृष्टी गत   हो  या  न हो, ठीक  इसी  तरह हमें हमारा  न  अतीत मालूम हैं न  भविष्य  हम मध्य  में कहाँ  हैं , कहाँ जायेंगे यह सब  भी नहीं मालूम ,    जीवन के अनेक प्रश्नों  का उत्तर इतना आसान नहीं हैं , की मात्र  कुछ तर्क   और वितर्क से  वर्तमान  जीवन  की सारी उच्चता   और  विसंगतियों को समझा  जा  सके .उसके समझने के लिए  पूर्व जीवन दर्शन होना ही चाहिए ,  तब पता  चल सकता हैं  की  मेरे जीवन में ऐसा  क्यों हैं  इसका कारण क्या हैं  , और जब ये समझ में आ जायेगा  तो  उसके निराकरण  के  उपाय भी  खोजे जा सकते हैं . अन्यथा,पूरा  जीवन एक अनबुझ पहेली  सा बन कररह जायेगा , अपने देश  में  तीन महान  धर्म  का  उदय  हुआ  हैं ये  हिन्दू , बौद्ध  और जैन  धर्म हैं ,आपस में इनके कितने भी  विरोधाभास   दिखाए  दे पर  एक बात पर  सभी एक मत हैं की कर्म  फल तो  प्राप्त    होता   ही हैं   और सहन करना  ही पड़ेगा   वेदान्त कहता  हैं -हाँ हमने  ही उस कर्म का निर्माण  किया हैं तो हम ही उसे समाप्त कर भी  सकते हैं , पर कैसे  उसके लिए  कारण भी  तो जानना  पड़ेगा  न , आज के जीवन में  यही क्यों मेरा भाई  हैं या मेरे निकटस्थ  होते  हुआ भी इनके प्रति मेरे स्नेह सम्बन्ध क्यों नहीं  हैं , क्यों  दूरस्थ  होता  हुआ  भी व्यक्ति  अपना सा लगता हैं,  क्यों इतनी  गरीबी या शरीर में इतने  रोग  हैं  आदि आदि अनेक  प्रश्नों के उत्तर  भी मिल जाते हैं ,  क्या इस जीवन में  जो गुरु हैं या सदगुरुदेव हैं  क्या  वह   विगत  जीवन में भी या  उससे  भी  पहले के जीवन से जुड़े  हैं और क्या कारण  था  की /और कहाँ  से संपर्क टुटा , सब तो इस  पूर्व जीवन  दर्शन से  संभव  हैं,  आजकल अनेको  प्रविधिया  विकसित हैं ध्यानके माध्यमसे व्यक्ति  धीरे धीरे  पीछे जा सकता  हैं पर  ठीक    बाल्य काल  की    ४ वर्ष कि आयु से पहले जाना  बहुत  ही कठिन हैं , इस अवरोध को पास करना  कठिन हैं .सम्मोहन  भी एक विधा  हैं पर   उसके लिए  उच्चस्तरीय  सम्मोहनकर्ता होना चाहिए , साथ ही साथ  मानव मस्तिष्क इतना शक्तिशाली हैं  की  वह  जो नहीं हैं वह  भी आपको दिखा सकता हैं , इन तथ्योंको  जांच करना  जरुरी हैं .  साधना क्षेत्र  में  भी अनेको साधनाए हैं पर सभी इतनी क्लिष्ट  हैं  इन सभी   को ध्यान में रखते हुए  एक सरल प्रभाव दायक  साधना  आप सभी के लिए .. मन्त्र :*क्लीं पूर्वजन्म दर्शनाय फट्***सामान्य साधनात्मक  नियम :·  जप में  काले  रंग की हकीक माला का उपयोग करें·  साधना  बुध वार से प्रारंभ करसकते हैं ·  जप काल में  दिशा  दक्षिण   रहेगी ·  साधन काल में  धारण  किये जाने वाले वस्त्र और आसन  लाल  रंग के होंगे ·  धृत के दीपक को देखते हुए  रात्रि काल १०  बजे के बाद(10PM) मे 31 माला  मन्त्र जप होना चाहिए ·  यह क्रम ११ दिन तक चले अर्थात   कुल ११ दिन  तक साधना चलनी चाहिए . सफलता पूर्वक होने पर आपको स्वप्न या तन्द्रा अवस्था मे पूर्व जन्म सबंधित द्रश्य दिखाई देते है.  जिनके माध्यम से आपके जीवन की अनेक रहस्य  खुलती जाती हैं. आज के लिए बस इतना ही 


Sunday, 25 January 2015

Tuesday, 20 January 2015

गुप्त नवरात्री विशेष ------------------------------- यह नवरात्री खास करके इतर योनी से मदत प्राप्त करने हेतु एकदम खास है,यहा पर आज मै विशेष क्रिया बता रहा हू जिससे 100% मनोकामना पूर्ण होता है. आनेवाले शनिवार के दिन सफेद आक के पौधे के पास जाये और वहा पर एक सफेद वस्त्र बिछाये,वस्त्र पर काजल से अपना पूर्ण नाम लिखे और नाम के उपर सव्वा किलो चावल का ढेरी बनाये.अब आक के पौधे को जल चढाये और कुंकुम से रौली से पुजन करे.पुजन के बाद 5 अगरबत्ती जलाये और पौधे की पांच परिक्रमा करके अगरबत्ती को जमीन पर लगादे. अब चावल के ढेरी पर एक मिट्टी का दीपक रखे जिसमे सुगन्धित तेल भरा हो और अपना कामना बोलकर दीपक को प्रज्वलित करदे. यह क्रिया रात को बारा बजे होनी चाहिये सिर्फ इतना ही नियम है.दीपक प्रज्वलित करने के बाद एखादा गुलाब का पुष्प दीपक के पास चढा दिजिये और बिना पीछे मुडे घर को वहा से निकल जाये. अगर किसी प्रकार का आवाज आये तो डरना नही कोई तकलीफ़ नही होगा. मातारानी आपका कामना पूर्ण करे. आदेश.


Sunday, 18 January 2015

agar kese ko yea tel chayea yea to mujea email kejea meara email id hea sagar.mashru24@gmail.com शिवाम्बु द्वारा धातु वेधन की क्रिया पर जब हम बात कर रहे थे तो उस दौरान हमने बताया था की कुछ विशेष कल्पों के सेवन से शारीरिक पारद वेधक गुणों से युक्त हो जाता है उन्ही कल्पों में से यह सिद्ध अंकोल कल्प भी एक है। विगत कई वरशो से आयुर्वेद का एक कल्प लोगो के बीच उलझी हुयी पहेली बना है और जिसे सुलझाने के चक्कर में न जाने कितने लोग ख़ुद ही उलझ गए .और वो कल्प है अंकोल कल्प आख़िर क्या बात है की लोग इसके पीछे पड़े हुए हैं .... तंत्र के प्राचीनतम ग्रंथों में लिखा है की इसके तेल(आयल) की बूँद भी मुर्दे को कुछ पलों के लिए जीवन दे देती है .पर जब हम तेल निकालने जाते हैं तो या तो वो निकलता ही नही या फिर जल जाता है तो क्या करें, क्या हमारे वो तंत्र ग़लत हैं कदापि नही..सच तो यह है की आधुनिक समय में हम ख़ुद ही उन सूत्रों को भूल गए हैं जिनके द्वारा हमारे पूर्वज प्रकृति का सहयोग प्राप्त करके अपना अभिस्थ साध लेते थे. इस तेल को प्राप्त करने की विधि जो की अनुभूत है कुछ इस प्रकार है.सबसे पहले तो जहा अंकोल का वृक्ष हो वह जाए और यह देख लें की उस पर फल आ गए हैं दूसरे दिन वह जाकर उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करें और उस शिवलिंग के सामने एक घाट(मटका) की स्थपना करें और अघोर मन्त्र का जप करते हुए एक धागे से उस शिवलिंग,घाट और वृक्ष को बाँध दे और प्रतिदिन अघोर मंत्र की ११ माला करें।जब फल पाक जायें तो उन्हें तोड़कर उस मटके में रखते जायें जब वो मटका भर जाए तो योगिनियों और भैरव पूजन संपन्न करें और उन फलों को थोड़ा कूट कर पातळ यन्त्र के द्वारा आयल निकाल लें. ४ से ५ घंटे में तेल निकल जाता है अग्नि देते समय सावधानी रखेर्ण और मध्यम अग्नि दे. फिर उस तेल पर अघोर मंत्र की ११ माला जप करे और इच्छा अनुसार प्रयोग करें .एक बात और सिर्फ़ तेल से कुछ नही होता यदि १ भाग अंकोल तेल में २ भाग तिल का तेल और सिद्ध पारद भस्म न मिली हो तो वो मरीत्संजिवी नही होता है हाँ अन्य कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है.अंकोल तेल में दो भाग तिल का तेल मिला कर नाशय लेने से जरा मृत्यु का नाश होता है .३०० वर्ष की आयु होती है और किसी भी विष का कोई पराभव पूरे जीवन भर नही होता है. इसके अन्य प्रयोग इस प्रकार हैं. गुरूवार को हस्त नक्षत्र में यदि इसके मूल को शास्त्रीय रूप से प्राप्त करके कर्पूर और शहद के साथ यदि खाया जाए तो नश्त्द्रिष्टि वाला भी देखने लगता है. इस तेल से मर्दित पारद बंधित होकर ताम्र को स्वर्ण में बदल देता है. कृष्ण अंकोल का तेल अदृश्य क्रिया के काम आता है। आइये इन सूत्रों को सहेजें और अपनी परम्परा पर गर्व करें।****आरिफ****Nikhil  at 6:06 PM


शिवाम्बु द्वारा धातु वेधन की क्रिया पर जब हम बात कर रहे थे तो उस दौरान हमने बताया था की कुछ विशेष कल्पों के सेवन से शारीरिक पारद वेधक गुणों से युक्त हो जाता है उन्ही कल्पों में से यह सिद्ध अंकोल कल्प भी एक है। विगत कई वरशो से आयुर्वेद का एक कल्प लोगो के बीच उलझी हुयी पहेली बना है और जिसे सुलझाने के चक्कर में न जाने कितने लोग ख़ुद ही उलझ गए .और वो कल्प है अंकोल कल्प आख़िर क्या बात है की लोग इसके पीछे पड़े हुए हैं .... तंत्र के प्राचीनतम ग्रंथों में लिखा है की इसके तेल(आयल) की बूँद भी मुर्दे को कुछ पलों के लिए जीवन दे देती है .पर जब हम तेल निकालने जाते हैं तो या तो वो निकलता ही नही या फिर जल जाता है तो क्या करें, क्या हमारे वो तंत्र ग़लत हैं कदापि नही..सच तो यह है की आधुनिक समय में हम ख़ुद ही उन सूत्रों को भूल गए हैं जिनके द्वारा हमारे पूर्वज प्रकृति का सहयोग प्राप्त करके अपना अभिस्थ साध लेते थे. इस तेल को प्राप्त करने की विधि जो की अनुभूत है कुछ इस प्रकार है.सबसे पहले तो जहा अंकोल का वृक्ष हो वह जाए और यह देख लें की उस पर फल आ गए हैं दूसरे दिन वह जाकर उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करें और उस शिवलिंग के सामने एक घाट(मटका) की स्थपना करें और अघोर मन्त्र का जप करते हुए एक धागे से उस शिवलिंग,घाट और वृक्ष को बाँध दे और प्रतिदिन अघोर मंत्र की ११ माला करें।जब फल पाक जायें तो उन्हें तोड़कर उस मटके में रखते जायें जब वो मटका भर जाए तो योगिनियों और भैरव पूजन संपन्न करें और उन फलों को थोड़ा कूट कर पातळ यन्त्र के द्वारा आयल निकाल लें. ४ से ५ घंटे में तेल निकल जाता है अग्नि देते समय सावधानी रखेर्ण और मध्यम अग्नि दे. फिर उस तेल पर अघोर मंत्र की ११ माला जप करे और इच्छा अनुसार प्रयोग करें .एक बात और सिर्फ़ तेल से कुछ नही होता यदि १ भाग अंकोल तेल में २ भाग तिल का तेल और सिद्ध पारद भस्म न मिली हो तो वो मरीत्संजिवी नही होता है हाँ अन्य कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है.अंकोल तेल में दो भाग तिल का तेल मिला कर नाशय लेने से जरा मृत्यु का नाश होता है .३०० वर्ष की आयु होती है और किसी भी विष का कोई पराभव पूरे जीवन भर नही होता है. इसके अन्य प्रयोग इस प्रकार हैं. गुरूवार को हस्त नक्षत्र में यदि इसके मूल को शास्त्रीय रूप से प्राप्त करके कर्पूर और शहद के साथ यदि खाया जाए तो नश्त्द्रिष्टि वाला भी देखने लगता है. इस तेल से मर्दित पारद बंधित होकर ताम्र को स्वर्ण में बदल देता है. कृष्ण अंकोल का तेल अदृश्य क्रिया के काम आता है। आइये इन सूत्रों को सहेजें और अपनी परम्परा पर गर्व करें।****आरिफ****Nikhil  at 6:06 PM


Thursday, 15 January 2015

मित्रो हमारी देह ईश्वर कि और से हमें सबसे बड़ा वरदान है.क्युकी अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाये तो हम धन,वैभव,सुख आदि का भोग नहीं कर पाते है.और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते है.कई उपचार किये जाये।औषधि ली जाये किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है.और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है. परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है.यहाँ के ऋषि मुनि ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग कि उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है.संसार में सर्व प्रथम काया कल्प पर अगर किसी ने चर्चा कि तो वो हमारे भारत के ऋषि आदि ने ही कि,आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में.और इस क्षेत्र में कई कई शोध किये हमारे साधको तथा संतो ने.आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है.यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से काया कल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तंत्र।यही कारण है कि आज भी उच्च कोटि कि औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है.जो कि देह को रोगो से मुक्त करती है.और यही पारद जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तो,देह को रोग मुक्त करता है साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सिच कर उसे अध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है.रोग मुक्ति के हेतु भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते है.और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते है.उसका मुख्य कारण ये है कि,पारद में औषिधि तत्त्व भी विद्यमान होते है.अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते है तो,आपको दो मार्गो से लाभ प्राप्त होने लगता है.प्रथम मंत्र के माध्यम से उसमे स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते है.और दूसरा उसके स्पर्श में आयी हर वस्तु औषिधि में परिवर्तित हो जाती है. विशेषकर वीर्य से सम्बंधित दोषो में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र कि तरह कार्य करता  है. अतः असाध्य रोगो से भयभीत न हो उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने.आईये जानते है इस दिव्य विधान को. साधना आप किसी भी सोमवार से आरम्भ करे.समय रात्रि या दिन का  कोई भी आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते है.आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बंधन नहीं है.स्नान कर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दे और उस पर कोई भी पात्र रख दे.इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करे.सर्व प्रथम गुरु तथा गणपति का पूजन करे.अब भगवान रसेश्वर का सामान्य पूजन करे.शुद्ध घृत या तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई रखे.इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है.अब आपको निम्न मंत्र को पड़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है. ॐ रुद्राय फट  १०८ बार आपको उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है.इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ११ माला जाप करे. ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः  Om Hraam Hraam Ayim Joom Sah Mrityunjayay Raseshwaraay Sarv Rog Shantim Kuru Kuru Namah  ११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः रसलिंग पर निम्न मंत्र पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है. ॐ हूं सर्व रोग नाशाय रसेश्वराय हूं फट  Om Hoom Sarv Rog Naashaay Raseshwaraay Hoom Phat  इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान से प्रार्थना करे.उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है.रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाये।और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मंदिर में दान कर दे कुछ दक्षिणा के साथ.बाद में नित्य मूल मंत्र जिसका आपने  रुद्राक्ष माला  पर जाप किया है.उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभी मंत्रित कर ले और ग्रहण कर ले.ये साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते है.जिन लोगो के पास पारद निर्मित  महारोग नाशक गुटिका है वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दे.और ११ दिनों बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर ले,लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।बाकि साधना आप पूर्ण विश्वास से करे आपको अवश्य लाभ होगा।आप सभी निरोगी हो इसी कामना के साथ. मित्रो हमारी देह ईश्वर कि और से हमें सबसे बड़ा वरदान है.क्युकी अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाये तो हम धन,वैभव,सुख आदि का भोग नहीं कर पाते है.और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते है.कई उपचार किये जाये।औषधि ली जाये किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है.और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है. परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है.यहाँ के ऋषि मुनि ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग कि उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है.संसार में सर्व प्रथम काया कल्प पर अगर किसी ने चर्चा कि तो वो हमारे भारत के ऋषि आदि ने ही कि,आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में.और इस क्षेत्र में कई कई शोध किये हमारे साधको तथा संतो ने.आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है.यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से काया कल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तंत्र।यही कारण है कि आज भी उच्च कोटि कि औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है.जो कि देह को रोगो से मुक्त करती है.और यही पारद जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तो,देह को रोग मुक्त करता है साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सिच कर उसे अध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है.रोग मुक्ति के हेतु भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते है.और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते है.उसका मुख्य कारण ये है कि,पारद में औषिधि तत्त्व भी विद्यमान होते है.अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते है तो,आपको दो मार्गो से लाभ प्राप्त होने लगता है.प्रथम मंत्र के माध्यम से उसमे स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते है.और दूसरा उसके स्पर्श में आयी हर वस्तु औषिधि में परिवर्तित हो जाती है. विशेषकर वीर्य से सम्बंधित दोषो में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र कि तरह कार्य करता  है. अतः असाध्य रोगो से भयभीत न हो उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने.आईये जानते है इस दिव्य विधान को. साधना आप किसी भी सोमवार से आरम्भ करे.समय रात्रि या दिन का  कोई भी आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते है.आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बंधन नहीं है.स्नान कर उत्तर या पूर्व कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दे और उस पर कोई भी पात्र रख दे.इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करे.सर्व प्रथम गुरु तथा गणपति का पूजन करे.अब भगवान रसेश्वर का सामान्य पूजन करे.शुद्ध घृत या तील के तेल का दीपक लगाये।भोग में कोई भी मिठाई रखे.इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है.अब आपको निम्न मंत्र को पड़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है. ॐ रुद्राय फट  १०८ बार आपको उपरोक्त मंत्र को पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है.इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ११ माला जाप करे. ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः  Om Hraam Hraam Ayim Joom Sah Mrityunjayay Raseshwaraay Sarv Rog Shantim Kuru Kuru Namah  ११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः रसलिंग पर निम्न मंत्र पड़ते हुए अक्षत अर्पित करना है. ॐ हूं सर्व रोग नाशाय रसेश्वराय हूं फट  Om Hoom Sarv Rog Naashaay Raseshwaraay Hoom Phat  इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान से प्रार्थना करे.उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है.रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाये।और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मंदिर में दान कर दे कुछ दक्षिणा के साथ.बाद में नित्य मूल मंत्र जिसका आपने  रुद्राक्ष माला  पर जाप किया है.उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभी मंत्रित कर ले और ग्रहण कर ले.ये साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते है.जिन लोगो के पास पारद निर्मित  महारोग नाशक गुटिका है वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दे.और ११ दिनों बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर ले,लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।बाकि साधना आप पूर्ण विश्वास से करे आपको अवश्य लाभ होगा।आप सभी निरोगी हो इसी कामना के साथ.


Dosto aaj kea jaman nea mea sabsea badi chezze hea vo hea eejzad matlab aakasan,aakasan cheeze he aase hea jeskea bina sagar bina pani aakasan he to sab ko gate deate hea but kaye loge mea aakasan he nahi hota vo ketna bhi prayas karea unmea aaksan he nahi aata hea sadhana nea safal na honeyea ka ek karan aaksan bhi hea kuke sadhak mea aaksan he nahi hota hea agar sadhanak kese itaryoni jeasea yaksini bhoot etc sadhana kar raha hea to usemea aaksan ke sabsea jarure cheeze hea agar sadhak mea aaksan hea to en sadhana mea siddhi mel nea kea chances bar jataea hea ene sabhi baato dhenmea rahakhar meanea ek aasea tabezze ka nirman ke ya hea jesea sadhak mea aaksan shakti bhut bhad jate hea agar shadhak esea phenea rakhea to samaj mea sabka visikaran hojata hea aur vo sadhak ke eejat karnea lagtea hea sadhakt agar yaksini ya other kese itaryoni ke sadhana kar raha hea to yesea locket ko phene lheana chayea yea eesea siddhi kea chances bhut bad jatea hea yea koye mamule locket nahi hea kuke yesea mea maya jaal ke jad ko hawan aur dveyea mantra sea pran dalea jaatea hea maya jaal ke ek jad aate hea vo vasikaran mea use hote hea eesekea pe6a ek khaahani hea jo es prakar hea bhagvan vishinu kea pass maya namak ek devi hea jo unke seva karte hea kese karan sar uunea dhurte pea jaad kea roop mea janam lena padha agar kesea kea pass yea jadd pranpadhese thit ho to vo sabko aaksan aavam vasikaran karsakta hea to jo koye log yea locket(tabeeze) chatea hea vo mujea email kejea meara email id hea sagar.mashru24@gmail.com


Wednesday, 14 January 2015

यहाँ बाबा भैरव जी का शाबर मंत्र दे रहा हु जो तीष्ण है,इस मंत्र का सिद्धी सिर्फ ८ दिन का है,साधना के लीये भैरव चित्र और रुद्राक्ष माला जरुरी है,भैरव जी के चित्र का पूजन करे करके नित्य मंत्र का एक माला जाप करे, माला होते ही कीसी पात्र मे शराब का भोग अर्पित करना है। जब साधना का आठवा दिन समाप्त हो जाये तो एक नारियल का बली आवश्यक है और दहीवडा भी चढ़ाये। सिर्फ इतना ही विधान जरुरी है। और साधना रात्री मे ९ बजे के बाद शुरू करे,आसान,वस्त्र का क्या रंग होगा ? यह चिंता छोड़ दे जो भी है वह चलेगा। साधना सिद्ध होने के बाद जब भी भैरव जी से अपना कामना पूर्ण करवाना हो। तो शराब अर्पित करे और नारियल का बली दे इतनी पूजा भैरव जी को देने से कार्य पूर्ण होता है। मंत्र :- ॥ ॐ काला भैरू,कबरा केश। काना कुंडल भगवा वेष। तीर पतर लियो हाथ,चौसठ जोगनिया खेले पास। आस माई,पास माई। पास माई सीस माई। सामने गादी बैठे राजा,पीडो बैठे प्रजा मोही। राजा को बनाऊ कुकडा। प्रजा को बनाऊ गुलाम। शब्द साँचा,पींड काचा। गुरु का बचन जुग जुग साचा ॥ साधना मे भयानक दॄश्य दिखे तो घबराना मत,माँ काली जी का स्मरण करे आदेश आदेश आदेश …………